राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने से इनकार और अशोक गहलोत के पर्चा दाखिल करने की घोषणा के बीच कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने राजस्थान में विधायकों से बातचीत शुरू कर दी है। पायलट की नजर राजस्थान में खाली हो रहे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। हालांकि अब भी विधायक गहलोत के सीएम पद से इस्तीफे या पायलट को सूबे का मुखिया बनाने को लेकर कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन सारा दारोमदार आलाकमान पर छोड़ने के उनके बयान ने सियासी माहौल के कई कयासों को हवा दे दी है।
पहले कोच्चि में राहुल गांधी और दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद सचिन पायलट शुक्रवार को जयपुर लौटे और आते ही एयरपोर्ट से सीधे विधानसभा सभी विधायकों से मिलने पहुंचे, तो सभी का चौंकना लाजमी था। क्योंकि कोच्चि में अशोक गहलोत के राहुल गांधी को मनाने में नाकाम रहने और खुद के नामांकन पर्चा जमा कराने के बयान के तत्काल बाद स्थितियां कुछ साफ होने लगी थी। खुद ही सुन लीजिये की तमाम कोशिशों के बावजूद अपने प्रयास में विफल रहने का असर गहलोत के चेहरे पर किस कदर नजर आने लगा है।
इस बयान के बमुश्किल डेढ़ घंटे बाद ही पायलट शुक्रवार को एयरपोर्ट से विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी के कक्ष में पहुंचे। फिर सत्ता पक्ष की लोबी में जाकर सभी गुटों के एक-एक विधायकों से मिले। इनमें वे विधायक भी शामिल हैं, जो कभी उनके कट्टर विरोधी माने जाते रहे। राहुल गांधी से मुलाकात के बाद सचिन पायलट का एक्टिव होकर विधायकों से बात करना नई जिम्मेदारी मिलने के सिग्नल के तौर पर देखा जा रहा है। सचिन पायलेट के इन बदले हुए अंदाज ने सभी को चौंकाया भी, लेकिन खुलकर कोई भी इस पर बयान देने की बजाय सीएम की कुर्सी के चहरे को लेकर यही कहता नजर आया की कांग्रेस आलाकमान जो भी फैसला लेगा वह सबको मंजूर होगा। BSP के टिकट पर चुनाव जीतकर कांग्रेस में अपने 6 साथियों के साथ आकर गहलोत सरकार को 2 साल पहले राजनितिक संकट से उबाड़ने वाले गुट अशोक गहलोत के कट्टर समर्थक माने जाते थे, ऐसे में उनके बदले सुर से सबका चौंकना लाजमी था।
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वैसे अध्यक्ष बनने पर गहलोत को उनके सीएम पद से इस्तीफा देना ही पड़ेगा। ऐसे में सचिन पायलट के अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी का नाम भी सीएम पद के दावेदारों में शामिल है। इसके अलावा भी कई नेता लॉबिंग में जुटे हैं. हालांकी संभावना यही है की 2 बार महासचिव, 3 बार केंद्रीय मंत्री, 3 बार CM, 5 बार सांसद, 5 बार विधायक और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का अनुभव रखकर गाँधी परिवार के भरौसेमंद बने गहलोत CM पद के लिए अपनी पसंद के व्यक्ति का नाम आगे बढ़ाएं , लेकिन आलाकमान के फैसले पर ही सबकी निगाहें रहेगी, कयास यह भी है कि पंजाब फार्मूला भी राजस्थान में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि गांधी परिवार भी यह बात समझ रहा है की कांग्रेस शासित सबसे बड़ा और अहम राज्य होने के चलते राजस्थान के सीएम पद को लेकर जल्दबाजी में उसके लिए फैसला लेना घातक भी साबित हो सकता है।
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