औरंगाबाद : देशभर में कोरोना संकट के बीच महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुए ट्रेन हादसे ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है, जिसमें 16 मजदूरों की कटकर मौत हो गई। देश में जिस तरह कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन के बीच प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं, उससे इस घटना ने और भी कई चिंताओं का उजागर किया है। इस बीच दुर्घटना में बाल-बाल बचे लोगों ने अपनी व्यथा बताई और उस खौफनाक मंजर को याद किया, जब ट्रेन आई और पटरी पर सो रहे उनके साथियों को कुचलते हुए आगे निकल गई।
'नींद से जगाने की कोशिश की'
मध्य प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले ये मजदूर रेलवे ट्रैक से होते हुए अपने गृह राज्य के लिए निकले थे, जब कुछ देर के लिए थककर वे सो गए और इसी बीच ट्रेन ने उन्हें कुचल दिया। ये सभी जालना की एक स्टील कंपनी में काम करते थे। लॉकडाउन के कारण हर तरफ बंदी के बीच वे अपने गृह राज्य के लिए निकले थे। इस हादसे में बाल-बाल बचे धीरेंद्र सिंह ने उस खौफनाक मंजर को याद करते हुए बताया कि किस तरह उन्होंने ट्रेन को रोकने और अपने साथियों को नींद से जगाने की पूरी कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ गया।
(घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मी, साभार: PTI)
'हम थक गए थे'
धीरेंद्र ने बताया, 'हम सभी मध्य प्रदेश से हैं और जालना की एसआरजी कंपनी में काम करते थे। हम अपने गांव जा रहे थे। हम गुरुवार शाम 7 बजे अपने कमरों से निकले थे और शुक्रवार तड़के करीब 4 बजे वहां पहुंचे थे, जहां ये वारदारत हुई। हम बहुत थके हुए थे और थोड़ी देर आराम करने के लिए वहीं बैठ गए। इसी बीच हमारी आंख लग गई। कुछ लोग रेलवे पटरियों पर ही सो गए, जबकि हम तीन लोग उनसे कुछ ही मीटर पर दूरी पर थे। इसी बीच अचानक मालगाड़ी आई। मैंने पटरियों पर सो रहे लोगों को जगाने के लिए आवाज लगाई, पर वे जग नहीं पाए और ट्रेन उन्हें कुचल गई। वे हमेशा के लिए नींद की आगोश में सो गए।'
(रेलवे ट्रैक पर बिखरी रोटियां और मजदूरों के कपड़े, चप्पल आदि, साभार : AP)
किसे पता था चली जाएगी जान
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनके पास कोई काम नहीं रह गया था। काम नहीं था तो पैसा भी नहीं था और वे इसलिए अपने गांव लौट जाना चाहते थे। इसके लिए एक सप्ताह पहले उन्होंने पास के लिए भी आवेदन दिया था। आखिर किसे पता था कि अपने गांव लौट जाने के लिए उठाया गया उनका यह कदम इस कदर भारी पड़ेगा कि वे अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे। गुरुवार को हादसे बाद रेल पटरियों से जो तस्वीरें सामने आईं, वे दिल बैठा देने वाली थीं। पटरियों पर जिस तरह रोटियां बिखरी पड़ी थीं, वे उनके संघर्षों को भी बयां करती हैं। आखिर इसी रोटी के लिए वे अपने घर से कई किलोमीटर दूर काम करने जाते हैं।
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