Ayodhya Ram Mandir Bhumi pujan: ठीक वहीं हुआ भूमि पूजन, जहां थे रामलला विराजमान

Ayodhya Ram Mandir Bhumi pujan: अयोध्‍या में भूमि पूजन हो चुका है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए शिलान्‍यास किया। इसकी खासियत यह भी रही कि यह पूजन ठीक वहीं हुआ, जहां रामलला विराजमान थे।

ठीक वहीं हुआ भूमि पूजन, जहां थे रामलला विराजमान
ठीक वहीं हुआ भूमि पूजन, जहां थे रामलला विराजमान  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • अयोध्‍या में भूमि पूजन ठीक वहीं हुआ है, जहां रामलला विराजमान थे
  • पीएम मोदी ने चांदी की ईंट रखकर राम मंदिर की आधारशिला रखी
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलला विराजमान को साष्टांग दंडवत क‍िया

अयोध्‍या : राम नगरी अयोध्‍या में भूमि पूजन कार्यक्रम पूरा हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण के लिए शिलान्‍यास किया। भूमि पूजन के दौरान लगभग आधे घंटे तक पूजा चली, जिसके बाद पीएम मोदी ने परिक्रमा की। यह पूजा ठीक उसी स्‍थान पर की गई, जहां रामलला विराजमान मौजूद थे। इस अवसर पर पीएम मोदी के अतिरिक्‍त राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, उत्‍तर प्रदेश की राज्‍यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ भी मौजूद रहे।

22.6 किग्रा की चांदी की ईंट से रखी गई आधारशिला

भूमि पूजन के दौरान पीएम मोदी ने 22.6 किलोग्राम की चांदी की ईंट रखकर मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखी। इस मौके पर उन्‍होंने पारंपरिक परिधान धोती-कुर्ता पहन रखा था। पीएम मोदी ने शिला पूजन, भूमि पूजन और कर्म शिला पूजन किया। यह पूजा ठीक वहीं हुई, जहां रामलला विराजमान थे। राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला 12 बजकर 44 मिनट और 08 सेकेंड पर रखी गई। इससे पहले उन्‍होंने रामलला विराजमान के दर्शन-पूजन कर उनका आशीर्वाद लिया।

पीएम मोदी ने हनुमानगढ़ी में की पूजा-अर्चना

इससे पहले पीएम मोदी ने हनुमानगढ़ी में विशेष पूजा-अर्चना की। वह हनुमानगढ़ी में भगवान हनुमान के दर्शन-पूजन करने वाले और श्री राम जन्‍मभूम‍ि पर पधारने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। हनुमान को रामद्वार के रखवाले माना जाता है और ऐसी मान्‍यता है कि भगवान राम से जुड़े कार्यों के लिए उनकी अनुमति बेहद आवश्‍यक है। इसके बाद पीएम मोदी जब रामलला के दर्शन-पूजन के लिए पहुंचे तो उन्‍होंने श्री राम को साष्टांग दंडवत क‍िया और इसके साथ ही पूरा देश राममय हो गया।

अपने श्रद्धेय के समक्ष दंडवत प्रणाम करते समय व्‍यक्‍त‍ि अपना अहम त्‍याग कर उनके प्रति पूरी तरह समर्पित हो जाता है। ऐसी मान्‍यता है कि दंडवत प्रणाम की मुद्रा में व्‍यक्‍त‍ि अपनी पांचों ज्ञानेंद्रियों और पांचों कर्मेद्रियों को कछुए की भां‍त‍ि समेट कर आत्‍म न‍िवेदन और मौन श्रद्धा के भाव में रहता है। इस परंपरा का यही अर्थ है कि अपने ईष्‍ट के समक्ष दंडवत प्रणाम करने वाला व्‍यक्‍त‍ि वहां मौजूद सकारात्‍मक ऊर्जा को आत्‍मसात कर अपने भीतर के सभी दुर्गुणों का त्‍याग कर दे।

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