फैजाबाद : अयोध्या में राम मंदिर का सपना तकरीबन 500 वर्षों बाद पूरा होने जा रहा है, जिसे लेकर न केवल अयोध्या बल्कि देशभर के जनमानस में उत्साह है। इस उत्साह व खुशी के अतिरेक के बीच यह याद रखने की जरूरत है कि अयोध्या वर्षों तक महज एक विवाद नहीं रहा, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी पेश करता है। अयोध्या केस में दो परस्पर विरोधी रहे पक्षकारों परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की दोस्ती इसी का उदाहरण है, जिसे भविष्य में भी भारतीय समाज को आत्मसात करने की जरूरत है।
अयोध्या में 1992 में हुए बाबरी विध्वंस की घटना ने निश्चित तौर पर देश के दो समुदायों के दिलों में दूरियां पैदा कर दीं, लेकिन अब इस विवाद का अदालती समाधान हो चुका है। अब जरूरी हो गया है कि दिलों के बीच जो दूरियां 1990 के दशक में पैदा हुईं, उन्हें खत्म कर दिया जाए और दुनिया के समक्ष आपसी भाईचारे व सौहार्द की वही मिसाल कायम की जाए, जो कभी परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी ने अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों से पेश की थी। परमहंस रामचंद्र दास कभी अयोध्या आंदोलन की धुरी रहे थे, जिसकी नींव 22 दिसंबर, 1949 की सर्द रात को पड़ी थी। उस एक रात को हुई घटना ने इस आंदोलन की दिशा ही बदल दी, जिसकी अगुवाई करने वालों में परमहंस रामचंद्र दास भी शामिल हैं।
बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति उसी रात रखी गई थी। तब इस मामले में जो एफआईआर दर्ज हुई थी, उसमें कहा गया कि 50-60 लोग ताला तोड़कर दीवार फांदते हुए मस्जिद में घुस गए और उन्होंने वहां रामलला की मूर्ति स्थापित की। तब वहां सुरक्षा इंतजाम काफी कम थे और भीड़ के आगे यह नाकाफी साबित हुआ। इस घटना से अयोध्या से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया था और तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से बात कर अयोध्या में पूर्व स्थिति बहाल करने को कहा था। तब देश को आजादी मिले महज 2 साल 4 महीने का वक्त हुआ था और देश में संविधान भी लागू नहीं हो सका था।
पूर्व की स्थिति बहाल करने का आदेश शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व से आया था, लेकिन तब फैजाबाद के डीएम ने यह कहते हुए इस पर अमल करने से इनकार कर दिया था कि इससे अयोध्या में कानून-व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा है। इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुंच, जहां मुस्लिम पक्ष के पैरोकार थे हाशिम अंसारी। बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति रखे जाने के विरोध में हाशिम अंसारी ने फैजाबाद की जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद हिन्दू पक्षकार के तौर पर दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास भी अदालत पहुंचे और साल 1950 में वहां पूजा-अर्चना को लेकर कोर्ट में अर्जी दाखिल की। दोनों ताउम्र अपने-अपने हक के लिए अदालतों में लड़ते रहे, लेकिन इसकी खलिश कभी उनके निजी संबंधों में नहीं दिखी।
परमहंस रामचंद्र दास के साथ हाशिम अंसारी की दोस्ती कुछ ऐसी थी कि साल 2003 में जब 92 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ तो हाशिम अंसारी बेहद परेशान हो गए थे। बताया जाता है कि उन्हें अपने मित्र के निधन से कुछ ऐसा सदमा पहुंचा कि वह देर तक उनके शव के पास रहे और अंतिम संस्कार के बाद ही अपने घर गए। हाशिम अंसारी की दोस्ती न केवल परमहंस रामचंद्र दास के साथ थी, बल्कि अयोध्या के अन्य हिन्दू परिवारों के साथ भी उनके रिश्ते कभी खराब नहीं हुए और अयोध्या में आज भी बाहरी ताकतों की तमाम कोशिशें के बावजूद अगर दोनों समुदायों के बीच वह सौहार्द बरकरार है तो इसका श्रेय काफी हद तक महंत परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की दोस्ती को जाता है।
साल 2016 में 96 साल की उम्र में हाशिम अंसारी का भी निधन हो गया, जिसके बाद उनकी विरासत बेटे इकबाल अंसारी ने संभाली। वह बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार बने और इस दौरान दोस्ती व सुलह की उसी परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश की, जिसे उनके पिता ने जीवनभर जारी रखा। अब इकबाल अंसारी को भी भूमि पूजन के लिए आमंत्रित किया गया है। वह 200 से भी कम उन चुनिंदा लोगों में शामिल हैं, जिन्हें भूमि पूजन कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया है। उन्होंने खुशी-खुशी इस आमंत्रण को स्वीकार करते हुए कहा है कि अयोध्या धर्म नगरी है और यहां सभी धर्मों व जाति के ईष्ट विराजमान हैं। उन्होंने इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्हें रामचरित मानस उपहार देने की इच्छा भी जताई।
(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है)
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