Ram Mandir: याद रहेगी परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की वो दोस्ती, जो देती है सौहार्द की मिसाल

देश
श्वेता कुमारी
Updated Aug 05, 2020 | 11:25 IST

Ayodhya Ram Mandir News: अयोध्‍या में बाबरी विध्‍वंस के बाद बहुत कुछ बदल गया, कुछ नहीं बदला तो परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की दोस्‍ती, जो आज भी साम्प्रदायिक समभाव की मिसाल पेश करती है।

Ram Mandir: याद रहेगी परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की वो दोस्ती, जो देती है सौहार्द की मिसाल
Ram Mandir: याद रहेगी परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की वो दोस्ती, जो देती है सौहार्द की मिसाल 
मुख्य बातें
  • परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की दोस्‍ती बताती है कि अयोध्‍या महज एक विवाद नहीं है
  • दोनों ताउम्र अदालतों में अपने कानूनी हक के लिए लड़ते रहे, दिलों में प्‍यार कहीं अधिक गहरा था
  • आज एक बार फिर भारतीय जनमानस को उसी प्रेम व सौहार्द को अत्मसात करने की जरूरत है

फैजाबाद : अयोध्‍या में राम मंदिर का सपना तकरीबन 500 वर्षों बाद पूरा होने जा रहा है, जिसे लेकर न केवल अयोध्‍या बल्कि देशभर के जनमानस में उत्‍साह है। इस उत्‍साह व खुशी के अतिरेक के बीच यह याद रखने की जरूरत है कि अयोध्या वर्षों तक महज एक विवाद नहीं रहा, बल्कि सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भी पेश करता है। अयोध्‍या केस में दो परस्‍पर विरोधी रहे पक्षकारों परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की दोस्ती इसी का उदाहरण है, जिसे भविष्‍य में भी भारतीय समाज को आत्‍मसात करने की जरूरत है।

साल 1949 की वो सर्द रात

अयोध्‍या में 1992 में हुए बाबरी विध्‍वंस की घटना ने निश्चित तौर पर देश के दो समुदायों के दिलों में दूर‍ियां पैदा कर दीं, लेकिन अब इस विवाद का अदालती समाधान हो चुका है। अब जरूरी हो गया है कि दिलों के बीच जो दूरियां 1990 के दशक में पैदा हुईं, उन्‍हें खत्‍म कर दिया जाए और दुनिया के समक्ष आपसी भाईचारे व सौहार्द की वही मिसाल कायम की जाए, जो कभी परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी ने अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों से पेश की थी। परमहंस रामचंद्र दास कभी अयोध्‍या आंदोलन की धुरी रहे थे, जिसकी नींव 22 दिसंबर, 1949 की सर्द रात को पड़ी थी। उस एक रात को हुई घटना ने इस आंदोलन की दिशा ही बदल दी, जिसकी अगुवाई करने वालों में परमहंस रामचंद्र दास भी शामिल हैं।

बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति उसी रात रखी गई थी। तब इस मामले में जो एफआईआर दर्ज हुई थी, उसमें कहा गया कि 50-60 लोग ताला तोड़कर दीवार फांदते हुए मस्जिद में घुस गए और उन्होंने वहां रामलला की मूर्ति स्‍थापित की। तब वहां सुरक्षा इंतजाम काफी कम थे और भीड़ के आगे यह नाकाफी साबित हुआ। इस घटना से अयोध्‍या से लेकर दिल्‍ली तक हड़कंप मच गया था और तब देश के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत से बात कर अयोध्या में पूर्व स्थिति बहाल करने को कहा था। तब देश को आजादी मिले महज 2 साल 4 महीने का वक्‍त हुआ था और देश में संव‍िधान भी लागू नहीं हो सका था।

ताउम्र लड़े, पर हमेशा रहा दिलों में प्‍यार

पूर्व की स्थिति बहाल करने का आदेश शीर्ष राजनीतिक नेतृत्‍व से आया था, लेकिन तब फैजाबाद के डीएम ने यह कहते हुए इस पर अमल करने से इनकार कर दिया था कि इससे अयोध्‍या में कानून-व्यवस्था बिगड़ने का अंदेशा है। इसके बाद यह मामला कोर्ट में पहुंच, जहां मुस्लिम पक्ष के पैरोकार थे हाशिम अंसारी। बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति रखे जाने के विरोध में हाशिम अंसारी ने फैजाबाद की जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद हिन्दू पक्षकार के तौर पर दिगंबर अखाड़े के महंत परमहंस रामचंद्र दास भी अदालत पहुंचे और साल 1950 में वहां पूजा-अर्चना को लेकर कोर्ट में अर्जी दाखिल की। दोनों ताउम्र अपने-अपने हक के लिए अदालतों में लड़ते रहे, लेकिन इसकी खलिश कभी उनके निजी संबंधों में नहीं दिखी।

केस की पैरवी के सिलसिले में उनका एक ही रिक्शे या तांगे से कोर्ट जाना खूब चर्चित रहा तो वक्‍त-बेवक्‍त एक-दूसरे की मदद के लिए हमेशा तत्‍पर रहना भी दर्शाता है कि अदलती कागजों में भले ही वे एक-दूसरे के धुर विरोधी थे, पर दिलों में प्‍यार कहीं अधिक गहरा था। वे हमेशा एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहते थे। अक्सर मिलते-जुलते रहते थे और खूब हंसी-मजाक भी किया करते थे। कभी-कभी दोनों साथ बैठकर ताश भी खेलते थे। होली, दिवाली, नवरात्र, ईद सब साथ मिलकर मनाते थे। 1992 की घटना के बाद भी यह सब बहुत बदला नहीं था। उनके बेटे इकबाल अंसारी ने एक बार कहा भी था कि जब बाबरी विध्‍वंस के बाद जब कुछ बाहरी लोगों ने उनके घर पर हमला किया तो महंत जी ने उसका बड़ा विरोध किया था।

बेमिसाल दोस्‍ती

परमहंस रामचंद्र दास के साथ हाशिम अंसारी की दोस्‍ती कुछ ऐसी थी कि साल 2003 में जब 92 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ तो हाश‍िम अंसारी बेहद परेशान हो गए थे। बताया जाता है कि उन्हें अपने मित्र के निधन से कुछ ऐसा सदमा पहुंचा कि वह देर तक उनके शव के पास रहे और अंतिम संस्‍कार के बाद ही अपने घर गए। हाशिम अंसारी की दोस्‍ती न केवल परमहंस रामचंद्र दास के साथ थी, बल्कि अयोध्‍या के अन्‍य हिन्‍दू परिवारों के साथ भी उनके रिश्‍ते कभी खराब नहीं हुए और अयोध्‍या में आज भी बाहरी ताकतों की तमाम कोशिशें के बावजूद अगर दोनों समुदायों के बीच वह सौहार्द बरकरार है तो इसका श्रेय काफी हद तक महंत परमहंस रामचंद्र दास और हाशिम अंसारी की दोस्‍ती को जाता है।

साल 2016 में 96 साल की उम्र में हाशिम अंसारी का भी निधन हो गया, जिसके बाद उनकी विरासत बेटे इकबाल अंसारी ने संभाली। वह बाबरी मस्जिद के मुख्य पक्षकार बने और इस दौरान दोस्‍ती व सुलह की उसी परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश की, जिसे उनके पिता ने जीवनभर जारी रखा। अब इकबाल अंसारी को भी भूमि पूजन के लिए आमंत्रित किया गया है। वह 200 से भी कम उन चुनिंदा लोगों में शामिल हैं, जिन्‍हें भूमि पूजन कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया है। उन्‍होंने खुशी-खुशी इस आमंत्रण को स्‍वीकार करते हुए कहा है कि अयोध्या धर्म नगरी है और यहां सभी धर्मों व जाति के ईष्‍ट विराजमान हैं। उन्‍होंने इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर उन्‍हें रामचरित मानस उपहार देने की इच्‍छा भी जताई।

(डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है)

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