भोपाल: 3 दिसंबर 1984 की वह काली रात मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के लोगों को सदियों तक सालने वाला दर्द दे गई। यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र से जहरीली गैस के रिसाव से हजारों लोग असमय ही मौत के मुंह में समा गए थे जबकि हजारों की तादाद में लोग घायल हो गए थे। यही नहीं इस खतरनाक गैस का असर अगले कई सालों तक रहा और हादसे के बाद भी यहां के लोग आज भी दिक्कतों का सामना करते रहे हैं। भारत के लिए 1984 एक ऐसा वर्ष था जहां देशवासियों ने ने हमेशा के लिए बदल देने वाली तीन घटनाओं को देखा।
2 और 3 दिसंबर की 1984 की आधी रात को जब पूरा भोपाल शहर गहरी नींद में सो रहा था तो उसी दौरान भोपाल स्थित अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्लांट के टैंक नंबर 610 से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव शुरू हो गया। जब सुबह शोर हुआ तो लोगों ने उठने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वो मौत से लड़ने की कोशिश कर रहे थे। इस दर्दनाक हादसे में करीब 15 हजार से अधिक लोग जिंदगी की जंग हार गए।
कहा जाता है कि यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था। इस हादसे की एक तस्वीर पूरी कहानी बयां कर देती है। फोटो ग्राफर रघु राय की इस तस्वीर में एक बच्चे का चेहरा दिखायी देता है जो अपनी आंखें भी बंद नहीं कर पाया और हमेशा के लिए जमीन में दफन कर दिया गया।
2 से 3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात टैंक नंबर 610 से जहरीली मिथाइल आइसो साइनेट गैस का रिसाव हुआ जो पबाद में पानी से मिल गई। इसके बाद बाद टैंक में ऐसा दबाव पैदा हो गया कि टैंक खुल गया जिसकी आगोश में पूरा शहर आ गया और हजारों लोग मौत के गाल में समा गए।
इस हादसे के जख्म अब भी हरे हैं, बचे लोग बीमारियों की जद में हैं और उनका जिंदगी व मौत के बीच संघर्ष जारी है। इसके साथ ही इस हादसे से अजन्मे बच्चों और आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य पर भी सवालिया निशान लग गया।
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