Birbhum Violence:राजनीतिक हत्याओं के मामले में बंगाल नंबर-2, जानें सत्ता संघर्ष का 'रक्त चरित्र'

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Mar 24, 2022 | 17:39 IST

Birbhum Violence: पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के मामले 70 के दशक से चले आ रहे है। जो पार्टी सत्ता में आती है, वह स्थानीय स्तर तक अपने कैडर के जरिए वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश करती है।

Bhirbhum Voilence and Mamata Banerjee
बीरभूम हिंसा से ममता बनर्जी सवालों के घेरे में 
मुख्य बातें
  • 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद भी राजनीतिक हिंसा की कई घटनाएं सामने आई थीं।
  • 2018-2020 के दौरान सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याएं बिहार में हुई और उसके बाद बंगाल में हुईं।
  • टीएमसी नेता भादू शेख की सोमवार शाम कुछ अज्ञात लोगों ने हत्या कर दी थी। और उसके बाद बोगटुई गांव में 8 लोगों को जिंदा जला दिया गया।

Birbhum Vioence: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोगटुई गांव में 8 लोगों को जिंदा जला कर मार देने की घटना न केवल राज्य की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाती है। बल्कि वहां स्थानीय स्तर पर सत्ता के संघर्ष को भी बयां करती है। असल में बंगाल में राजनीतिक हत्या का मामला कोई नया नहीं है। अगर तीन साल (2018-2020) के आंकड़े देखें जाए तो बिहार के बाद बंगाल में सबसे ज्यादा राजनीतिक हत्याएं होती हैं। इन तीन साल में बिहार में जहां 31 लोगों की जान गई , वहीं पश्चिम बंगाल में 27 लोगों को राजनीतिक हत्याओं का शिकार होना पड़ा।

बीरभूम में क्या हुआ

रामपुरहाट नंबर-1 पंचायत समिति के बड़साल ग्राम पंचायत के उप-प्रधान और टीएमसी नेता भादू शेख की सोमवार शाम कुछ अज्ञात लोगों ने  हत्या कर दी थी। और उसके बाद कुछ लोगों ने कई घरों में आग लगा दी और इस हमले की वजह से 8 लोगों की जलने से मौत हो गई।

बीरभूम की घटना के बाद राज्य में विपक्ष के नेता और भाजपा विधायक शुभेंदु अधिकारी ने घटना को 'बर्बर नरसंहार' बताते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की निंदा कर उनके इस्तीफे की मांग की है। वहीं ममता बनर्जी ने कहा है कि  वहां के शीर्ष अधिकारियों को हटा दिया गया है। उनकी सरकार को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। ये बंगाल है, उत्तर प्रदेश नहीं है। हर किसी को घटनास्थल पर जाने की अनुमति है।

इस बीच सरकार ने घटना की जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है।

वर्ष राज्य राजनीतिक हत्याएं राज्य पिछले 3 साल में कुल राजनीतिक हत्याएं
2018 बिहार 9    
  प.बंगाल 12 बिहार  31
  झारखंड 1    
  केरल 4    
2019 बिहार 6 बंगाल 27
  प.बंगाल 12    
  झारखंड 6    
  केरल 5 झारखंड 14
2020 बिहार 16    
  प.बंगाल 3    
  झारखंड 7 केरल 11
  केरल 2    

स्रोत: NCRB

स्थानीय स्तर पर ऐसे चलता है सत्ता का संघर्ष 

पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास 70 के दशक से शुरू हुआ। उसके बाद चाहें कांग्रेस की सरकार हो या सीपीएम और अब ममता बनर्जी कोई भी इस पर लगाम नहीं लगा पाई है। पिछले 40 साल से ऐसा क्यों हो रहा है, बंगाल की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक सुनील कुमार सिंह ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया ' देखिए बंगाल की राजनीतिक हिंसा का इतिहास पुराना है। यहां पर कैडर बेस्ड सिस्टम है। जो गांव-मुहल्ले तक बना हुआ है। इसे समझने के लिए हमें क्लब सिस्टम को समझना होगा। वहां पर हर मुहल्ले तक क्लब बने हुए है। जिसमें सत्ताधारी  पार्टी के कैडर के लोगों का कब्जा होता है। वहां पर छोटा सा भी काम बिना इन कैडर के सपोर्ट के नहीं किया जा सकता है। 

यह सिस्टम इस लेवल पर बना हुआ है कि अगर कोई अपने पैसे से घर भी बनवाना चाहता है तो बिना उनकी मंजूरी के नहीं बनवा सकता है। पहले इन क्लब पर वाम दलों का कब्जा था। अब पिछले 10 साल से तृणमूल कांग्रेस के कैडर का कब्जा है। और अगर कैडर की बात नहीं मानी तो काम नहीं होगा।

इसके अलावा स्थानीय स्तर पर ठेके से लेकर दूसरे काम सरकार में बैठी पार्टी के कैडर को ही मिलते हैं। ऐसे में अगर उनका कोई विरोध करता है या उसके विरोध में खड़ा होता है, तो फिर हिंसा ही डराने और धमकाने का सहारा होती है।

प्रमुख राजनीतिक हिंसा के मामले

  •  नवंबर 2020 को बंगाल  बीजेपी  ने आरोप लगाया था कि पिछले दो साल में 120 से अधिक बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई। 
  • बीरभूमि जिले में ही जुलाई 2000 में सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के  संघर्ष में 11 लोगों की मौत हो गई थी। 
  • इसी तरह साल 2007 में नंदीग्राम में सीपीएम और टीएमसी समर्थकों के संघर्ष में 10 लोग मारे गए थे।
  • इसके अलावा साल 1997 में सीपीएम की सरकार में तत्तकाली गृहमंत्री  बुद्धदेब भट्टाचार्य ने विधानसभा मे जानकारी दी थी कि साल 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनीतिक हिंसा में मारे गए।

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