नई दिल्ली। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने साफ कर दिया है कि जब तक लॉकडाउन के नियमों में कुछ संशोधन नहीं होंगे वो कोटा या देश के दूसरे हिस्सों में फंसे बिहार के छात्रों को वापस नहीं ला सकते हैं। अगर ऐसा वो करते तो लॉकडाउन का मकसद ही फेल हो जाएगा। उनके इस बयान पर बिहार के विपक्षी दलों के नेताओं ने ऐतराज जताया तो बीजेपी के एमएलसी संजय पासवान का कुछ और ही कहना है।
बीजेपी एमएलसी की दलील
संजय पासवान का कहना है कि यह प्रदेश के मुखिया का कर्तव्य है कि वो बच्चों को वापस लाए। कोटा या पुणे से बच्चों के न लाने के फैसले से राजनीतिक नुकसान भी हो रहा है। 3 मई से पहले बिहार सरकार को दूसरे राज्यों में फंसे बच्चों को वापस लाना ही चाहिए। इस साल विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। सामान्य तौर पर बिहार के ज्यादातर मध्य वर्ग के परिवारों से कम से कम एक बच्चा कोटा में पढ़ता है।
कोटा में बच्चों का बिहार में वोट कनेक्शन
संजय पासवान दलील देते हैं कि भले ही छात्रों की संख्या 1 हजार हो लेकिन 1 लाख परिवार प्रभावित हैं, परिवारों की चाहत है कि उनके बच्चे वापस घर आ जाएं। अगर 1 लाख परिवारों में पांच वोट हो को तम से कम पांच लाख वोट प्रभावित होंगे। इसलिए वो सीएम से आग्रह करते हैं कि कोटा और पुणे से बच्चों को लाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। उन्होंने कहा कि इस विषय को बिहार सरकार को मानवीय आधार पर भी देखना चाहिए।
बिहार में सियासी संग्राम
बता दें कि नीतीश कुमार के इस फैसले पर सियासत भी गर्मायी हुई है। राजद का कहना है कि जब लॉकडाउन की अवधि में दूसरे राज्य उचित इंतजाम के जरिए अपने छात्रों को वापस बुला चुके हैं तो बिहार सरकार को परेशानी क्या है। क्या दूसरे राज्यों को नियमों के बारे में नहीं पता है। हकीकत यह है कि नीतीश सरकार छात्रों के बारे में नहीं सोच रही है सिर्फ और सिर्फ यह अहम का मसला है। लेकिन इसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ रहा है जिनके बच्चे कोटा में फंसे हुए हैं।
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