अश्विनी कुमार
ऑक्सीजन की कमी के लिए कौन जिम्मेदार है? पीएम केयर फंड से आए कुछ वेंटिलेटर्स समय पर क्यों नहीं काम कर पाए? वैक्सीन की कमी क्यों है और वैक्सीनेशन में देरी किसकी वजह से हो रही है? जब जरूरत पड़ी तो देश का मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर इतना कमजोर कैसे रह गया? रोज हो रही हजारों मौतों का जिम्मेदार कौन है? ऐसे बहुतेरे सवाल हैं, जो पूरे देश को व्यथित कर रहे हैं। इन सवालों के जवाब से ही भविष्य का स्वस्थ भारत निकलेगा। लेकिन राजनीतिक जमात की चिंता बिल्कुल अलग है। जो बुरा हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी सामने वाले पर और जो भी कुछ अच्छा हो रहा है वह उनके सौजन्य से।
गडकरी दें या मनमोहन सिंह...अच्छी सलाह तो अच्छी ही रहेगी
काम ज्यादा और बातें कम करने की पहचान वाले वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश में वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए। कुछ विपक्षी नेताओं ने बगैर देर किए उनकी सलाह में अपने लिए सियासी ऑक्सीजन ढूंढ लिया। सीनियर कांग्रेसी जयराम रमेश ने पूछा- ‘लेकिन क्या उनके बॉस सुन रहे हैं?’ बॉस यानी प्रधानमंत्री। जयराम साहब ने यह भी कहा कि- ‘यह वही सुझाव है, जो डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 18 अप्रैल को दिया था।’ मंशा साफ है गडकरी को आगे कर मोदी पर निशाना भी साधना है और एक अच्छे सुझाव का श्रेय भी उनके (गडकरी) खाते में नहीं जाने देना है।
फिर तो गडकरी जैसे लोग चुप ही रहेंगे !
इसके बाद गडकरी का दूसरा बयान आया, जिसमें उन्होंने सरकार के स्तर पर पहले ही इसके लिए प्रयास शुरू हो जाने और इसकी जानकारी उन्हें न होने की बात कही। कांग्रेस के साथियों ने ये सोचने की जहमत नहीं उठाई कि गडकरी ने किसी की नाराजगी या विवाद से बचने के लिए सफाई दी या ऐसा करके उन्होंने विरोधियों की एक संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेने की संभावनाओं पर विराम लगा दिया। अगर आप यूं ही किसी की अच्छी सलाह को अपनी राजनीति का हथियार बनाने लगेंगे, तो विवादों से खुद को दूर रखने की नीयत वाला कोई भी नेता आइंदा चुप ही रहना बेहतर समझेगा।
...फिर हम किस तरह का लोकतंत्र चाहते हैं?
लेकिन पहले बयान पर तंज कर और फिर गडकरी की सफाई पर सवाल उठाकर कांग्रेस ने सरकार के अंदर से उठने वाली भिन्न राय/सलाह की संभावनाओं पर आघात जरूर किया। ऐसा करना कांग्रेस हित में तो हो सकता है, स्वस्थ लोकतंत्र के हित में कितना रहा, यह रोज लोकतंत्र के खात्मे की दुहाई देने वाली पार्टी ही बता सकती है। कांग्रेस इतना भर कहकर इंतजार कर सकती थी कि हम नितिन गडकरी साहब के बयान का समर्थन करते हैं और सरकार को तुरंत इस दिशा में काम करना चाहिए। लोकतंत्र में विपक्ष हर बात के लिए सत्ता पक्ष की खिंचाई और निंदा पर उतारु हो तो इससे लोकतंत्र की अच्छाइयों से तो देश वंचित रहता ही है, खुद विपक्ष भी अपना यश खोता चला जाता है. शायद इस देश में इस वक्त दूसरी बुरी चीजों आपदाओं के साथ यह बुराई भी संक्रमण की तरह फैल रही है।
बस विरोध ही विरोध...गुम हो गया ‘स्वस्थ विरोध’
लोकतंत्र में दो शब्द बेहद प्रचलित है- ‘स्वस्थ विरोध’ इसकी उम्मीद इन दिनों यूं तो किसी पार्टी से नहीं की जाती। लेकिन केंद्र से लेकर राज्यों तक जहां, जो भी विपक्ष में है, उस पर लोकतंत्र के इन दो सूत्र शब्दों का मान रखने की जिम्मेदारी आज पहले से ज्यादा है। कांग्रेस को इसका मान केंद्र और केंद्र के फैसलों पर कुछ भी कहते और करते हुए करना है, तो बीजेपी से भी पश्चिम बंगाल समेत उन तमाम राज्यों से जुड़े मुद्दों पर ऐसी ही अपेक्षा की जाती है, जहां गैर बीजेपी सरकारें हैं। जब आप सैकड़ों साल में एक बार आने वाले महासंकट के दौर से गुजर रहे हों, तो ये वक्त इसकी इजाजत नहीं देता कि विपक्ष और सत्ता पक्ष एक-दूसरे पर सवाल उठाने की होड़ रहे। एक-दूसरे की कमियां ढूंढने में वक्त जाया करते रहें।
एक-दूसरे कि गलतियों में उलझे रहें या समाधान तलाशें?
तथ्य है कि अपवादों को छोड़कर देश के किसी भी राज्य में ऑक्सीजन की कमी का न तो अनुमान लगाया जा सका और न ही इसके लिए कोई मजबूत एक्शन प्लान बना। पीएम केयर फंड से आए वेंटिलेटर्स कुछ जगहों पर धोखा दे गए। यह भी तथ्य है. लेकिन फिर साथ ही सवाल है कि क्या ज्यादातर राज्यों ने वेंटिलेटर्स पहुंचने के बाद इनकी जांच की? इन्हें अस्पतालों में लगाकर उनकी फंक्शनिंग देखी? मेडिकल कर्मियों की इसकी ट्रेनिंग दी? कमोवेश नहीं। ये चूक बीजेपी शासित राज्यों ने भी की और गैर बीजेपी शासित राज्यों ने भी।
वैक्सीन की उपलब्धता में कमी के लिए केंद्र जिम्मेदार है। ऐसा एकमत से सभी विपक्षी पार्टियों का आरोप है। ये आरोप आंशिक तौर पर सच हो सकता है। लेकिन समय-समय पर वैक्सीन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने वाले कुछ विरोधी नेता भी जब इस जुगलबंदी में शामिल दिखते हैं, तो फिर सबकी मंशा संदिग्ध हो जाती है।
दशकों हुई लापरवाही का प्रतिफल है मौजूदा सजा
देश का मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर इतना कमजोर दिखा, तो इसके लिए बेशक 7 साल से सत्ता में मौजूद बीजेपी भी जिम्मेदार है। लेकिन सबसे बड़ी हकीकत और कड़वा सच यह भी है कि मेडिकल सेक्टर को नजरअंदाज करने की हमारी 7 दशक पुरानी बुरी आदत ने इस बार देश का जितना नुकसान पहुंचाया है, उतना किसी भी गलत फैसले ने कभी हमारा बुरा नहीं किया।
अपनी जीडीपी का 5 प्रतिशत स्वास्थ्य सेक्टर पर खर्च करने के डब्लूएचओ के मानक को नजरअंदाज कर हमने पूरे देश के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया। सरकारें आती-जाती रहीं, स्वास्थ्य के लिए बजट 1 से 1.5 प्रतिशत के बीच रेंगता रहा। 2017 में हमने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनाई और 2025 तक स्वास्थ्य पर जीडीपी का 2.5 प्रतिशत खर्च करने का लक्ष्य रखा। चलिए, न से हां कुछ तो किया। लेकिन उम्मीद है कि सरकार अब इसे भी नाकाफी मान कर हेल्थ सेक्टर के लिए निर्णायक योजनाएं लेकर जरूर आएगी।
समय सबकुछ दर्ज कर रहा है
नितिन गडकरी ने क्या कहा और क्यों कहा? कांग्रेस ने टूलकिट बनाया या नहीं बनाया? केजरीवाल को सिंगापुर पर बयान देना चाहिए था या नहीं? जब दौर सामान्य होता है तो कुछ वक्त के लिए निरर्थक राजनीति भी मान्य होती है। फिलहाल वक्त बिल्कुल असामान्य है। देश उसी को याद रखेगा, जो अच्छी पहल के साथ सामने आएगा। खुद भी कुछ अच्छा करेगा और सामने वाले की अच्छे कामों को स्वीकार कर हौसला बढ़ाएगा।
डिस्क्लेमर: टाइम्स नाउ डिजिटल अतिथि लेखक है और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।