1999 में बुकिंग क्लर्क ने वसूले थे 20 रुपए अधिक, अब यात्री को 12% ब्याज के साथ रकम चुकाएगी रेलवे, जानें पूरा मामला  

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Updated Aug 08, 2022 | 13:02 IST

Mathura News : मथुरा के होलीगेट क्षेत्र के निवासी अधिवक्ता तुंगनाथ चतुर्वेदी ने सोमवार को बताया कि 25 दिसंबर 1999 को अपने एक सहयोगी के साथ मुरादाबाद जाने के वास्ते टिकट लेने के लिए वह मथुरा छावनी की टिकट खिड़की पर गए थे। उस समय टिकट 35 रुपये का था।

Booking clerk charged rs 20 more on ticket now railway to compensate passenger
अब रेलवे चुकाएगी 12% ब्याज के साथ रकम, जानें पूरा मामला। 

मथुरा : उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के एक अधिवक्ता ने रेलवे से 20 रुपये के लिए 22 साल से अधिक समय तक लड़ाई लड़कर आखिरकार जीत हासिल कर ली है। अब रेलवे को एक माह में उन्हें 20 रुपये पर प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगाकार पूरी रकम चुकानी होगी। साथ ही, आर्थिक व मानसिक पीड़ा एवं वाद व्यय के रूप में 15 हजार रुपये जुर्माने के रूप देने का निर्देश भी दिया गया है। जिला उपभोक्ता फोरम ने पांच अगस्त को इस शिकायत का निस्तारण करते हुए अधिवक्ता के पक्ष में फैसला किया।

70 रुपये की बजाए 90 रुपये काट लिए
मथुरा के होलीगेट क्षेत्र के निवासी अधिवक्ता तुंगनाथ चतुर्वेदी ने सोमवार को बताया कि 25 दिसंबर 1999 को अपने एक सहयोगी के साथ मुरादाबाद जाने के वास्ते टिकट लेने के लिए वह मथुरा छावनी की टिकट खिड़की पर गए थे। उस समय टिकट 35 रुपये का था। उन्होंने खिड़की पर मौजूद व्यक्ति को 100 रुपये दिए, जिसने दो टिकट के 70 रुपये की बजाए 90 रुपये काट लिए और कहने पर भी उसने शेष 20 रुपये वापस नहीं किए।

2 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगाकर उसे लौटाने का आदेश
चतुर्वेदी ने बताया कि उन्होंने यात्रा सम्पन्न करने के बाद ‘नॉर्थ ईस्ट रेलवे’ (गोरखपुर) तथा ‘बुकिंग क्लर्क’ के खिलाफ मथुरा छावनी को पक्षकार बनाते हुए जिला उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई। 22 साल से अधिक समय बाद पांच अगस्त को इस मामले का निपटारा हुआ। उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष नवनीत कुमार ने रेलवे को आदेश दिया कि अधिवक्ता से वसूले गए 20 रुपये पर प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगाकर उसे लौटाया जाए। सुनवाई के दौरान अधिवक्ता को हुई मानसिक, आर्थिक पीड़ा एवं वाद व्यय के रूप में 15 हजार रुपये बतौर जुर्माना अदा किया जाए।

22 साल से अधिक समय तक संघर्ष किया
उन्होंने यह भी आदेश दिया कि रेलवे द्वारा फैसला सुनाए जाने के दिन से 30 दिन के भीतर यदि धनराशि अदा नहीं की जाती, तो 20 रुपये पर प्रतिवर्ष 12 की बजाय 15 प्रतिशत ब्याज लगाकर उसे लौटाना होगा। अधिवक्ता तुंगनाथ चतुर्वेदी ने कहा, ‘रेलवे के ‘बुकिंग क्लर्क’ (टिकेट बुक करने वाले कर्मी) ने उस समय 20 रुपये अधिक वसूले थे। उसने हाथ से बना टिकट दिया था, क्योंकि तब कंप्यूटर नहीं थे। 22 साल से अधिक समय तक संघर्ष करने के बाद आखिरकार जीत हासिल की।’
 

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