बाज नहीं आ रहे कनाडाई नेता, आखिर किसान आंदोलन में क्‍यों है कनाडा की इतनी दिलचस्‍पी?

देश
Updated Jan 06, 2021 | 13:53 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

किसान आंदोलन के बीच कनाडा की ओर से लगातार टिप्‍पणी की जा रही है। इस बीच कंजरवेटिव सांसद कुंडली बॉर्डर पहुंच गए। कनाडाई नेता अब दिल्‍ली से लौट चुके हैं, लेकिन उनके दौरे ने कई सवाल खड़े किए हैं।

किसान आंदोलन में आखिर क्‍यों है कनाडा की दिलचस्‍पी? कुंडली बॉर्डर पहुंच गए कंजरवेटिव सांसद
किसान आंदोलन में आखिर क्‍यों है कनाडा की दिलचस्‍पी? कुंडली बॉर्डर पहुंच गए कंजरवेटिव सांसद   |  तस्वीर साभार: Twitter

नई दिल्‍ली : केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्‍ली की सीमाओं पर किसान बीते 28 नवंबर से ही प्रदर्शन कर रहे हैं। गतिरोध को दूर करने के लिए किसानों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच सात दौर की वार्ता हो चुकी है, जबकि 8 जनवरी को एक और बातचीत प्रस्‍तावित है। इन सबके बीच कनाडा लगातार भारत के आंतरिक मामलों में दखल देते हुए किसान आंदोलन को लेकर टीका-टिप्‍पणी कर रहा है।

कनाडाई नेता की नीयत पर सवाल

विदेश मंत्रालय की फटकार के बावजूद कनाडाई नेता अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब कनाडा में कंजरवेटिव पार्टी के नेता रणदीप बरार वीजा नियमों का उल्‍लंघन करते हुए कुंडली बॉर्डर पहुंच गए, जहां प्रदर्शनकारी किसान अपनी मांगों को लेकर डटे हुए हैं। कनाडाई नेता अब दिल्‍ली छोड़ चुके हैं, लेकिन उनकी इस यात्रा और वीजा नियमों का उल्‍लंघन कर किसानों के बीच पहुंचने के वाकये ने कनाडा के नेताओं की नीयत को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं।

सवाल उठे तो कनाडाई सांसद ने यह कहते हुए अपने दौरे और किसानों के बीच जाने को जायज ठहराया कि वह अपने ससुरालवालों से मिलने के लिए भारत पहुंचे थे। 2 जनवरी को कुंडली बॉर्डर पहुंचने के अपने फैसले को उन्‍होंने यह कहते हुए जायज ठहराने की कोशिश की कि बहुत से अंतरराष्‍ट्रीय पत्रकार पहले ही किसानों के आंदोलन को कवर कर रहे हैं। कंजरवेटिव सांसद ने यह भी कहा कि यह किसानों के हकों के साथ-साथ मानवाधिकार की बात भी है, जिसके लिए कनाडा के पीएम भी आवाज उठा चुके हैं।

भारत जता चुका है कड़ा ऐतराज

यहां उल्‍लेखनीय है कि इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भी नए कृषि कानूनों को लेकर जारी किसानों के विरोध-प्रदर्शन को लेकर टिप्‍पणी करते हुए इस पर चिंता जताई थी, जिस पर विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि कनाडा, भारत के आंतरिक मामलों से दूर रहेर। कनाडा के पीएम के बयान को 'गैर-जरूरी' करार देते हुए विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि राजनीतिक फायदे के लिए राजनयिक संबंधों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।

ऐसे में सवाल उठते हैं कि आखिर किसान आंदोलन में कनाडा को क्‍या सियासी फायदे हैं और कनाडाई नेता बार-बार किसान आंदोलन को लेकर टीका-टिप्‍पणी क्‍यों कर रहे हैं? इसकी एक बड़ी वजह कनाडा में रह रहे पंजाबी व सिख समुदाय के लोगों की एक बड़ी संख्‍या को बताया जाता है, जो वहां के चुनावों पर भी खासा असर डालते हैं। जस्टिन ट्रूडो की अगुवाई वाली कनाडा की मौजूदा सरकार में भी इस समुदाय के सदस्‍यों की महत्‍वपूर्ण भूमिका है और यही वजह है कि कनाडाई नेता किसान आंदोलन को लेकर लगातार टिप्‍पणी कर रहे हैं, ताकि कनाडा में वे सिख समुदाय का समर्थन हासिल कर सकें।

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