सीबीआई ने आज 14 राज्यों और कई केंद्र शासित प्रदेशों के 76 शहरों में ताबड़तोड़ छापे मारे। ये छापे मारे गए चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामले में। चाइल्ड पोर्नोग्राफी का अर्थ है कि बच्चों को सेक्सुअल एक्ट में या नग्न दिखाते हुए इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मैट में कोई चीज प्रकाशित करना या दूसरों को भेजना। इस मामले में कानून कहता है कि जो लोग बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री तैयार करते हैं, इकट्ठी करते हैं, ढूंढते हैं, देखते हैं, डाउनलोड करते हैं, विज्ञापन देते हैं, प्रमोट करते हैं, दूसरों के साथ लेनदेन करते हैं या बांटते हैं तो वह गैरकानूनी है। बच्चों को बहला-फुसलाकर ऑनलाइन संबंधों के लिए तैयार करना, फिर उनके साथ यौन संबंध बनाना या बच्चों से जुड़ी यौन गतिविधियों को रेकॉर्ड करना, एमएमएस बनाना, दूसरों को भेजना आदि भी इसके तहत आते हैं। यहां बच्चों से मतलब है- 18 साल से कम उम्र के लोग।
बच्चों के खिलाफ साइबर क्राइम 2019 की तुलना में 2020 में 400% से ज्यादा बढ़े हैं। इनमें से ज्यादातर मामले यौन कार्यों में बच्चों को दिखाने वाली सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण से जुड़े हैं। पोर्नोग्राफी के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में 161, महाराष्ट्र में 123, कर्नाटक में 122 और केरल में 101 दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा ओडिशा में 71, तमिलनाडु में 28, असम में 21, मध्यप्रदेश में 20, हिमाचल प्रदेश में 17, हरियाणा में 16, आंध्रप्रदेश में 15, पंजाब में 8, राजस्थान में 6 केस सामने आए थे।
ये केस बताते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का मामला चिंताजनक हो चुका है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस यू.यू. ललित ने एक संवाद कार्यक्रम में कहा था कि सिर्फ बाल तस्करी और बाल शोषण ही नहीं, चाइल्ड पोर्नोग्राफी भी एक ऐसी चीज है जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 2015 में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद केंद्र ने 850 पोर्न साइट्स पर बैन लगा दिया था। इसका विरोध हुआ तो केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी सफाई पेश की थी। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने तब के चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की बेंच के सामने कहा था कि अगर कोई अकेले में पोर्नोग्राफी देखना चाहता है तो उस पर बैन नहीं है। इंटरनेट के इस दौर में सभी पोर्न साइट्स को बैन करना मुश्किल है। हम किसी के बेडरूम में जाकर नहीं झांक सकते। लेकिन, सवाल अकेले आदमी का नहीं बच्चों का है। विडंबना ये कि कोरोना काल में पढ़ाई के लिए इंटरनेट पर ज्यादा वक्त बिताने की वजह से बच्चे ऑनलाइन यौन शोषण, अश्लील संदेशों के आदान-प्रदान और पोर्नोग्राफी का ज्यादा शिकार हो रहे हैं। और चिंताजनक बात ये है कि अधिकांश मामलों में ज्यादातर मां-बाप इस खतरे से परीचित ही नहीं हैं।
इंटरनेट के सुपरहाईवे पर बच्चों के फिसलने की संभावना बहुत है। दुर्भाग्य से नेट की दुनिया में बच्चों का एक्सेस बहुत कम उम्र से है, और इस दुनिया में कैसे रहना है, किससे दोस्ती करनी है और क्या सावधानियां बरतनी है इसकी प्रॉपर ट्रेनिंग बच्चों को नहीं दी जाती। तकनीकी रुप से ज्यादातर मामले में मां-बाप भी इतने सक्षम नहीं होते कि वो बच्चों को साइबर अपराधियों के चंगुल से बचा सकें। साइबर अपराधियों के निशाने पर बच्चे बड़े पैमाने पर हैं, हमें इस सच को स्वीकार करना होगा और इस बाबत जितनी सावधानियां संभव हों, वो लेनी होंगी।
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