नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच तनाव की स्थिति बीते करीब डेढ़ साल से बनी हुई है। इस चीन अपने नियंत्रण वाले सीमा क्षेत्रों में लगातार बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर काम कर रहा है तो भारत भी इसमें पीछे नहीं है। भारत ने भी विगत वर्षों में सीमा क्षेत्रों में कई आधारभूत संरचनाओं का निर्माण किया है, जो लगातार चीन की आंखों में खटक रहा है।
भारत जहां अपने सीमा क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास कर रहा है, वहीं चीन विवादित क्षेत्रों में भी ऐसी गतिविधियों को अंजाम देने से बाज नहीं आ रहा, जिस पर भारत ने कड़ा विरोध जताया है और दो टूक कहा कि चीन के अवैध को न तो कभी स्वीकार किया गया और न ही भविष्य में ऐसा होगा।
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भारत सरकार की यह प्रतिक्रिया चीन द्वारा पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील पर विवादित क्षेत्र में पुल निर्माण के कार्यों पर आई है। सरकार की ओर से शुक्रवार को संसद में बताया गया कि चीन पूर्वी लद्दाख में LAC पर स्थित पैंगोंग झील के जिस हिस्से पर पुल का निर्माण कर रहा है, वह 1962 से ही बीजिंग के गैर-कानूनी कब्जे में है। भारत सरकार ने चीन के इस अवैध कब्जे को न तो कभी स्वीकार किया है और न ही ऐसा किया जाएगा।
लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने दो टूक कहा कि पूर्वी लद्दाख में गतिरोध को लेकर चीन के साथ बातचीत तीन प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है। पहला यह कि दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा का पूरी तरह सम्मान करेंगे, दूसरा कोई भी पक्ष यथास्थिति बदलने का प्रयास नहीं करेगा और तीसरा, दोनों पक्ष सभी समझौतों का पूरी तरह पालन करेंगे।
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विदेश मंत्रालय की ओर से संसद में कहा गया, भारत सरकार ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर और लद्दाख भारत के अभिन्न अंग हैं। हम दुनिया के देशों से उम्मीद करते हैं कि वे भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करें।
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