लोक जनशक्ति का अध्यक्ष कौन है, पशुपति पारस या चिराग पासवान अब यह कानूनी लड़ाई का विषय बन चुता है। अगर ऐसा है तो उसके पीछे की वजह भी समझिए। चिराग पासवान ने पार्टी के संविधान का हवाला देते हुए कहा कि पार्टी का अध्यक्ष सिर्फ दो सूरत में ही बदल सकता है या तो उसकी मौत हो जाए या वो स्वेच्छा से पद छोड़ दे। अब ये दोनों सिद्धांत उनके ऊपर लागू नहीं हो रहे हैं लिहाजा पार्टी के अध्यक्ष वो ही हैं। इन सबके बीच उन्होंने 20 जून को राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद की बैठक बुलाई है।
मैं शेर का बेटा और मैं ही एलजेपी का अध्यक्ष
चिराग पासवान कहते हैं कि पार्टी मेरे पिता द्वारा बनाई गई थी और मैं इसे इस तरह टूटते नहीं देख सकता। जरूरत पड़ी तो मैं सुप्रीम कोर्ट का रुख करूंगा। मैं एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार हूं। मैं शेर का बेटा हूं और मुझे डर नहीं है। मैं लोजपा अध्यक्ष हूं। चिराग पासवान ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस के जरिए यह बताया कि क्यों पशुपति कुमार पारस का दावा कानूनी तौर पर वैध नहीं है। पार्टी के संविधान को उन्होंने नहीं पढ़ा है। इसके साथ ही उन्होंने प्रिंस राज को बिहार एलजेपी अध्यक्ष पद से विदाई करने के साथ ही राजू तिवारी की नियुक्ति कर दी थी।
क्या कहते हैं जानकार
अब इस तरह के हालात में चिराग पासवान के पास क्या विकल्प है जानकार कहते हैं कि एक पल को अगर मान लिया जा कि चिराग कानूनी लड़ाई लड़ेंगे तो उसका अर्थ यह है कि वो लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं। लेकिन जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं उसमें उन्हें कानूनी लड़ाई के साथ जमीन पर लड़ना होगा। अब ऐसे में सवाल यह है कि क्या वो नीतीश कुमार के खिलाफ अकेले एकला चलो की नीति पर अमल करते हुए आगे बढ़ेंगे या राजद के साथ किसी तरह का अलायंस करेंगे। अगर राजद की बात करें तो ज्यादातर नेता इस बात के पक्षधर हैं कि चिराग को दामन थाम लेना चाहिए लेकिन लालू और तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखें हैं।
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