नई दिल्ली: बच्चों के अधिकारों पर दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी 'विवादास्पद' और 'भ्रामक' फतवों को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) में शिकायत दर्ज कराई गई है। शिकायतकर्ता ने फतवों की एक सूची प्रदान की है, जो उनकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं, और कहा है कि ये फतवे 'गैरकानूनी' हैं और कानून के प्रावधानों के खिलाफ हैं।
शिकायतकर्ता के अनुसार, कुछ फतवे में कहा गया है कि दारूल उलूम देवबंद कहता है कि बच्चा गोद लेना गैरकानूनी नहीं है, बल्कि सिर्फ बच्चे को गोद लेने से वास्तविक बच्चे का कानून उस पर लागू नहीं होगा बल्कि यह आवश्यक होगा कि मैच्योर होने के बाद वह परिपक्व होने के बाद उससे शरिया पर्दा का पालन करें। उसके परिपक्व होने के बाद दत्तक बच्चे को संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा और बच्चा किसी भी मामले में वारिस नहीं होगा।
ने आगे दावा किया कि इसी तरह के फतवे दारुल उलूम देवबंद में स्कूल बुक सिलेबस, कॉलेज यूनिफॉर्म, गैर-इस्लामिक माहौल में बच्चों की शिक्षा, लड़कियों की उच्च मदरसा शिक्षा, शारीरिक दंड आदि से संबंधित हैं। एनसीपीसीआर ने कहा कि उसने शिकायत का संज्ञान लिया है और लोगों द्वारा उठाए गए सवालों के जवाबों की जांच की है और वे देश के कानूनों और अधिनियमों के अनुरूप नहीं हैं।
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उदाहरण के लिए, एक जवाब में, फतवे ने कथित तौर पर कहा कि टीचर को बच्चों को पीटने की अनुमति है, हालांकि, आरटीई अधिनियम, 2009 के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड प्रतिबंधित है। आयोग ने कहा कि दारुल उलूम देवबंद द्वारा दिए जा रहे इस तरह के बयान भ्रामक हैं और व्यक्ति को कानून की गलत व्याख्या प्रदान करते हैं।अगर उस व्यक्ति द्वारा ऐसा किया जाता है तो यह देश के कानून के प्रावधानों का उल्लंघन होगा।
एनसीपीसीआर ने आगे कहा कि लोगों को इस तरह की जानकारी प्रदान करना उकसाने की प्रकृति में है जो लोगों को अपराध करने के लिए प्रेरित करेगा। यह कानून द्वारा निर्धारित प्रावधानों का उल्लंघन है। आयोग ने इस्लामिक मदरसा द्वारा लोगों को दिए गए उत्तरों की जांच का हवाला देते हुए सहारनपुर के जिलाधिकारी को भी लिखा है।
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