कांग्रेस के खाते में फिर शून्य!, अब नहीं तो कभी नहीं, शीला दीक्षित जैसे करिश्माई चेहरे की जरूरत

देश
आलोक राव
Updated Feb 11, 2020 | 13:16 IST

Congress seat in Delhi: दिल्ली में दशकों तक शासन करने वाली कांग्रेस की यह हालत हो जाएगी, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। कभी शीला दीक्षित दिल्ली का चेहरा हुआ करती थीं।

कांग्रेस के खाते में फिर शून्य, अब नहीं तो कभी नहीं, शीला दीक्षित जैसे करिश्माई चेहरे की जरूरत,  Congress needs Sheila Dixit's charisma to revive in delhi politics
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन और नीचे गिरा। 

नई दिल्ली: दिल्ली चुनाव के नतीजों से पहले रुझानों ने दिल्ली की तस्वीर करीब-करीब साफ कर दी है। दिल्ली की जनता राजधानी की कमान एक बार फिर अरविंद केजरीवाल के हाथों में सौंपने जा रही है। आप एक बार फिर प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज कर रिकॉर्ड कायम करेगी। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदर्शन सुधार आया है और वह अपनी सीट और वोट शेयर दोनों बढ़ाती हुई दिख रही है। सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को हुआ है। कांग्रेस के खाते में इस बार भी कोई सीट जाते हुए हुए नहीं दिख रही है। इस चुनाव में उसका वोट शेयर भी घटकर 4.1 प्रतिशत पर आ गया है।

दिल्ली में दशकों तक शासन करने वाली कांग्रेस की यह हालत हो जाएगी, इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी। कभी शीला दीक्षित दिल्ली का चेहरा हुआ करती थीं। शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगातार 15 वर्षों तक दिल्ली में शासन किया लेकिन सक्रिय राजनीति से दीक्षित के ओझल होने और फिर उनके निधन के बाद कांग्रेस दिल्ली में एकदम से निष्प्राण हो गई। विधानसभा के दो लगातार चुनाव में कांग्रेस का बदहाल प्रदर्शन उसकी डवांडोल हालत को दर्शाता है। 

दिल्ली में कभी शीला दीक्षित का करिश्मा काम करता था। दिल्ली को चमकाने और उसे तेज गति से आगे बढ़ाने में शीला के योगदान को आज भी याद किया जाता है। वह साल 1998 से 2013 तक लगातार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं और इस दौरान उन्होंने दिल्ली की काया पलटते हुए उसे विश्वस्तरीय राजधानियों में शुमार किया। दिल्ली को प्रदूषण मुख्त करने एवं पर्यावरण को स्वच्छ बनाने की दिशा में उन्होंने महत्वपूर्ण कदम उठाए। 

शीला ने परिवन बेड़ों में सीएनजी युक्त वाहनों को शामिल किया और दिल्ली को मेट्रो रेल की सौगात दी। उन्होंने राजधानी में फ्लाईओवर्स की जाल बिछा दी। इससे दिल्ली की जाम से लोगों को हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई। शीला के प्रयासों से ही राजधानी की सड़कों से ब्लू लाइन बसों को हटना पड़ा। एक कुशल प्रशासक एवं एक महेनती सीएम के रूप में शीला दीक्षित ने अपनी पहचान बनाई। 15 सालों तक उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस को अपराजेय स्थिति में बनाए रखा लेकिन 2013 में उनकी राजनीतिक पारी का अवसान हुआ। 

साल 2020 के कॉमनवेल्थ गेम्स के घोटालों की आंच शीला दीक्षित तक पहुंची और भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से बाहर निकले अरविंद केजरीवाल ने साल 2013 में नई दिल्ली सीट पर उन्हें शिकस्त दी। इस हार के बाद शीला और कांग्रेस दोनों राजधानी में कमजोर होती गईं। शीला दीक्षित के निधन के बाद कांग्रेस में उभरे शून्य को यदि दिल्ली कांग्रेस के नेता चाहते तो वे भर सकते थे लेकिन उनकी उदासीनता एवं आपसी गुटबाजी ने पार्टी को इतना कमजोर कर दिया कि आज उसे एक सीट पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। 2015 विस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 9.7 था जो इस बार घटकर 4.1 पर जाता दिख रहा है। यहां कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के लिए काफी चिंताजनक स्थिति है। 

यहां देखें दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के नतीजे

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