नई दिल्ली : बहुत कम लोगों को पता होगा कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में उसी तरह एक खास समुदाय को कांग्रेस पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं द्वारा निशाना बनाया गया था, जैसा कि दिल्ली में 1984 में भड़के सिख विरोधी दंगों के दौरान हुआ था। गांधी की मौत का बदला लेने के लिए तब महाराष्ट्र में ब्राह्मणों को निशाना बनाया गया था और हजारों लोगों की हत्या कर दी गई थी।
जाने-माने इतिहासकार विक्रम संपत ने टाइम्स नाउ में नविका कुमार से बातचीत में कहा कि इस कृत्य में कांग्रेस के कई पदाधिकारी और पदाधिकारी भी शामिल थे। उन्होंने यह भी कहा कि नागपुर में 100 से अधिक कांग्रेस कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था और आजादी के बाद के इस काले अध्याय को इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया।
उन्होंने कहा, 'आज की पीढ़ी को पता नहीं होगा कि ऐसा हुआ भी। 'सावरकर : इकोज फ्रॉम ए फॉरगॉटन पास्ट' लिखते समय, कई लोग अपने अनुभव बयां करने के लिए सामने आए, जिनके पूर्वजों ने वह दौर देखा था या इससे प्रभावित रहे थे। नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या ने सावरकर को भारतीय राजनीति में एक अस्वीकार्य व्यक्ति बना दिया। गांधी की हत्या की साजिश रचने के आरोपियों में उनका भी नाम था।'
उन्होंने कहा, 'हालांकि अदालत ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था, लेकिन अलग तरह का नैरेटिव उन्हें लेकर बुना गया।' उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास के कई पहलू अब भी सामने नहीं आए हैं और इतिहास के कई पन्नों को जानबूझकर मिटा दिया गया।
वीर सावरकर की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि उनके कई विचार अपने समय से बहुत आगे थे। वह गाय पूजा के साथ-साथ जाति व्यवस्था में भी विश्वास नहीं करते थे।
उन्होंने गाय को एक उपयोगी जानवर बताया और कहा कि इसकी रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन पूजा नहीं की जानी चाहिए। उनका मानना था कि किसी जानवर को देवत्व के स्तर तक उठाना भगवान और इंसान, दोनों का अपमान है।
उनके विचारों ने रूढ़िवादी सोच को झकझोर कर रख दिया था और इसलिए उनके तथा आरएसएस के बीच कई मतभेद पैदा हो गए। उन्होंने यह भी कहा कि वह कभी गोडसे का समर्थन करने वालों के साथ नहीं हो सकते। उसने बहुत ही जघन्य अपराध किया। लेकिन गांधी की हत्या में सावरकर का कोई लिंक नहीं था। कोर्ट ने उन्हें इस मामले में बरी किया था।
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