Udaipur Congress Chintan Shivir: कांग्रेस नव संकल्प चिंतन शिविर में कांग्रेस भविष्य की राह तलाशने के लिए अतीत का सहारा ले रही है। पार्टी ने इस बार शिविर में कई ऐसे नेताओं के पोस्टर लगाया है जिन्हे या तो वो भूल चुकी थी या फिर याद नही करना चाहती थी। लेकिन चुनावी राजनीति में एक के बाद एक चुनाव हारने के बाद अब उसे अपने उन्ही पुराने नेताओं की याद आ रही है। कल तक जिस पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को पार्टी चिमटे से भी नही छूना चाहती थी, आज उसी नरसिम्हा राव की तस्वीरों और स्लोगन से चिंतन शिविर भरा पड़ा है। कुछ इसी तरह से देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, भीमराव अंबेडकर, लाला लाजपत राय की भी तस्वीर चिंतन शिविर में प्रमुखता से लगाया गया है।
यूं तो चिंतन शिविर में पार्टी संगठनात्मक सुधार और बदलाव पर चर्चा कर ही रही है। लेकिन पहली बार पार्टी को इस बात का भी एहसास हो गया है मोदी के इस दौर में अब नेहरू–गांधी के सहारे चुनावी वैतरणी नही पार कर सकती है। उसके लिए अब उसे अतीत और इतिहास के उन पन्नों को पलटना होगा जिसे जानबूझकर अब नेपथ्य में छिपा दिया गया था। ये कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी ही है की जिस नरसिम्हा राव, राजेंद्र प्रसाद, लाजपत राय की एक भी तस्वीर कांग्रेस के मुख्यालय में नही है उसे अब चिंतन शिविर के माध्यम से पुनर्जीवित किया जा रहा है।
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हाल के सालों में या यूं कहे की नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस ने जिन महानायकों को कब्र में दफन कर दिया था, जो स्वाधीनता आंदोलन महानायक थे, जिन्हे गांधी परिवार तिरस्कृत करता रहा, मोदी ने उन्हे राष्ट्रीय धरोहर बना दिया। फिर चाहे वो सुभाष चंद्र बोस हो, सरदार बल्लभ भाई पटेल या अंबेडकर हो मोदी ने न सिर्फ बीजेपी में इन्हे आत्मसात किया, बल्कि हमेशा हमेशा के लिए कांग्रेस से उनको छीन लिया। बाकी बचे भगत सिंह और अंबेडकर पर आम आदमी पार्टी ने अपना कॉपी राइट बना लिया।
सियासी तौर पर सिकुरती कांग्रेस सत्ता से बेदखल तो हो ही गई है, अब उसके सामने चुनौती अपने अस्तित्व के खतरे का है। लगभग 9 साल बाद कांग्रेस अपनी दुर्गति पर आत्मचिंतन कर रही है। चुनाव जीतने से लेकर संगठन की ढीली गांठ को कसना अब कांग्रेस के लिए सिर्फ जरूरी ही नही, जिंदा रहने की मजबूरी बन गई है। ऐसे में पार्टी को ये एहसास होना की उसका सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड "नेहरू–गांधी" ब्रांड उसे जनता का वोट दिलवाने में नाकामयाब हो रही है। उसे अपने पुरानी पीढ़ी की तरफ वापिस लौटने को मजबूर कर रहा है।
चिंतन शिविर को ये बात और दिलचस्प बनाता है वो ये है की इस बार दूसरे नेताओं की तस्वीर नेहरू–गांधी के मुकाबले ज्यादा लगाई गई है। पार्टी की रणनीति है को इन तस्वीरों में नए रंग भरकर वो आने कर आने वाले दिनों में जनता में अपनी स्वीकारिता को बढ़ा सके। साथ ही अपने पुराने ब्रांड को चमकाकर कर फिंकी पर रही पार्टी में नई जान डाल सके।
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