कोरोना ने अहसास कराया मानव ने किस हद तक पर्यावरण को हानि पहुंचाई : वेंकैया नायडू

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Updated Apr 22, 2020 | 13:54 IST

वेंकैया नायडू ने कहा है कि कोरोना के वैश्विक संकट ने विकास की अवधारणाओं पर सवाल खड़ किये हैं और यह अहसास कराया है कि मानव ने किस हद तक पर्यावरण संतुलन को हानि पहुंचाई है।

Vice President M Venkaiah Naidu
कोरोना के वैश्विक संकट ने विकास की अवधारणाओं पर सवाल खड़ किये हैं- वेंकैया नायडू  |  तस्वीर साभार: BCCL

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने बुधवार को विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर देशवासियों से पृथ्वी पर पर्यावरण के सजग प्रहरी बनने का आह्वान करते हुये कहा है कि कोरोना के वैश्विक संकट ने विकास की अवधारणाओं पर सवाल खड़ किये हैं और यह अहसास कराया है कि मानव ने किस हद तक पर्यावरण संतुलन को हानि पहुंचाई है।

नायडू ने प्रकृति के साथ संतुलन कायम करने के बारे में सोशल मीडिया पर अपने विचार साझा करते हुये कहा कि हम विश्व पृथ्वी दिवस की 50 वीं सालगिरह ऐसे समय मना रहे हैं जबकि सारा विश्व कोविड-19 महामारी के कारण अभूतपूर्व स्वास्थ्य आपदा से ग्रस्त है। फेसबुक पर अपने लेख में कोरोना संकट के बीच वैश्विक पर्यावरण के विषय में कुछ चौंकाने वाले तथ्य उजागर होने की बात कहते हुये नायडू ने कहा विश्व भर में कोरोना के कारण लागू पूर्ण बंदी (लॉकडाउन) में विश्व थम सा गया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के स्तर में कमी आई है और वायु स्वच्छ हुई है। इसने हमको आभास दिलाया है कि मानव ने किस हद तक पर्यावरणीय संतुलन को हानि पहुंचाई है।

उपराष्ट्रपति ने ट्वीटर पर भी कहा कि कोविड-19 के विरुद्ध मनुष्य के अभियान ने हमारी विकास की अवधारणा पर गहरे सवाल उठाए हैं, जिनका निराकरण करना मानव के अस्तित्व मात्र के लिए अपरिहार्य है। हमें सोचना होगा कि आधुनिकीकरण की अंधी दौड़ में मानव ने प्रकृति को कितनी हानि पहुंचाई है।
उन्होंने आह्वान किया कि आज विश्व पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी के पर्यावरण के संतुलन को बहाल करने और उसके विविधतापूर्ण परिवेश का संरक्षण करने का संकल्प लें। यह समझें कि मनुष्य इस पृथ्वी को अन्य जीव, जंतुओं और वनस्पति से साथ साझा करता है, उनका भी इस पृथ्वी पर उतना ही अधिकार है जितना मनुष्य का है।

नायडू ने कहा कि पृथ्वी दिवस के अवसर पर एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के उस मंत्र का स्मरण करें कि प्रकृति सम्मत विकास ही संस्कृति है, प्रकृति को नष्ट करके किया गया विकास विकृति उत्पन्न करेगा। अपने सनातन संस्कारों, अपने शांति मंत्रों से सीखें, उनसे मार्गदर्शन लें।

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