पांच राज्यों के चुनावों में हारने के बाद भी कांग्रेस पार्टी कुछ सबक लेते दिखाई नहीं दे रही है। नतीजों के दो हफ्ते गुजर चुके हैं। सभी पांचों राज्यों में नई सरकार का गठन, मुख्यमंत्री और यहां तक कि मंत्रिमंडल का भी गठन हो चुका है। लेकिन कांग्रेस अभी भी हार के सदमे से बाहर नहीं निकल सकी है। पार्टी ने अभी तक किसी भी राज्य में विधायक दल का नेता तक नहीं चुना है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी पांचों राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों का इस्तीफा ले लिया था। लेकिन अभी भी उन राज्यों में नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है। सियासी तौर पर कांग्रेस का जनाधार लगातार सिमटता जा रहा है। लेकिन कांग्रेस अभी भी लेट लतीफी और पुराने ढर्रे से बाहर नहीं निकल पा रही है। हर बार चुनाव के बाद औपचारिकता के लिए कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुला ली जाती है। लेकिन न तो जवाबदेही तय होती है और ना हो नई राह पार्टी चुनती है।
बहरहाल कांग्रेस को सबसे ज्यादा नाउम्मीदी पंजाब और उत्तराखंड के चुनावी नतीजों से हुई है। पार्टी को उम्मीद थी कि पंजाब में सिद्धू और चन्नी और उत्तराखंड में हरीश रावत के सहारे वो एक बार फिर सत्ता में काबिज हो पाएगी। लेकिन पार्टी के मसूबों पर पानी फिर गया। सभी बड़े चेहरे खुद चुनाव हार गए।
पंजाब में सिर्फ 18 सीटें जीत पाई कांग्रेस
कांग्रेस पंजाब अब किसी नए चेहरे पर दांव लगाना चाहती है। पार्टी सिर्फ 18 सीटें जीत पाई है। सिद्धू, चन्नी के हारने और सुनील जाखड़ के चुनाव नही लड़ने से पार्टी के पास अब बहुत सीमित विकल्प हैं, इसलिए विधायक दल का नेता चुनना भी बड़ी चुनौती है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व प्रताप सिंह बाजवा या फिर अरुणा चौधरी को विधायक दल के नेता की जिम्मेदारी दे सकता है। इसी तरह पंजाब में नए प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अब किसी नए कंधे को मिलेगी। नए प्रदेश अध्यक्ष की रेस में रवनीत बिट्टू, राजा वेडिंग, सुखजिंदर रंधावा या फिर संतोख चौधरी को मौका मिल सकता है। बहरहाल प्रभारी हरीश चौधरी का कहना है की विधायक दल के नेता और प्रदेश अध्यक्ष के लिए नाम कांग्रेस अध्यक्ष को भेज दिया गया है। बहुत जल्द नेतृत्व की तरफ से नामों का ऐलान किया जाएगा।
सबसे बुरे दौर से गुजर रही कांग्रेस
ये हाल सिर्फ पंजाब का ही नही है। उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा और उत्तर प्रदेश किसी भी प्रदेश को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं लिया गया है। पार्टी फैसला नहीं ले पा रही है, पार्टी के भीतर अंतर्कलह चरम पर है, नेतृत्व के प्रति आस्था घटती जा रही है, G 23 के नेताओं को हाशिए पर डाला जा रहा है। कुल मिलकर कांग्रेस अपनी स्थापना और आजादी के बाद अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। फिर भी न तो वो समय के साथ बदलने को तयार है और ना ही अपनी पुरानी विचारधारा और वर्तमान नेतृत्व के जरिए जानता का दिल जीत पा रही है।
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