नई दिल्ली: बीते मार्च में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह मीडिया के सामने अपनी सरकार के 4 साल का लेखा-जोखा पेश कर रहे थे, वह पूरे जोश से भरे हुए थे, और मीडिया को यह बताने में मशगूल थे कि मैंने 15 किलोग्राम वजन घटा लिया है और जल्द ही 10 किलोग्राम वजन घटाने वाला हूं। और उसी महीने में उन्होंने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को अपना सलाहकार बनाया था। साफ है कि कैप्टन 80 की उम्र में 2022 की चुनावों के लिए पूरी तैयारी कर रहे थे। और उन्होंने इस बात का तनिक भी अंदाजा नहीं था कि नवजोत सिंह सिद्धू का विरोध केवल 6 महीने के अंदर उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर कर देगा। अब पंजाब की कमान चरणजीत सिंह चन्नी के पास है। जो कि प्रदेश के पहले दलित सिख मुख्यमंत्री हैं। अमरिंदर सिंह की कुर्सी जाने की पीछे तीन प्रमुख वजहें हैं और इसके संकेत उन्हें जुलाई से ही मिलने लगे थे।
पंजाब में 32 फीसदी दलित बने हॉट
असल में चरणजीत सिंह चन्नी कांग्रेस आलाकमान की पहली पसंद नहीं थे, लेकिन जिस तरह शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी और भाजपा ने दलितों को लुभाना शुरू किया है। उसके बाद कांग्रेस के लिए इस होड़ में पीछे रहना मुश्किल हो गया था। खास तौर पर जब पार्टी का अंतरकलह उसे 2022 के चुनावों में बैकसीट पर ढकेल रहा था। कांग्रेस सूत्र के अनुसार दलित एक समय कांग्रेस का पंजाब में सबसे बड़ा समर्थक रहा था। लेकिन पिछले चुनावों में आम आदमी पार्टी ने सेंध लगाई थी। पंजाब में 32 फीसदी दलित आबादी है।
इसके अलावा प्रमुख विपक्षी दल शिरोमणि अकालीदल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर इस बात का ऐलान कर दिया है कि अगर उनकी सरकार आई तो प्रदेश में दलित उप मुख्यमंत्री होगा। इसी तरह भाजपा ने किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए दलित सीएम का दांव खेला है। ऐसे में कांग्रेस के पास मौका था कि वह उस दांव को हकीकत में तब्दील कर सबसे आगे निकल जाय। पार्टी के एक नेता का कहना है दूसरे दल ऐसा करने की बात कर रहे हैं। लेकिन हमने उसे हकीकत में बदल दिया है। पंजाब की जनता इसे नजरअंदाज नहीं करेगी। असल में पंजाब की 117 विधान सभा सीटों में 34 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं और चुनाव में पार्टी के लिए एक बड़ा फैक्टर बन सकते हैं। 2017 में पंजाब में कांग्रेस को 80 सीटें मिली थी।
पी.के. का इस्तीफा और सिंद्धू की ताजपोशी थे बड़े संदेश
असल में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने का मन आलाकमान ने काफी पहले ही बना लिया था। इसलिए जब कैप्टन के लाख विरोध के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया तो साफ था कि आलाकमान कैप्टन को लेकर अपना मन बना चुका है। इसी कड़ी में प्रशांत किशोर ने अगस्त में अमरिंदर के सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने कहा था कि वह काम से ब्रेक लेना चाहते हैं और भविष्य में क्या करना है। इस पर विचार करेंगे। इन दो झटकों के बाद ग्राउंड सर्वे ने आगे की तस्वीर साफ कर दी थी।
सर्वे से बिगड़ी बात
सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान ने इस दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के प्रति लोगों की सोच को लेकर 2-3 सर्वे कराए थे। फीड बैक में कांग्रेस के प्रति नाराजगी की बात सामने आई। यही नहीं सर्वे में वह आम आदमी पार्टी से पिछड़ती हुई नजर आई थी। एक सर्वे तो सिद्धू के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भी किया गया। जिसके आधार पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पहल करते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह को कुर्सी छोड़ने के लिए कहा। एक अन्य सूत्र के अनुसार कैप्टन अमरिंदर सिंह का राहुल और प्रियंका गांधी को ज्यादा तवज्जो नहीं देना और हाल ही में जलियावाला बाग के सौंदर्यीकरण मामले में राहुल गांधी के बयान से अलग रुख रखना भी कैप्टन के खिलाफ गया। खैर कैप्टन अब 80 की उम्र में क्या फैसला करते हैं, इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
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