बच्चों के खिलाफ दारुल उलूम देवबंद का फतवा, वेबसाइट बंद करने के आदेश के पहले विवादित फतवे को हटाया गया

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गौरव श्रीवास्तव
गौरव श्रीवास्तव | कॉरेस्पोंडेंट
Updated Feb 07, 2022 | 13:20 IST

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के देवबंद में एक फतवे पर जारी विवाद ने तूल पकड़ लिया है। प्रशासन की ओर से जारी आदेश के बाद संस्था (Darul Uloom Deoband) की की वेबसाइट बंद करने का आदेश कराई गई है।

Darul Uloom Deoband's fatwa against children, controversial fatwa removed before order to shut down website
बच्चों के खिलाफ दारुल उलूम देवबंद का फतवा, बाद में हटाया 
मुख्य बातें
  • बच्चों को लेकर दारुल उलूम ने जारी किया फतवा
  • दारुल उलूम की वेबसाइट पर सहारनपुर डीएम ने लगाई पाबंदी
  • फतवों में स्कूल ड्रेस, शारीरिक दंड, किताबों के सिलेबस से जुड़े कई जवाब थे जो कानून विरुद्ध हैं

नई दिल्ली: बच्चों को गोद लेने को लेकर दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी कुछ फतवे को लेकर विवाद हो गया है। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के नोटिस के बाद सहारनपुर के जिलाधिकारी ने जांच पूरी होने तक दारुल उलूम की वेबसाइट बंद करने का आदेश दिया है। हालांकि देवबंद के मीडिया इंचार्ज अशरफ उस्मानी ने कहा है कि हमने सभी फतवे को वेबसाइट से हटा दिया गया है।

क्या है फतवे का पूरा विवाद? 

सहारनपुर के देवबंद में स्थित दारुल उलूम इस्लामिक शिक्षा का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र है। दारुल की वेबसाइट पर एक सेक्शन है जहां इस्लाम के अनुयायी सलाह मांगते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए? इन सवालों का जवाब इस्लामिक जानकर कुरान और अन्य धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर देते हैं। इन्हीं में से कई फतवे को 'राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग' ने पाया कि ये बच्चों के अधिकार का हनन करते हैं साथ ही कानून के खिलाफ भी हैं। आयोग ने इसी साल 15 जनवरी को एक नोटिस सहारनपुर के जिलाधिकारी को भेजकर दारुल उलूम की वेबसाइट पर कार्रवाई करने को कहा था। इस नोटिस में वेबसाइट पर दिए गए 10 फतवों का लिंक भी था। आयोग ने पाया कि इन फतवों में स्कूल ड्रेस, शारीरिक दंड, किताबों के सिलेबस से जुड़े कई जवाब थे जो कानून विरुद्ध हैं। 

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क्या लिखा था दारुल उलूम के फतवों में? यहां पर हम कुछ पत्रों के बारे में लिख रहे हैं जिनके आधार पर ही देवबंद ने शिकायत दी थी. हम उनका सारांश यहां पर लिख रहे हैं।

सवाल- मेरी बेटी मदरसे में 9 वीं क्लास में है. रमजान के बाद वो कक्षा 10 में चली जायेगी। पढ़ लिखकर वो डॉक्टर बनना चाहती है लेकिन मदरसे में सारे पुरुष अध्यापक हैं क्या उसे वहां पढ़ाना हराम है?

फतवा- जब आपकी बेटी 14 साल की हो जाए तो उसे ऐसे मदरसे में पढ़ाना ठीक नहीं है जहां पर पुरुष अध्यापक हों। हमारी जानकारी के हिसाब से गुजरात और अलीगढ़ में कुछ ऐसे मदरसे हैं जहां पर पर्दे में रहकर पढ़ाई कराई जाती है।पढ़ना अच्छी बात है लेकिन कोएजुकेशन वाला माहौल जहां लड़के और लड़कियां दोनों हो वहां लड़की को पढ़ाना ठीक नहीं है।

दूसरा सवाल- हमारे दो बेटियां हैं लेकिन हम एक लड़के को गोद लेना चाहते हैं क्या इसकी इजाजत है?

फतवा- बच्चे को गोद लेना गैरकानूनी नहीं है लेकिन किसी भी सूरत में गोद लिया हुआ बच्चा संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं होगा। सिर्फ गोद ले लेने से वह आप की वास्तविक संतान नहीं बन जाएगा और ऐसे में उसके बड़े होने के बाद आपको उससे पर्दा करना होगा। अगर आप ने नवजात शिशु गोद लिया है और उसे स्तनपान कराया है तो वह आपके परिवार का हिस्सा तो होगा और उससे पर्दे की जरूरत नहीं होगी लेकिन वह आपका उत्तराधिकारी नहीं बन सकेगा।

तीसरा सवाल- हमारे स्कूल में पेंट शर्ट के साथ टाई पहनना अनिवार्य है. क्या यह गैर इस्लामिक है?

फतवा- टाई ना सिर्फ दूसरे देशों के ड्रेस का एक हिस्सा है बल्कि एक धार्मिक चिन्ह भी है। कई उलेमाओं का मानना है कि टाई क्रॉस से जुड़ा हुआ है ऐसे में टाई पहनना गैर इस्लामिक है।

इसी तरह के सात फतवे

इसी तरह के करीब 7 फतवे और थे जिन पर आई शिकायत के आधार पर 'राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग' ने कार्रवाई के निर्देश दिए थे। ऐसे ही फतवे में कहा गया कि बच्चों को शारीरिक दंड दिया जा सकता है लेकिन शिक्षा के अधिकार के कानून के तहत शारीरिक दंड की मनाही है। आयोग ने अपने नोटिस में ये भी कहा कि,'इस तरह के फतवे न केवल भ्रामक हैं बल्कि कानून की नज़र में अवैध भी हैं। शिक्षा के अधिकार के अलावा भारत का संविधान बच्चों को ये समानता का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।  इसके अलावा, गोद लेने पर अंतरराष्ट्रीय 'हेग कन्वेंशन'  भारत ने अपनी सहमति दे रखी है जो कहता है कि गोद लिया हुए बच्चे को हर अधिकार मिलेगा।कोई भी बच्चा जिसे किसी भी माता-पिता द्वारा गोद लिया जाता है उसे उनके जैविक सन्तानों के बराबर अधिकर प्राप्त है।

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बाद में सहारनपुर के डीएम ने यह आदेश जारी किया कि इस मामले की पूरी जांच होने तक वेबसाइट को बंद किया जाए। हालांकि दारुल उलूम देवबंद के मीडिया इंचार्ज अशरफ उस्मानी ने टाइम्स नाउ नवभारत को बताया कि हमने डीएम के आदेश के बाद विवादित फतवों को वेबसाइट से हटा दिया है और हमारी वेबसाइट पहले की तरह ही चल रही है।

बीजेपी नेता का बयान

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि, 'भारत का संविधान सभी को यह बराबर अधिकार देता कि वह बच्चे को गोद ले। लेकिन देवबंद जैसे संस्थाओं को यह समझ नहीं आता कि भारत एक सेक्युलर देश है और यहां पर किसी के लिए कोई अलग कानून नहीं है। लेकिन दारुल उलूम देवबंद कट्टरता को बढ़ावा दे रही है और इसे बैन करना चाहिए।' आपको बता दें कि अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है जिसमें उन्होंने पूरे देश में बच्चा गोद लेने विवाह की उम्र संपत्ति के अधिकार जैसे तमाम मामलों को लेकर एक 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' की मांग की है।

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