नई दिल्ली: प्रसिद्ध पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन नेता सुंदरलाल बहुगुणा का 94 साल की उम्र में ऋषिकेश के एम्स में निधन हो गया है। वो कोविड-19 से संक्रमित थे। नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में जन्मे बहुगुणा को चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है । उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी ।
पद्मविभूषण तथा कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था। एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा । उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया। टिहरी राजशाही का भी उन्होंने कडा विरोध किया जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पडा । वह हिमालय में होटलों के बनने और लक्जरी टूरिज्म के भी मुखर विरोधी थे।
13 साल से ही सामाजिक गतिविधियों में जुटे
कम उम्र में उन्होंने 1965 से 1970 तक अपने शराब विरोधी अभियान में पहाड़ी महिलाओं को संगठित करना शुरू कर दिया था। उन्होंने श्री देव सुमन के मार्गदर्शन में 13 साल की उम्र में सामाजिक गतिविधियां शुरू कीं, जो अहिंसा का संदेश फैलाने वाले एक राष्ट्रवादी थे और वे स्वतंत्रता के समय कांग्रेस पार्टी के साथ थे। बहुगुणा ने 1947 से पहले औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लोगों को लामबंद भी किया था।
उन्होंने अपने जीवन में गांधीवादी सिद्धांतों को अपनाया और अपनी पत्नी विमला से इस शर्त के साथ विवाह किया कि वे ग्रामीण लोगों के बीच रहेंगे और गांव में आश्रम स्थापित करेंगे। गांधी से प्रेरित होकर वह हिमालय के जंगलों और पहाड़ियों से गुजरे और 4700 किलोमीटर से अधिक की पैदल दूरी तय की। उनके परिवार में पत्नी विमला, दो पुत्र और एक पुत्री है। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कट्टर विरोधी थे।
ये सम्मान मिले
1981 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार दिया गया, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया।
1987 में राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड (चिपको मूवमेंट) मिला।
1986 में रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार मिला
1989 में IIT रुड़की द्वारा सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि प्रदान की गई।
2009 में पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
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