हेट स्पीच को लेकर केंद्रीय चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया है। केंद्र के पाले में गेंद डालते हुए चुनाव आयोग ने कहा है कि जब तक सरकार कानून में हेट स्पीच को परिभाषित नहीं कर देती या इसके लिए विशेष कानून नहीं बना देती तब तक उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने वैमनस्य बढ़ाने वाले भाषणों, बयानों या सोशल पोस्ट को लेकर सख्त रवैया अख्तियार कर लिया था।
हेट स्पीच की परिभाषा अभी तय नहीं
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका के जरिए नफरत फैलाने वाले भाषण और अफवाह फैलाने वाले बयान पोस्ट या कोशिश को अपराध मानने और इसके लिए सजा देने वाले कानून की मांग की है। चुनाव आयोग ने अपने एफिडेविट में कहा है कि, 'भड़काऊ बयान और अफवाह फैलाने के अपराध के सजा देने के लिए कोई अलग से कानून नहीं है। ऐसे में चुनाव आयोग इंडियन पीनल कोड की धारा 153-A, 153-B, 295-A, 298, 505 के तहत दो वर्गों के वैमनस्य बढाने के आरोपों में और जनप्रतिनिधित्व कानून की कई धाराओं के तहत ही उम्मीदवारों पर कार्रवाई करता है। इन्हीं कानूनों के आधार पर चुनाव आयोग राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के ऐसे भड़काऊ बयान देने पर लगाम लगाता है जिससे दो समुदायों के बीच नफरत न पनपे। साथ ही समय-समय पर चुनाव आयोग एडवाइजरी भी जारी करता है।’
क्रिमिनल लॉ में कई संशोधनों का सुझाव
विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट का हवाला देते आयोग ने कहा कि घृणा फैलाने के अपराध में सजा देने के लिए आयोग ने क्रिमिनल लॉ में कई संशोधनों सुझाव दिया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जो केंद्र सरकार को ऐसे अपराध के मामलों के कार्रवाई का अधिकार देते हैं। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए तीन हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा था।
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