दिल्ली हाईकोर्ट वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक घोषित करने के संदर्भ में बेंच में ही मतभेद सामने आ गया। पीठ ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में मामले को ले जाने के लिए कहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय जो वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने की मांग वाली याचिकाओं के एक बेंच की सुनवाई कर रहा है। याचिकाएं भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार कानून के अपवाद को चुनौती दे रही हैं। आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद 2 में एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी जिसकी उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है उसके साथ जबरदस्ती संभोग को बलात्कार के रूप में नहीं माना जाता है। अगर आसान तरह से समझें तो धारा 375 का अपवाद 2 वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है और यह आदेश देता है कि विवाह में एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले की खास बात
कौन हैं याचिकाकर्ता
2015 में आरआईटी फाउंडेशन द्वारा चार याचिकाएं दायर की गई थीं। 2017 में ऑल इंडिया डेमोरैक्टिक विमेन एसोसिएशन ने 2017 में वैवाहिक बलात्कार से बचने वाली खुशबू सैफी, और एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी द्वारा बलात्कार का आरोप लगाया था।पुरुष अधिकार संगठनों द्वारा कम से कम तीन याचिकाएं भी दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष विभिन्न आधारों पर वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के खिलाफ दायर की गई हैं, जिसमें झूठे मामले, दुरुपयोग की संभावना, और वैवाहिक संबंधों और परिवार को नुकसान पहुंचाने के आरोप शामिल हैं।
एक हस्तक्षेप याचिका ने बलात्कार की लिंग-तटस्थ परिभाषा के लिए तर्क भी उठाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुरुषों को गलत तरीके से ना फंसाया जाए। आरआईटी फाउंडेशन के मामले में सुनवाई 2015 में शुरू हुई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था। 2016 में केंद्र ने एक हलफनामा दायर किया जिसमें कहा गया था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक नहीं बनाया जा सकता क्योंकि इसका भारतीय समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। आरआईटी फाउंडेशन के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने गरिमा के अधिकार के उल्लंघन को उठाया था। मामला तीन साल से अधिक समय तक स्थगित रहा और आखिरकार दिसंबर 2021 में सुनवाई फिर से शुरू हुई।
जनवरी 2022 में केंद्र सरकार की थी यह दलील
इस साल जनवरी में, दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र द्वारा दायर अर्जी में कहा गया था कि अपराधीकरण घोषित करने से मुकदमों की संख्या बढ़ने के साथ झूठे आरोपों की बाढ़ आ सकती है। यह भी तर्क दिया था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कानून पहले से मौजूद हैं, और वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि एक महिला घरेलू हिंसा अधिनियम या आईपीसी के वैवाहिक क्रूरता प्रावधान का सहारा ले सकती है।हलफनामे में यह भी कहा गया है कि भारतीय कानून वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने में पश्चिमी देशों का आंख बंद करके अनुसरण नहीं कर सकता। लेकिन1 फरवरी को केंद्र ने उच्च न्यायालय को जानकारी दी कि वह वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं पर अपने पहले के रुख पर फिर से विचार" कर रहा है। क्योंकि इसे कई साल पहले दायर एक हलफनामे में रिकॉर्ड में लाया गया था। सरकार ने यह भी कहा कि उसने सभी राज्यों और विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श शुरू कर दिया है क्योंकि परामर्श के बिना इस मुद्दे पर कोई स्टैंड नहीं लिया जा सकता है।
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