एक बार अहीर रेजीमेंट बनाए जाने की मांग तेज हो गई है। बुधवार को गुरुग्राम में मार्च भी निकाला गया था। मार्च में शामिल लोगों का कहना है कि जब सेना में जाट, राजपूत और मराठा रेजीमेंट हो सकते हैं तो अहीर रेजीमेंट क्यों नहीं। अहीर रेजीमेंट के समर्थकों का कहना है कि आखिर हम 1962 की रेजांग ला की लड़ाई को क्यों भूल जाते हैं। समर्थकों का कहना है कि कुमाऊं रेजीमेंट में पहले अहीर सैनिक खासतौर से हरियाणा के हुआ करते थे उन्हें अहीर रेजीमेंट के नाम से जाना भी जाता था। जब यह व्यवस्था पहले से मौजूद थी तो पूर्ण इंफैंट्री रेजीमेंट का दर्जा देने में क्या परेशानी है। बता दें कि बुधवार को यूनाइटेड अहीर रेजीमेंट मोर्चा ने गुरुग्राम में प्रदर्शन किया था और उसकी वजह से करीब 6 किमी तक यातायात पर भी असर पड़ा था।
हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र से रेजांग ला का संबंध
पूर्ण इंफैट्री का दर्जा देने की मांग
रेजांग ला की लड़ाई के बाद इस तरह की मांग उठने लगी कि जब सेना में जातीय या क्षेत्रीय आधार पर रेजीमेंट बनाए जा सकते हैं तो अहीर रेजीमेंट क्यों नहीं हो सकता है। इस संबंध में केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत का कहना है कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से इस विषय पर चर्चा हुई और वो आगे भी इस मांग के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद करते रहेंगे। 2012 में यह मांग जोर पकड़ी और अब इस मुद्दे को संसद में भी उठाया गया है। 15 मार्च को कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने सरकार से मांग की इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
जाति या क्षेत्र के नाम पर सेना में कई रेजीमेंट
भारतीय सेना में जाति और क्षेत्र के नाम पर कई रेजीमेंट हैं। कुमाऊं, जाट, राजपूत जैसी रेजिमेंट में अहीर जवान निश्चित संख्या में और मिश्रित श्रेणी में क्लास रेजिमेंट जैसे पैराशूट रेजिमेंट और इंजीनियर, सिग्नल, आर्टिलरी कोर में सभी जातियों के लोगों की भर्ती होती है।
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