उत्तराखंड में एक बार फिर आफत आई संडे को वहां ग्लेशियर फटने से बड़ा हादसा सामने आया इस प्राकृतिक आपदा में कुछ लोगों की मौत हो चुकी है, ये पहली बार नहीं है वहां ऐसी आपदाएं पहले भी आती रही हैं।उत्तराखंड में ग्लेशियर फटने की घटना ने एक बार फिर देवभूमि उत्तराखंड की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है और वहां पर इस हादसे से खासा जान-माल का नुकसान हुआ है और लोगों को बचाने की कवायद में एजेंसियां जुटी हुई हैं। वहां की तपोवन टनल में फंसे लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए बड़ा राहत व बचाव अभियान चलाया जा रहा है।
अभी भी कई लोग लापता है इसके साथ ही सुरंग में फंसे हुए लोगों को बचाने की कवायद युद्धस्तर पर जारी है,एनटीपीसी की परियोजना को नुकसान हुआ है। एसडीआरएफ के जवानों के साथ अन्य बचाव दल के सदस्य पूरे समय से लगे हुए हैं। तपोवन टनल से मलवा हटाने का काम चलता रहा,आईटीबीपी की टीम सुरंग साफ करने में जुटी हैं।
ग्लेशियर हादसे ने 2013 में राज्य में हुई भारी आपदा की याद ताजा करा दी है,उस साल जून में एक ही दिन में बादल फटने की कई घटनाओं के चलते भारी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुईं थीं जिसमें तमाम जान चली गई थीं और वहां भारी क्षति हुई थी।
उत्तराखंड में इससे पहले आईं प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानें कि कब-कब राज्य ने इनका सामना किया है-
साल 1991 उत्तरकाशी भूकंप: साल 1991 में जब उत्तराखंड बना नहीं था तब वो उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था उस साल वहां अक्टूबर में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया बताते हैं कि इस आपदा में कम से कम 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और हजारों घर तबाह हो गए थे।
माल्पा भूस्खलन 1998 में छोड़ गया था तबाही के निशान- पिथौरागढ़ जिले का छोटा सा गांव माल्पा भूस्खलन के चलते बर्बाद हुआ था बताते हैं कि इस हादसे में कुछ कैलाश मानसरोवर श्रद्धालुओं समेत करीब 250 लोगों की जान गई थी और भूस्खलन से गिरे मलबे के चलते शारदा नदी भी खासी प्रभावित हुई थी।
चमोली में भारी भूकंप- 1999 में चमोली जिले में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली थी वहीं पड़ोसी जिले रुद्रप्रयाग में भारी नुकसान हुआ था सड़कों एवं जमीन में भूकंप की वजह से दरारें आ गई थीं।
साल 2013 तो उत्तराखंड में ना भूलने वाला साल हो गया- वर्ष 2013 के जून में जो उत्तराखंड में तबाही आई उसकी यादें लोगों के जेहन से सालों नहीं मिटेंगी, उस साल जून में एक ही दिन में बादल फटने की कई घटनाओं के चलते भारी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं हुईं थीं।
एक अनुमान के मुताबिक करीब साढ़े पांच हजार से ज्यादा लोग इस आपदा मौत की नींद सो गए, हालांकि इस आंकड़े के अलावा कितने लोग तो अभी भी लापता हैं।
इस आपदा ने राज्य की सड़कों एवं पुलों को जो नुकसान पहुंचाया था उसकी पूर्ति आजतक नहीं हो पाई है, अब इस साल ग्लेशियर फटने का हादसा सामने आया है जिससे ये साफ है कि राज्य में आपदाओं के आने का सिलसिला थम नहीं रहा है और प्रकृति इसके माध्यम से कई संदेश भी दे रही है कि इस धरा के साथ खिलवाड़ बंद हो।
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