BJP Game Plan And Devendra Fadnavis:राजनीति में आम तौर पर पार्टी को सत्ता दिलाने वाले को पुरस्कार देने की परंपरा रही है। और इसे देखते हुए सभी राजनीतिक पंडित यही कयास लगा रहे थे कि जब महाराष्ट्र में उद्धव सरकार अल्पमत में आकर गिरेगी, तो उसका ईनाम देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में मिलेगा। लेकिन जिस तरह भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद दिया है, उसने सभी राजनीतिक पंडितों के कयासों को धता बता दिया है। और भाजपा ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वह लीक से हट कर चलती है और उसके एजेंडे में पहले पार्टी होती है।
फडणवीस ट्वीट क्या कहता है
देवेंद्र फडणवीस ने जब कल (बृहस्पतिवार) को एकनाथ शिंदे के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर, इस बात का ऐलान किया कि वह एकनाथ शिंदे सीएम होंगे, तो उन्होंने साथ में यह भी कहा था कि वह सरकार का हिस्सा नहीं होंगे। लेकिन उसके बाद जिस तरह से, तुरंत भाजपा अध्यक्ष जे.पी.नड्डा का बयान और गृह मंत्री अमित शाह के ट्वीट आए और फिर फडणवीस ने उप मुख्यमंत्री संभालने का ऐलान किया, उससे साफ है कि फडणवीस को शीर्ष नेतृत्व की बात माननी पड़ी। और उनके ट्वीट की भाषा से भी यही समझ आता है, कि फडणवीस अपनी इच्छा से सरकार में शामिल नहीं हो रहे हैं। और आज पार्टी के जश्न में शामिल नहीं होकर इस कयास को और बल मिला है।
असल में जिस तरह 2014 में जीत के बाद फडणवीस ने 5 साल सरकार चलाई और फिर 2019 में उनके नेतृत्व में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी (106 सीट) बनी। उससे महाराष्ट्र की राजनीति में उनका कद काफी बढ़ गया था। इसके बाद बैकडोर से एकनाथ शिंदे के साथ अपनी दोस्ती के जरिए उन्होंने एक बार फिर भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया, तो ऐसे में उनके सीएम बनने की उम्मीदें बढ़ गई थी। लेकिन भाजपा फडणवीस की जगह एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर जो गेम प्लान कर रही है। उसमें लगता है कि फडणवीस की अगुआई पार्टी के लिए फिट नहीं बैठ रही थी।
अटल-आडवाणी की जोड़ी ने भी किया था सरप्राइज
ऐसा नही है कि पहली बार भाजपा ने नेता चुनने में लोगों को सरप्राइज दिया है। इसका सबसे पहला उदाहरण, भाजपा को पहली बार केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में मुख्य भूमिका निभाने वाले अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के दौर में भी दिखा था। राम मंदिर आंदोलन के दौरान रथ यात्रा निकालकर भाजपा की लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी ने प्रधानमंत्री न बनाकर अटल बिहारी बाजपेयी को मौका दिया था। क्योंकि पार्टी को पता था कि अगर गठबंधन के बदौलत सरकार को चलाना है तो आडवाणी नहीं अटल बिहारी बाजपेयी का नेतृत्व ज्यादा मुफीद होगा। 1996 और 1998-2004 के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी जहां प्रधानमंत्री रहें, वही लाल कृष्ण आडवाणी उप मुख्यमंत्री पर पर रहे।
इसी तरह 2014 में जब भाजपा को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुनना था तो लाल कृष्ण आडवाणी की इच्छा के विरूद्ध मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीदवार बनाया गया और बाद में खुद लालकृष्ण आडवाणी ने मोदी की उम्मीदवारी का समर्थन किया ।
पिछले साल जुलाई में कर्नाटक में भाजपा ने वहां के कद्दावर नेता बी.एस.येदियुरप्पा को हटाकर मुख्यमंत्री पद की कमान बासवारज बोम्मई को सौंप दी थी। उस वक्त भी ऐसा माना जा रहा था कि येदियुरप्पा मुख्यमंत्री पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। लेकिन 2023 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा ने बोम्मई पर भरोसा जताया है।
इसी तरह असम और त्रिपुरा में भी भाजपा ने पार्टी रणनीति के हिसाब से नए सीएम की नियुक्ति की है। पार्टी ने मई 2021 में असम में सर्बानंद सोनेवाल के नेतृत्व में बड़ी जीत हासिल करने के बाद भी हिमंत बिस्वा शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं त्रिपुरा में पिछले महीने तत्कालीन मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देव की जगह मानिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया।
एकनाथ शिंदे से पार्टी साधेगी कई निशाने
असल में भाजपा ने 106 विधायकों के बाद भी सीएम की कुर्सी न लेकर बड़ा दांव खेला है। उसे लगता है कि वह एकनाथ शिंदे के जरिए शिवसेना में न केवल बड़ी सेंध लगा सकती है। बल्कि ठाकरे परिवार की महाराष्ट्र की राजनीति में रसूख को भी खत्म कर सकती है। जिसका फायदा उसे आने वाले लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनावों में भी मिलेगा।
तो इसलिए फडणवीस नहीं एकनाथ शिंदे बने CM,एक नहीं भाजपा ने साधे कई निशाने,जानें प्लान
इसके साथ ही वह शिंदे के जरिए 30 फीसदी मराठा आबादी को भी अपने पाले में ला सकेगी। यही नहीं वह शिव सैनिकों का कैडर का भी समर्थन हासिल कर सकेगी। जिससे बीएमसी चुनावों में शिवसेना की 35 साल पुरानी सत्ता को हिला पाएगी। अब देखना यही है कि फडणवीस को साइडलाइन कर एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का दांव भाजपा के कितना काम आता है।
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