क्या भारत ने जानबूझकर एक यहूदी ऑफिसर को पाकिस्तान से सरेंडर करवाने के लिए भेजा था?

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मुकुन्द झा
मुकुन्द झा | प्रोड्यूसर
Updated Dec 17, 2021 | 17:20 IST

India Pakistan Wai 1971 : 15 दिसंबर 1971 की शाम को ही सीजफायर की घोषणा हो गई थी। 16 दिसंबर की सुबह फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने जेक यानी जेएफआर जेकब को फोन कर सरेंडर के डॉक्युमेंट्स पर साइन करवाने के लिए रवाना होने के लिए कहा।

Did India send a jews officer to get pakistan surrendered
पाकिस्तान अभी भी अपनी हार पचा नहीं पाया है।  |  तस्वीर साभार: PTI

1971 की जंग में पाकिस्तान की आधी नेवी खत्म हो गई, एक चौथाई एयर फोर्स खत्म हो गई और एक तिहाई थलसेना खत्म हुई। दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सरेंडर भी पाकिस्तान ने ही भारत के सामने किया। 93 हजार सैनिकों ने सरेंडर किया। आपलोगों जब भी कभी 1971 की जंग को लेकर कुछ पढ़ेंगे या इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो एक तस्वीर सबसे ज्यादा पॉपुलर है और वो आपको हर जगह मिल जाएगी। ये तस्वीर है इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर पर पाकिस्तानी जनरल नियाजी के साइन करते हुए की जिसमें भारतीय सेना के अधिकारी भी नजर आ रहे हैं।

इस तस्वीर में जो नजर आ रहे हैं उनके नाम है
साइन करते हुए नजर आ रहे हैं जनरल नियाजी
उनकी दाहिनी तरफ बैठे हैं जनरल जेएस अरोड़ा
जो खड़े हैं उसमें बाएं से दाएं हैं
वाइस एडमिरल कृष्णन, एयर मार्शल हरि चंद देवान,
ले। जनरल। सगत सिंह, मेजर जनरल जेएफआर जेकब

कहानी मेजर जनरल जेएफआर की
हम आपको इस तस्वीर की कहानी के साथ एक और कहानी बताने वाले हैं। कहानी उस योद्धा की जिसने पाकिस्तान को सरेंडर करने के लिए मनाया। एक ट्रू जेंटलमैन और प्रोफेशनल आर्मी ऑफिसर की तरह पाकिस्तानी जनरल से सरेंडर के कागजात पर हस्ताक्षर करवाए। कहानी मेजर जनरल जैक फार्ज राफेल जेकब यानी जेएफआर जिन्हें उनके साथी जेक भी बुलाते थे। 15 दिसंबर 1971 की शाम को ही सीजफायर की घोषणा हो गई थी। 16 दिसंबर की सुबह फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने जेक यानी जेएफआर जेकब को फोन कर सरेंडर के डॉक्युमेंट्स पर साइन करवाने के लिए रवाना होने के लिए कहा। जेकब भी अपने काम के लिए रवाना हुए। भले ही सीजफायर की घोषणा हो गई थी और पाकिस्तान की हार भी हो गई लेकिन पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी हार मानने को तैयार नहीं थे। मेजर जनरल जेकब को बहुत मुश्किल आईं। 

जनरल नियाजी ने जेकब को लंच पर बुलाया था
जेकब ने अपनी ऑटोबायोग्रफी में इस घटना का डिटेल में जिक्र किया है। जेकब ने लिखा है कि उनको जनरल नियाजी ने उन्हें लंच पर बुलाया था। जेकब जब ढाका में उतरे तो उनको लेने के लिए पाकिस्तानी सेना की कार आई थी और कार में पाकिस्तानी सेना के सीनियर अधिकारी भी थे। जैसे ही कार अपने गंतव्य के लिए रवाना हुई कुछ ही दूरी पर मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों ने कार पर हमला कर दिया और मेजर जनरल जेकब ने कार से उतरकर जोर से आवाज दी 'इंडियन आर्मी!' मेजर जनरल जेकब की वर्दी देखकर फायरिंग रुकी नहीं तो लड़ाके पाकिस्तानी सैनिकों को मार डालना चाह रहे थे। 
लेकिन मामला शांत हुआ और जेकब अपनी मंजिल की तरफ बढ़े। जेकब जनरल नियाजी के दफ्तर में घुसे तो देखा कि वहां पर पाकिस्तानी सेना के बाकी के अधिकारी मौजूद थे इनमें नेवी और एयरफोर्स के भी सीनियर अधिकारी थे। इस बीच मेजर जनरल जेकब ने रेस कोर्स  में सरेंडर के डॉक्यूमेंट्स पर साइन करवाने के लिए 1 टेबल और 2 कुर्सियां लगवाने के लिए कहा।

15 दिसंबर की शाम को सीजफायर की घोषणा
मेजर जनरल जेकब लिखते हैं कि सरेंडर के डॉक्यूमेंट पढ़ते वक्त जनरल नियाजी के आंखों से आंसू निकल आए थे और नियाजी ने कहा था, ''कौन कह रहा है कि मैं सरेंडर करने जा रहा हूं। आप लोग सिर्फ सीजफायर और वापसी के फैसले पर बात करने आए हैं।'' बाकी के पाकिस्तानी अधिकारियों ने भी सरेंडर की बात को नकारा। दरअसल 15 दिसंबर की शाम को सीजफायर की घोषणा कर दी गई थी और 16 को सरेंडर किया जाना था। लेकिन जनरल नियाजी देर करवा रहे थे और ना नुकुर किए जा रहे थे। जेकब ने नियाजी से कहा कि अगर आप साइन नहीं करेंगे तो मैं आपके परिवार की सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकता। सुरक्षा चाहिए तो साइन करने ही होंगे। जेकब ने नियाजी को सख्त लहजे में समझाया और आधे घंटे के लिए सोचने का वक्त दिया और कहा कि वो कोई फैसला नहीं लेते हैं तो जेकब ढाका पर बमबारी का ऑर्डर दे देंगे।

नियाजी ने कोई जवाब नहीं दिया
जनरल जेकब ये कहकर बाहर निकल आए और अपना पाइप पीने लगे। इस दौरान उनकी एक पाकिस्तानी संत्री से बात हुई। जेकब ने लिखा है कि वो संत्री रो पड़ा और कहने लगा कि एक हिंदुस्तानी अधिकारी मेरा हालचाल पूछ रहा है जबकि मेरे अपने नहीं पूछते। आधे घंटे बाद जेकब अंदर दफ्तर में गए और नियाजी से पूछा कि ये सरेंडर मंजूर करते हो या नहीं? नियाजी ने कोई जवाब नहीं दिया। जेकब ने तीन बार पूछा और तीनों बार कोई जवाब नहीं था। जनरल जेकब ने कागजों को हवा में उठाते हुए कहा कि मैं इस सरेंडर को स्वीकार करता हूं। इतना कहते ही नियाजी फूटफूटकर रोने लगे।

जनरल अरोड़ा को अपनी बंदूक सौंपी
यहां एक और मजेदार किस्सा है। जनरल जेकब ने नियाजी से उनकी तलवार सौंपने के लिए कहा। नियाजी ने कहा हमारे यहां तलवार का रिवाज नहीं है। लेकिन नियाजी ने अपनी रिवॉल्वर जनरल जेकब को सौंप दी।किसी भी वक्त जनरल जे एस अरोड़ा को सरेंडर करवाने के लिए आना था लेकिन वो त्रिपुरा की तरफ चले गए थे जनरल सगत सिंह को लाने के लिए। करीब शाम साढ़े चार बजे जेएस अरोड़ा अपने लाव लश्कर के साथ पहुंचे। गार्ड ऑफ ऑनर की एक रस्म के बाद सरेंडर के लिए टेबल पर नियाजी और जेएस अरोड़ा आए। नियाजी ने इंट्रूमेंट ऑफ सरेंडर के डॉक्यूमेंट्स पर साइन किए और जनरल अरोड़ा को अपनी बंदूक सौंपी।

पाकिस्तान को हार हजम नहीं हो रही थी
युद्ध हार जाने के बाद पाकिस्तान बुरी तरह से बौखलाया हुआ था। पाकिस्तान को हार हजम नहीं हो रही थी। पाकिस्तान ने मुस्लिम देशों में भारत के प्रति नफरत फैलाने का भरसक प्रयास किया। इसी बीच पाकिस्तानी प्रोपगंडा मशीनरी भी एक्टिव हुई और कहा जाने लगा कि जानबूझकर भारतीयों ने एक यहूदी अधिकारी को पाकिस्तान से सरेंडर करवाने के लिए भेजा। बाद के दिनों में जनरल जेएफआर जेकब ने कई बार इस बात का जिक्र किया कि वो सालों भारत में रहें और यही उनका प्रॉमिस्ड लैंड है। लेकिन फिर भी कभी उनके यहूदी होने की बात बाहर नहीं आई लेकिन पाकिस्तानियों ने ये भी कर दिया।
 

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