नई दिल्ली: देश की आजादी के बाद से आज तक कांग्रेस पार्टी ने (Congress Party) ने शुरूआती सालों में जमकर सत्ता का आनंद उठाया फिर बीच के कुछ दौर ऐसे आए जब पार्टी के सामने कुछ दिक्कतें आईं लेकिन वो इतनी अहम नहीं थीं, क्योंकि उस वक्त मजबूत विपक्ष नहीं था जिससे कांग्रेस ने अपने तरीके से सत्ता का संचालन किया। हालांकि इसमें जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी जैसे शार्प और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली नेतृत्व को भी इसका श्रेय काफी हद तक जाता है लेकिन अब स्थितियां जुदा हैं और पार्टी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं ये विपक्ष की ओर नहीं बल्कि अपनों यानी 'कांग्रेसियों' की तरफ से हैं मतलब 'अपने ही' अब पार्टी के लिए बन रहे हैं 'परेशानी का सबब'...
कांग्रेस पार्टी में वैसै साल 2004 से लगातार दो बार केंद्र की सत्ता पर काबिज होकर शासन चलाया वहीं तमाम राज्यों में भी पंजे की विरासत बनी रही और पार्टी अपने गढ़ों यानी सूबे को बचाती रही लेकिन हर बार स्थितियां एक जैसी नहीं होती हैं और समय बदला साथ ही कांग्रेस के हाथ से राज्यों के दरकने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो अभी तक जारी है।
असम और कुछ अन्य राज्यों की सत्ता गंवाने से लेकर देश के अहम राज्य मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज होकर महज कुछ ही महीने में शासन से विदाई, ये कांग्रेस पार्टी के कटु अनुभव हैं जिसमें कांग्रेस को पूरा जोर लगाने के बाद भी नतीजा सिफर वाली स्थिति सामने आई। हालांकि कुछ अपवाद भी रहे जैसे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर ने बेहतर प्रदर्शन कर बीजेपी अकाली दल को सत्ता की दौड़ में पछाड़ा वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने सूबे में कांग्रेस का परचम लहराकर पार्टी को थोड़ी ही सही मगर राहत की सांस दी।
मगर अभी जो सीन सामने चल रहा है उसमें पार्टी की अहम उपस्थिति वाले राज्य पंजाब में भारी विवाद चल रहा है, 'सिद्धू पाजी' और 'कैप्टन साहब' के बीच की अनबन से कांग्रेस पार्टी के सामने उहापोह की स्थिति सामने आ रही है इसके पीछे वजह राज्य में बहुत जल्दी होने वाले विधानसभा चुनाव हैं जिसमें इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनाव में उतरने की घोषणा कर ताल ठोंकती नजर आ रही है।
वहीं पंजाब कांग्रेस में कलह को खत्म करने की कोशिशें बेकार होती दिख रही हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस पंजाब में अंदरूनी कलह को खत्म नहीं कर पा रही है। वरिष्ठ नेता नवजोत सिंह सिद्धू की पार्टी नेतृत्व से मुलाकात के बाद उम्मीद जगी थी कि विवाद सुलझ जाएगा। पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नए कदम ने इसे और उलझा दिया। कांग्रेस ने सिद्धू को मनाने के लिए प्रचार समिति का अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद देने की भी पेशकश की है पर सिद्धू का दबाव प्रदेश अध्यक्ष पद पर है। ऐसे में पंजाब विवाद सुलझने में कुछ और वक्त लग सकता है। इस बीच, सिद्धू फिलहाल दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं और राहुल, प्रियंका वाड्रा से मुलाकात कर चुके हैं।
छत्तीसगढ़ में 2018 में छत्तीसगढ़ की सत्ता में आई कांग्रेस में सीएम की कुर्सी के कई दावेदार खड़े हो गए थे इनमें भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव प्रमुख थे बाद में दिल्ली में भूपेश बघेल का नाम फाइनल हुआ लेकिन दोनों के छत्तीसगढ़ लौटने से पहले यह चर्चा राज्य में पहुंच गई कि दोनों ढाई-ढाई साल के लिए सीएम रहेंगे इसे लेकर टीएस सिंहदेव ने जून की शुरूआत में इसे लेकर अपने समर्थकों के साथ हलचल शुरू की हालांकि 17 जून को जब बघेल सरकार का ढाई साल पूरा हुआ तो ये साफ हो गया कि अगले ढाई साल यानी पूरे 5 साल बघेल ही मुख्यमंत्री रहेंगे, मतलब कि कांग्रेस पार्टी अपनों की ही एक और बगावत से बाल-बाल बची।
पंजाब में जारी संकट के बीच राजस्थान से भी कांग्रेस के लिए परेशानी के संकेत सामने आ रहे हैं राजस्थान कांग्रेस में फिर कलह दिखने लगी है, पायलट के समर्थक विधायकों ने अब कांग्रेस नेतृत्व को दस महीने पुराने राजनीतिक वादे को याद करवाने फैसला लिया है। सचिन पायलट ने एक इंटरव्यू में खुलकर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि 10 महीने हो गए हैं और उनसे किए वादे पूरे नहीं किए हैं पायलट ने कहा, 'मुझे कहा गया था कि सुलह कमेटी तेजी से एक्शन लेगी, लेकिन आधा कार्यकाल पूरा हो चुका है और वे मुद्दे अब भी अनसुलझे ही हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन कार्यकर्ताओं ने पार्टी को सत्ता में लाने के लिए रात-दिन मेहनत की और अपना सब कुछ लगा दिया, उनकी सुनवाई ही नहीं हो रही है।'
राजस्थान में पार्टी पिछले साल भी बगावत की गंध से दो-चार हुई थी, दरअसल पिछले साल सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के करीब डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ गुरुग्राम के मानेसर चले गए थे। जिसके बाद सियासी हलचल तेज हो गई थी बाद में हालांकि हाईकमान की दखल के बाद वो मान गए जिसके बाद में कांग्रेस ने पायलट मामले को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाई थी, जिसके बहाने सचिन समर्थक विधायक अब कांग्रेस नेतृत्व पर ही निशाना साध रहे हैं।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी पिछले साल बीजेपी ज्वाइन की थी, उनका कांग्रेस पार्टी छोड़ना तो सूबे में कांग्रेस की सत्ता से बेदखली का सबब बना और ज्योतिरादित्य के साथ कांग्रेस से बगावत कर 25 विधायक बीजेपी में शामिल हुए थे, कांग्रेस के इन विधायकों के त्यागपत्र देकर बीजेपी में शामिल होने के कारण प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी।
जितिन प्रसाद कांग्रेस पार्टी का बड़ा नाम थे और राहुल- प्रियंका गांधी के करीबियों में उनका शुमार था और उनको मनमोहन सिंह सरकार में राज्य मंत्री बनाया गया था 2009 से 2011 तक सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री रहे। इसके साथ ही 2011-12 में उनको पेट्रोलियम मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई इतना ही नहीं 2012-14 में वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री भी रहे। साल 2014 से कांग्रेस को बेदखल कर मोदी सरकार सत्ता पर काबिज हुई तो कुछ साल के इंतजार के बाद जितिन प्रसाद को 'पंजे' में खामियां दिखने लगीं और वो 'कमल की छांव' में आ गए।
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