मऊ जिला मुख्यालय से लगभग 43 किमी दूर उत्तरी सीमा पर स्थित ऐतिहासिक व पौराणिक स्थल दोहरीघाट के गौरीशंकर घाट पर स्थित शिव मंदिर आज भी आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां देर शाम तक दूर दराज से श्रद्घालुओं के आने का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक करने से सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। शिवरात्रि के दिन मेले का आयोजन किया जाता है।
यहां दो मंदिर जैसे जानकी मंदिर और भगवान शिव और प्रसिद्ध घाट गौरी शंकर घाट स्थित है। दोहरीघाट (दो हरि) इस तथ्य से आता है कि दो विष्णु (हरि) अवतार यहां मिले थे - छठा अवतार भगवान परशुराम, और 7 वां अवतार भगवान श्री राम। सीता जी के स्वंयवर के दौरान देवों के देव महादेव शिव जी का धनुष टूटने पर उनके अनन्य भक्त भगवान परशुराम जी अत्यधिक क्रोधित हो गये, मिथिला से अयोध्या का मार्ग दोहरीघाट होकर ही प्राचीन काल में हुआ करता था। मिथिला से लौटते समय, सीता-राम के विवाह के बाद वहीं सरयू नदी के तट पर भगवान राम एवं भगवान परशुराम जी की भेंट हुई। यहीं पर राम - परशुराम संवाद हुआ। इस प्रकार इस ऐतिहासिक स्थान को दोहरीघाट (दो हरि घाट) के नाम से जाना जाता है।
दोहरीघाट चर्चा में क्यों है?
सावन के दरम्यान इसी शुक्रवार को दोहरीघाट नगर के सरयू नदी में चांदी का एक शिवलिंग मिला है। लोगों के अनुसार उसका वजन लगभग 53 किलो है जिसे स्थानीय पुलिसकर्मियों ने पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर अपने संरक्षण में ले लिया है।
परशुराम जी के कहने पर प्रभु राम ने एक शिवलिंग की स्थापना की। शिवलिंग के बगल मे मां पार्वती (गौरी) की स्थापना हुई। इस स्थान का नाम गौरीशंकर घाट पड़ा। शिवलिंग की विशेषता है कि यह बिना अरघे का है। यहां रविवार के दिन भारी संख्या में श्रद्घालुओं का हुजूम उमड़ता है। किवदंती के अनुसार एक कोढी वर्षों पूर्व प्रतिदिन सरयू नदी में स्नान करने के बाद भगवान शंकर को जल चढ़ाता था । उसका यह क्रम वर्षों तक चलता रहा। कुछ वर्षों के बाद वह पूरी तरह से ठीक हो गया।
भौगोलिक स्थिति
दोहरीघाट सरयू नदी के तट पर बसा हुआ एक बेहद ही प्राचीन नगर है। नदी के दूसरे छोर पर गोरखपुर जिला शुरू हो जाता है तो वहीं लगभग 5 किलोमीटर दूरी पर नई बाजार के बगल में महुला ग्रामसभा से आजमगढ़ जिला शुरू हो जाता है। मऊ जनपद मुख्यालय से उत्तर दिशा में स्थित दोहरीघाट की दूरी लगभग 42-43 किलोमीटर की है तो वहीं एक मार्ग सीधे सूरजपुर होते हुए बलिया चला जाता है तथा दूसरा गोरखपुर जनपद के बड़हलगंज होते हुए देवरिया चला जाता है। तीसरा मार्ग आजमगढ़ चला जाता है और जो मार्ग जिला मुख्यालय मऊ से आता है वह गोरखपुर चला जाता है। इसी मार्ग को बौद्ध परिपथ के नाम से भी जाना जाता है।
कटान
नदियों का होना मानव के लिए प्रकृति का वरदान है और नदियों के बग़ैर जीवन जीना बेहद ही दुष्कर है, यह सास्वत सत्य है लेकिन नदियों से जहां आमजन लाभान्वित है वहीं इसका नुकसान भी आमजन को उठाना पड़ता है।जैसे कर्मनाशा नदी को भारत के कुछ हिस्सों का शोक, कोसी नदी को बिहार का अभिशाप, महानदी नदी को उड़ीसा का शोक, दामोदर नदी को बंगाल का शोक कहा जाता है वैसे ही सरयू नदी को आजमगढ़ जिले के महुला गॉव से लेकर मऊ जनपद के सूरजपुर गॉव तक के लिए भी शोक कहा जा सकता है।
सरयू नदी के कटान के चलते प्रतिवर्ष सैकड़ो बीघे जमीन जलमग्न हो जाती है। घाटों के घाट दोहरीघाट में घाघरा नदी (सरयू नदी) सभी घाटों एवं पौराणिक धार्मिक ऐतिहासिक धरोहरों को एक - एक कर लील चुकी है। 1978 से सरयू नदी अब तक हजारों एकड़ कृषि योग्य दो फसली उपजाऊ भूमि बाग, बगीचा, परती, बंजर, आबादी आदि सहित धार्मिक पौराणिक, तपोस्थली, ऐतिहासिक स्थलों को भी काट चुकी है। ब्रह्मचारी बाबा घाट, ब्रह्मबाबा, पूर्वी माई, देई माई, नागा बाबा, सीताराम यज्ञ पावन भूमि स्थल, त्रिकुटघाट, नौ पेड़ तरकुलहीघाट, कबीरपंथी स्थल, कुंआघाट, श्मशान घाट, गौरीशंकर घाट, डोमराज घाट, धर्मशाला घाट, पक्काघाट, शिव विष्णु घाट, सूर्य घाट, खाकी बाबा घाट, झमरा घाट, जानकी घाट, साई बाबा, मातेश्वरी घाट, डाक बंगला, डीह स्थान, रामधार, कर्णबन आदि घाटों, स्थलों के अस्तित्व मिट चुका जो प्राचीन समय से दोहरीघाट में विद्यमान थे।
सरयू नदी प्रतिवर्ष अपना स्थान परिवर्तित करती रहती है जिसके वजह से स्थिति इतनी विकराल है। वर्तमान समय में नदी अपने मूल स्थान के बजाय मऊ जनपद के किसानों की भूमि को अपने अन्दर समाहित करके प्रवाहित हो रही है जबकि नदी की दूसरी ओर गोरखपुर जनपद के चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र के बड़हलगंज विकास खण्ड के गॉव आते हैं जहां नदी का मूल भूभाग है।
पीड़ित ग्रामीणों की यह भी मांग रही है कि हमारी जो भूमि नदी में समाहित हुई है उसके स्थान पर मुआवजा अथवा नदी के दूसरी तरफ यानी गोरखपुर जिले में नदी के मूल स्थान की जमीन दी जाए। मऊ जनपद के दोहरीघाट के ब्लॉक प्रमुख प्रदीप राय और गोरखपुर जनपद के बड़हलगंज के ब्लॉक प्रमुख आशीष राय भी किसानों के नुकसान की बात तो स्वीकारते हैं लेकिन इस मसले को राजस्व तथा जलशक्ति विभाग से जुड़ा हुआ बताते हैं।
सरयू नदी का प्रवाह
सरयू नदी के बारे में यह कहा जाता है कि अयोध्या नगरी के बाद सरयू नदी मात्र दोहरीघाट में ही उत्तर दिशा में प्रवाहित होती है। स्थानीय नागरिकों के अनुसार दोहरीघाट में लगभग 2 किलोमीटर तक सरयू नदी का प्रवाह उत्तर दिशा में होता है।
पम्प कैनाल नहर
हेड कैनाल एशिया की दूसरी बड़ी पंप वाली नहर है और इसका निर्माण कंक्रीट और एलिवेटेड से हुआ है यह दोहरीघाट के बगल के गॉव सरयां, ठाकुरगॉव, कुरुंगा और गोंठा से होकर निकलती है। इस नहर का नाम प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ चौधरी चरण सिंह के नाम पर रखा गया था। इसे सरयू नदी से और 12 बड़े और मध्यम पंपों के माध्यम से पंप किया जाता है और फिर नहर बनाता है और यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए बलिया जिले तक एक जीवन रेखा है। यह पंप नहर 1952 में आजादी के बाद पहली पंचवर्षीय योजना में बनाई गई थी।
लक्ष्मण जी मन्दिर
लक्ष्मण जी महाराज का धार्मिक मंदिर दोहरीघाट के बगल के गॉव बेलौली में एक प्रसिद्ध स्थल है। यह मंदिर भगवान लक्ष्मण जी (भगवान राम के छोटे भाई) को समर्पित है जो सरयू नदी के तट पर स्थित है। भगवान लक्ष्मण जी के मन्दिर के तत्कालीन रसूलपुर स्टेट के राजा बबुआ राय सिंह ने सैकड़ों बीघा जमीन मन्दिर के नाम पर दान कर दी थी।
राजनीतिक महत्व
दोहरीघाट का राजनीतिक महत्व आजादी के बाद से ही अत्यधिक रहा है। 1952 में घोसी लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने अलगू राय शास्त्री, बाद में विधायक, मन्त्री और सांसद बने झारखण्डे राय इसी दोहरीघाट के पास के गॉव अमिला के निवासी थे। तो वहीं दोहरीघाट ब्लॉक के अन्तर्गत सूरजपुर गॉव के ही जयबहादुर सिंह, राजकुमार राय भी घोसी लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गये थे।
दोहरीघाट ब्लॉक के पहले ब्लॉक प्रमुख जमुना राय के आयोजन में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की उपस्थिति में कल्पनाथ राय ने दोहरीघाट के विक्ट्री इंटर कॉलेज के मैदान में कांग्रेस का दामन थामा था। जो आगे चलकर राज्यसभा, लोकसभा सांसद एवं भारत सरकार में मंत्री बने।
दोहरीघाट के विक्ट्री इंटर कॉलेज का मैदान राजनीतिक जनसभाओं एवं नेताओं के लिए पसंदीदा स्थल है। भारत सरकार से लगायत कई प्रदेशों के मंत्रियों की हज़ारों जनसभाओं का साक्षी बन चुका है यह मैदान।
(दिव्येन्दु राय, स्वतंत्र टिप्पणीकार, प्रस्तुत लेख में लेखक के विचार निजी हैं)
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