नई दिल्ली: देश में कोरोना के बढ़ते मामलों ने सरकार के लिए भी चुनौतियां बढ़ा दी हैं। कोरोना के कारण लागू देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था के लिए नया संकट पैदा हो गया है। अगर आने वाले दिनों में हालात नहीं सुधरे तो स्थिति कैसी और कितनी खराब होगी ये शायद ही कोई बता पाए। पिछले 2-3 दिनों में जिस तरह से कोरोना के मामलों ने रफ्तार पकड़ी है उसे हिसाब से देखा जाए तो स्थितियां बिल्कुल भी ठीक नहीं हैं। ऐसे में चाहे वो मजदूर हो, या फिर व्यापारी या फिर वेतनभोगी वर्ग, सबके लिए आने वाले दिन मुश्किल भरे होने वाले हैं।
असंगठित क्षेत्र पर सबसे ज्यादा मार
अर्थव्यवस्था के नजरिए से देखें तो इसका सबसे नीचा तबका जो आता है वो है किसान, अंसगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर और लघु उद्योग धंधे करने वाले लोग। कोरोना की मार सबसे ज्यादा किसी वर्ग पर पड़ी है तो वो यहीं वर्ग है। सरकार लगातार इस वर्ग के लिए कई उपाय भी कर रही है और नई घोषणाएं और पैकेज का ऐलान भी कर रही हैं लेकिन कब तक? क्योंकि हालात अगर नहीं सुधरे तो सरकार के सामने भी दिक्कतें पैदा होना स्वाभाविक है।
उद्योग जगत के सामने होंगी चुनौतियां
वहीं अर्थव्यवस्था के दूसरे सेक्टर की बात करें तो यह है उत्पादन या बिजनेस सेक्टर। यह एक ऐसा सेक्टर है जिसमें बड़ी संख्या में निचला तबका काम करता है। लेकिन लॉकडाउन की वजह से तमाम सेक्टर बंद हैं जिसका असर यहां भी पड़ा है। अब अगर यह सेक्टर दुबारा खुलता भी है तो यहां चुनौती ये होगी कि कैसे मजदूर वर्ग को लाया जाए क्योंकि अधिकांश लोग अपने गांव की तरफ वापसी कर चुके हैं। अब अगर उद्योग या मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू भी होती है तो कामगारों का तुरंत मिलना एक बड़ी समस्या हो सकती है।
वेतनभोगी वर्ग के लिए हालात हो रहे हैं कठिन
तीसरा है मिडिल क्लास या वेतनभोगी वर्ग। कई सेक्टर में नौकरियां लगातार जा रही हैं बड़ी कंपनियां इस समय अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर रही हैं। सबसे अधिक मार कोरोना संकट की होटल उद्योग पर पड़ी है। होटल उद्योग में बड़ी संख्या में नौकरियां जा चुकी है। अगर ये सिलसिला रूका नहीं तो रियल स्टेट भी बुरी तरह प्रभावित होगा जो पहले से ही संकट से जूझ रहा है।
ये महज कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनके आधार पर देखा जाए तो साफ पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आने वाले दिनों में चुनौतियां बेहद कठिन हैं। आर्थिक दर को लेकर वैश्विक संस्थाओं ने जो आंकलन किए हैं वो चिंताजनक हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो अगर कोरोना के मामलों में कमी नहीं आई और वृद्धि दर यू हीं जारी रही तो फिर स्थितियां और बिगड़ सकती हैं।
पीएम की मेहनत लाएगी रंग!
इन सबके बीच दूसरा या यूं कहें कि सकारात्मक पक्ष ये भी है कि प्रधानमंत्री लगातार आर्थिक माहौल सुधारने के लिए बैठकें कर रहे हैं। वित्त मंत्री के अलावा कैबिनेट के सहयोगियों के साथ पीएम मोदी कई बार बैठकें कर चुके हैं। देश में निवेश का माहौल सुधारने के तमाम प्रयास पर्दे के पीछे से किए जा रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि भारत आने वाले समय में एक औद्योगिक हब बनकर भी सामने आ सकता है क्योंकि यूरोप में कोरोना से जिस कदर हालात बदतर हुए हैं ऐसे में वैश्विक कंपनियों को एक नए मैन्युफैक्चरिंग स्थल की तलाश होगी और कहीं ना कहीं भारत उसमें फिट बैठता है। अगर ये संभव हुआ तो यकीनन चुनौतियां अवसर में तब्दील हो सकती हैं।
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