Eknath Shinde and Maharashtra Politics: उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की भावुक अपील और संजय राउत (Sanjay Raut) के महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन छोड़ने का दांव ,लगता है खाली चला गया है। जिला नेताओं के साथ बैठक में शिव सेना प्रमुख और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का यह बयान कि शिवाजी महाराज हार गए लेकिन लोग हमेशा उनके साथ थे, यह साबित करता है कि अब शिंदे गुट की ठाकरे कैंप में वापसी की उम्मीदे करीब-करीब खत्म हो गई हैं। ऐसे में अब सबकी नजर एकनाथ शिंदे के अगले कदम पर हैं। वह शिव सेना पार्टी और उसके चिन्ह पर दावा ठोकते हैं या नहीं। क्योंकि उनके दावे के अनुसार दल-बदल से बचने के लिए जरूरी 37 शिव सेना विधायकों का आंकड़ा पूरा हो गया है। अगर वह ऐसा करते हैं तो तेलगुदेशम पार्टी के चंद्र बाबू नायडू और लोक जनशक्ति पार्टी के पशुपति पारस की तरह वह भी पार्टी पर कब्जा कर सकते हैं।
क्या शिंदे करेंगे दावा
जिस तरह एकनाथ शिंदे बार-बार यही दावा कर रहे हैं कि वह बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व के दिखाए रास्ते पर चलेंगे। और उनका उद्देश्य शिव सेना तोड़ना नहीं है। उससे साफ है कि वह अलग गुट बनाकर भाजपा में शामिल होने का इरादा नहीं रखते हैं। साथ ही वह बाल ठाकरे की बात भी कर रहे हैं। इसका मतलब है कि वह शिव सेना की कमान अपने पास रखने का दावा कर सकते हैं। ऐसे में देखना होगा कि एकनाथ शिंदे का अगला कदम क्या होगा। क्या वह चुनाव आयोग के पास इस बात के लिए जाएंगे, कि उनका गुट ही असली शिव सेना है।
ऐसा करना उनके लिए आसान है कि इस समय शिव सेना के पास 55 विधायक हैं। इसमें दल-बदल कानून से बचने के लिए 37 विधायकों की जरूरत है। और जैसा कि एकनाथ शिंदे का दावा है बागी विधायकों की तस्वीरें सामने आ रही है, उससे यही लगता है कि उनके लिए यह संख्या जुटाना मुश्किल नहीं होगा। और इस परिस्थिति में शिंदे का दावा भी मजबूत रहेगा।
चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर तो पशपुति पारस ने अपने भाई की पार्टी पर किया कब्जा
हाल ही में पार्टी पर कब्जा करने का सबसे ताजा उदाहरण लोक जनशक्ति पार्टी का रहा है। जहां पर पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान की मौत के बाद उनके बेटे चिराग पासवना और भाई पशुपति पारस के बीच कब्जे की संघर्ष हुआ था। जिसमें चिराग पासवान के चाचा और हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस ने खुद को लोजपा संसदीय दल का नया नेता घोषित किया था। इसके बाद पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चिराग पासवान को राष्ट्रीय अध्यक्ष से हटाने की घोषणा कर दी।
पशुपति पारस के पास पार्टी के 5 सांसदों का समर्थन था। उनके गुट को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उनके गुट को मान्यता भी दे दी। इसके बाद पार्टी के चिन्ह के नाम को लेकर संघर्ष चुनाव आयोग तक पहुंचा। जहां पर आयोग ने लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों गुटों को अलग-अलग पार्टी के तौर पर मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने पुराना नाम और चुनाव चिह्न भी खत्म कर दिया । आयोग ने चिराग पासवान के नेतृत्व वाले गुट को पार्टी का नया नाम लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) और चुनाव चिह्न हेलीकॉप्टर आवंटित किया है। वहीं, उनके चाचा पशुपति पारस को राष्ट्रीय जनशक्ति पार्टी और सिलाई मशीन चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया।
इसी तररह चंद्रबाबू नायडू ने 1995 में अपने ससुर एन.टी.रामाराव के खिलाफ बगावत की थी। तेलगु फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता एन.टी.रामाराव ने कांग्रेस से बगावत कर 1982 में तेलगुदेशम पार्टी बनाई थी। और वह तीन बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन 1995 में उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने विद्रोह कर तेलगुदेशम पार्टी पर कब्जा कर लिया और मुख्यमंत्री बन गए थे।
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