बागी तेवर अपनाने वाले शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने कहा है कि पार्टी और कार्यकर्ताओं को बचाने के लिए शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस के साथ 'अस्वाभाविक गठबंधन' से बाहर निकलना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जरूरी है कि इस गठबंधन से निकला जाए। शिवसैनिकों के लिए इस गठबंधन को तोड़ना होगा। महाराष्ट्र के हित में फैसला लेना होगा।
उन्होंने ट्वीट कर कहा कि पिछले ढाई वर्षों में महा विकास अघाडी सरकार ने केवल घटक दलों को फायदा पहुंचाया और शिवसैनिकों को भारी नुकसान हुआ। घटक दल मजबूत हो रहे हैं, शिवसेना और शिवसैनिकों का व्यवस्थित रूप से गबन किया जा रहा है। पार्टी और शिवसैनिकों के अस्तित्व के लिए अस्वाभाविक मोर्चे से बाहर निकलना जरूरी है। महाराष्ट्र के हित में अब निर्णय लेने की जरूरत है।
एकनाथ शिंदे दो दिन से मुंबई से बाहर हैं। पहले सूरत गए और फिर गुवाहाटी गए। दावा कर रहे हैं कि 46 विधायक साथ हैं। 40 से ज्यादा शिवसेना विधायकों को साथ लेकर चलने का दावा कर रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना के कुल 55 विधायक हैं। एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके साथ 40 शिवसेना विधायक हैं। ऐसे में उद्धव ठाकरे के पास सिर्फ 15 बचे। आंकड़ों से साफ है कि शिवसेना के ज्यादा विधायक किसके पास हैं। ऐसे में एकनाथ शिंदे सरकार गिराने के साथ साथ शिवसेना पर भी दावा ठोक सकते हैं। इसमें पहला सवाल है कि क्या एकनाथ शिंदे और उनके समर्थन में खड़े विधायकों पर दलबदल कानून लागू होगा।
1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों के एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने से कई राज्यों की सरकारें गिर गईं थी। ऐसे में 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार दल-बदल कानून लेकर आई। संसद ने 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची में इसे जगह दी। दल-बदल कानून के जरिए विधायकों और सांसदों के पार्टी बदलने पर लगाम लगाई गई। इसमें ये भी बताया गया कि दल-बदल के कारण इनकी सदस्यता भी खत्म हो सकती है। लेकिन अगर एकनाथ शिंदे और उनके पाले के 40 विधायकों पर ये कानून लागू नहीं होगा। दलबदल कानून कहता है कि अगर किसी पार्टी के कुल विधायकों में से दो-तिहाई के कम विधायक बगावत करते हैं तो उन्हें अयोग्य करार दिया जा सकता है। शिवसेना के पास इस समय विधानसभा में 55 विधायक हैं। दलबदल कानून से बचने के लिए बागी गुट को कम के कम 37 विधायकों की जरूरत होगी।
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