महाराष्ट्र की राजनीति में किस तरह का बदलाव होगा यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन गुरुवार को दो बड़े घटनाक्रम के बाद सियासी जानकार भी हैरान है। गुरुवार को करीब तीन बजे से पहले तक शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत बार बार यह कह रहे थे सरकार को किसी तरह का खतरा नहीं है, यहां तक की गुवाहाटी में जो 21 विधायक हैं वो पार्टी के संपर्क में है। लेकिन तीन बजे के बाद उन्होंने यू टर्न लिया और कहा कि अगक बागी विधायक मुंबई आकर उद्धव ठाकरे से मिलें तो महाविकास अघाड़ी से निकलने के लिए हम तैयार हैं। अब सवाल यह है कि कौन किसके साथ खेला कर रहा है।
2019 में बनी थी बेमेल सरकार
2019 में जब सीएम के मुद्दे पर बीजेपी से नाता तोड़ कर शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई तो शुरुआत से ही उसे अप्राकृतिक गठबंधन माना जा रहा था। तमाम तरह की दिक्कतों के बीच उद्धव ठाकरे की अगुवाई में महाविकास अघाड़ी की सरकार चलती रही। लेकिन अंदरखाने शिवसेना विधायकों की नाराजगी, कांग्रेस विधायकों की नाराजगी की खबरें भी सामने आती रहीं। यह कहा जाता था कि उद्धव ठाकरे तो सिर्फ सरकार के मुखिया भर हैं असली सरकार शरद पवार चला रहे हैं। मान मनौव्वल का दौर भी चलता रहा। लेकिन महाराष्ट्र की सियासत में बदलाव के बड़े संकेत तब मिलने शुरू हुए जब बीजेपी ने अपनी क्षमता से अधिक सीटें ना सिर्फ राज्यसभा में हासिल की बल्कि विधानपरिषद चुनाव के नतीजों से भी चौंका दिया। नतीजों के तुरंत बाद शिवसेना के बागी विधायक सूरत पहुंचते हैं फिर बाद में गुवाहाटी पहुंच जाते हैं।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों की इस मुद्दे पर अलग अलग राय है। कुछ लोग मानते हैं कि राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं है। जब वैचारिक धरातल पर एक दूसरे से असहमति रखने वाली शिवसेना, सरकार बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है। तो इस दफा हालात उद्धव ठाकरे के लिए बेहद विकट है। इस बार तो सरकार बचाए रखने से ज्यादा जरूरी खुद के वजूद को, पार्टी के वजूद को बचाए रखने की चुनौती है। जनता को यह बताने की चुनौती है कि बाला साहेब ठाकरे की विरासत को बचाए रखने की जिम्मेदारी किसकी है। अगर शिवसेना, एमवीए से अलग होती है तो 2019 की वो सुबह याद आएगी जब शरद पवार के भतीजे ने अलसुबह डिप्टी सीएम की शपथ ले ली थी। ये बात अलग है कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी ने बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया था। ये बात सच है कि महाराष्ट्र को सरकार मिल चुकी थी। लेकिन शिवसेना के रणनीतिकारों को भी लगता था कि जमीनी स्तर पर कहीं न कहीं वो कमजोर हो रहे हैं। अब मूल सवाल का जवाब यही है कि आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीतिक लड़ाई का नतीजा क्या शक्ल लेता है वहीं से साफ हो जाएगा कि कौन किससे दूर जाने की कोशिश कर रहा था।
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