सेवानिवृत्ति की बाधा तोड़ने के इच्छुक हैं बुजुर्ग, रिपोर्ट में रोचक बातें सामने आईं सामने 

हेल्पएज इंडिया के सीईओ रोहित प्रसाद कहते हैं, ‘रिपोर्ट कुछ चौंकाने वाले तथ्यों को सामने लाती है और हमें बुजुर्गों के जीवन को नए सिरे से देखने के लिए मजबूर करती है। रिपोर्ट कहती है कि बुजुर्ग आज काम करने के इच्छुक हैं, वे केवल आश्रितों के रूप में नहीं, बल्कि समाज के योगदानकर्ता के रूप में खुद को देखना चाहते हैं।

Elders are willing to break barrier of retirement, interesting facts vame out in helpage india report
सेवानिवृत्ति की बाधा तोड़ने के इच्छुक हैं बुजुर्ग। 

नई दिल्ली : युनाइटेड नेशन की ओर से मान्यता प्राप्त ‘वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे’ (15 जून) की पूर्व संध्या पर हेल्पएज इंडिया ने अपनी राष्ट्रीय रिपोर्ट ‘ब्रिज द गैप - अंडरस्टैंडिंग एल्डर नीड्स’ को जारी किया। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक गंभीर पैनल चर्चा के बाद इस रिपोर्ट को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव श्री आर सुब्रह्मण्यम ने जारी किया। 

देश में बुजुर्गों की आबादी करीब 14 करोड़
भारत में बुजुर्गों की आबादी लगभग 138 मिलियन है, और यह संख्या इसकी कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है। कोविड-19 का प्रभाव अभूतपूर्व था और बुजुर्गों पर इसके प्रभाव ने दुनिया भर की सरकारों, संस्थानों और समाज को उस ढांचे को बदलने के लिए मजबूर किया जो सीधा बुजुर्गों से संबंधित है। महामारी के दौरान सबसे कमजोर और सबसे कठिन हिट के रूप में बुजुर्गों की पहचान की गई। पिछले दो वर्षों में हेल्पएज इंडिया इस बात पर शोध कर रहा है कि बेहद खामोशी के साथ सताने वाली महामारी कोविड-19 का बुजुर्गों की जिंदगी पर क्या प्रभाव पड़ा है। लेकिन बुजुर्गों के लिए यह साल भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि महामारी की तबाही के बाद बदलते समय के साथ रिकवरी के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं और इस दृष्टिकोण से भी यह वर्ष खास हो जाता है।

रिपोर्ट में सामने आईं अहम बातें
इसलिए रिपोर्ट न केवल ऐसे मुद्दों पर केंद्रित है, जो बुजुर्गों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं, बल्कि उनके अनुभव की संपूर्णता का भी जायजा लेते हैं। आत्म निर्भर होकर जीवन निर्वाह करना, समाज में भागीदारी, स्वतंत्रता, गरिमा और देखभाल की उम्र बढ़ने पर संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के आधार पर, इस रिपोर्ट का उद्देश्य उन व्यापक अंतरालों को समझना है, जो बुजुर्गों को खुशहाल, स्वस्थ और बेहतर जीवन जीने से रोकते हैं।

वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे की थीम
हेल्पएज इंडिया के सीईओ रोहित प्रसाद कहते हैं, ‘रिपोर्ट कुछ चौंकाने वाले तथ्यों को सामने लाती है और हमें बुजुर्गों के जीवन को नए सिरे से देखने के लिए मजबूर करती है। रिपोर्ट कहती है कि बुजुर्ग आज काम करने के इच्छुक हैं, वे केवल आश्रितों के रूप में नहीं, बल्कि समाज के योगदानकर्ता के रूप में खुद को देखना चाहते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि गरीबों और वंचितों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ, हम वरिष्ठ नागरिकों के एक ऐसे बड़े वर्ग के लिए एक बेहतर और अनुकूल वातावरण तैयार करें, जो दीर्घायु का फायदा उठाते हुए समाज में अपनी ओर से योगदान देने के इच्छुक और सक्षम हैं। इसलिए इस साल हमने वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे की जो थीम रखी है, वह है- ब्रिज द गैप!’

 22 शहरों में हुआ सर्वे
यह रिपोर्ट भारत के 22 शहरों में बड़े पैमाने पर ए, बी, सी श्रेणियों में 4,399 बुजुर्ग उत्तरदाताओं और उनकी देखभाल करने वाले 2,200 युवा वयस्कों से मिले जवाबों पर आधारित है। रिपोर्ट में यह दिलचस्प जानकारी भी है कि राष्ट्रीय स्तर पर 47 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी आय के स्रोत के लिए परिवार पर निर्भर हैं जबकि 34 प्रतिशत लोग पेंशन और नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। इस बीच, दिल्ली में, 57 प्रतिशत बुजुर्ग परिवार पर निर्भर हैं, जबकि 63 फीसदी लोग पेंशन और नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। इसका मतलब है कि दिल्ली में बड़ी संख्या में बुजुर्गों को परिवार के साथ-साथ पेंशन का भी सपोर्ट है।

52 प्रतिशत बुजुर्गों ने माना उनकी आमदनी अपर्याप्त है
हालांकि, जब आय की पर्याप्तता के बारे में पूछा गया, तो राष्ट्रीय स्तर पर 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि उनकी आमदनी अपर्याप्त है। 40 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, इसके दो बड़े कारण हैं- पहला, क्योंकि ‘उनके खर्च उनकी बचत/आमदनी से अधिक हैं’ (57 प्रतिशत) और दूसरा, पेंशन भी पर्याप्त नहीं है (45 प्रतिशत)। इससे पता चलता है कि बाद के वर्षों के लिए वित्तीय नियोजन और सामाजिक सुरक्षा दोनों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इस बीच दिल्ली में 52 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उनकी आय पर्याप्त है, जबकि 48 प्रतिशत का कहना है कि उनकी आमदनी बहुत कम है और इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। दिल्ली में कुल मिलाकर करीब 71 फीसदी बुजुर्गों का कहना है कि वे अपने आप को वित्तीय रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं।

रिपोर्ट बुजुर्गों की दुर्दशा पर भी सवाल खडे़ करती है
हालांकि यह सर्वेक्षण रिपोर्ट बड़े पैमाने पर शहरी मध्यम वर्ग की स्थिति बयान करती है, लेकिन यह गरीब शहरी और ग्रामीण बुजुर्गों की दुर्दशा पर भी सवाल खडे़ करती है। ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं है या पर्याप्त आय अथवा पेंशन नहीं है। हेल्पएज हर महीने 3000 रुपए  की सार्वभौमिक पेंशन की वकालत करता रहा है, ताकि हर बुजुर्ग सम्मान के साथ जीवन जी सके। इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक जरूरी है, खास तौर पर महामारी के बाद। लगभग 71 फीसदी बुजुर्ग काम नहीं कर रहे हैं। 36 फीसदी बुजुर्ग काम करने के इच्छुक हैं और उनमें से 40 फीसदी ‘जितना संभव हो’ काम करना चाहते हैं। 61 फीसदी बुजुर्गों को लगता है कि वे बुजुर्गों के लिए उपलब्ध रोजगार के अनुकूल नहीं हैं। दिल्ली में, 87 उपलब्ध बुजुर्ग काम नहीं कर रहे हैं, यहां तक कि 40 फीसदी का कहना है कि उनके पास रोजगार के अवसर हैं। अध्ययन में आगे पता चला है कि दिल्ली के 44 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी सेवानिवृत्ति के बाद काम करने के इच्छुक हैं।

बुजुर्गों को अपनी योग्यता साबित करने का मौका दें-अनुपमा दत्ता
हेल्पएज इंडिया की हैड-पॉलिसी एंड रिसर्च अनुपमा दत्ता के अनुसार, ‘यहां से सरकार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है कि वह परिवार के ढांचे को समर्थन देने और उसे मजबूत करने, बुजुर्गों की बेहतर देखभाल करने के अपने वादे पर काम करे। सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र के बीमा और योजनाओं के माध्यम से बुजुर्गों की स्वास्थ्य बीमा संबंधी जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा करने की आवश्यकता है, और नियोक्ताओं के लिए भी यह जरूरी है कि वे लोगों को उम्र के चश्मे से नहीं देखें और बुजुर्गों को अपनी योग्यता साबित करने का मौका दें।’

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