कश्मीरी पंडितों ने जो सहा है, उन पर जो बीती है। उसकी कल्पना मात्र से ही सिहरन होने लगती है। आज कश्मीरी पंडितों का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। चर्चा की वजह है कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर आई फिल्म द कश्मीर फाइल्स, इस फिल्म पर जहां दर्शकों के अलग-अलग रिएक्शन हैं। वहीं सिल्वर स्क्रीन की इस कहानी पर सियासत भी जोर-शोर से हो रही है लेकिन सवाल ये है कि क्या सियासी मसलों का हल सिनेमा से हो सकता है। 2 घंटे 50 मिनट की कश्मीर फाइल्स आंखों के सामने से गुजरी तो कहीं एक्शन हुआ तो कहीं इमोशन, कहीं गुस्से का ज्वार फूटने लगा तो कहीं भावनाओं का सैलाब आ गया। एक्शन-इमोशन के कई वीडियो आंखों के सामने तैरने लगे। रील से निकलकर रियल लाइफ में एक अलग फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी जाने लगी। जो इतिहास में घटे इस दर्द का गवाह थे उनके जख्म हरे हो गए। इस फिल्म में की अभिनेत्री पल्लवी जोशी ने टाइम्स नाउ नवभारत से वो बातें बताई जिसे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।
कश्मीरी पंडितों का दर्द बयां करना आसान नहीं- पल्लवी जोशी
पल्लवी जोशी ने कहा कि कश्मीरी पंडितों का दर्द बयां करना आसान नहीं है। हमने इस विषय पर चार साल काम किया है। चार सालों से रिसर्च करते आ रहे हैं। जहां कश्मीरी पंडित ऐसे मिले जिसने अपने सगे को खोया है। बहुत ही हिंसक तरीके से खोया है। या उनकी मां के साथ विभत्स घटनाएं हुई हैं। कहीं उनके चाचा को या मामा को मार डाला। उनका घर छीन गया। पलायन से जिन्हें बहुत कष्ट हुआ ऐसे ही लोगों से हम जाकर मिले। हमने 700 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों से बात की। उसे बातचीत के दस्तावेज हैं। ऐसी-ऐसी बातें बताई। मेरा दिल दहल जाता है जब मैं उस सोचती हूं। लगातार मैं और विवके उनके इंटरव्यू ले रहे थे। जितना और जैसे बताना है आप हमको बताइए। बड़े-बड़े इंटरव्यू हमने लिए। हमें रोज नई नई दर्दनाक कहानी सुनने को मिली।
फिल्म रिलीज हुई तो उस पर राजनीति भी शुरू हो गई
मसला जब कश्मीर का हो तो उस पर हायतौबा मचना तय है। जैसे ही फिल्म रिलीज हुई राजनीति में भी एक नई पिक्चर शुरू हो गई। इस फिल्म की कहानी लिखी केरल कांग्रेस के एक ट्वीट ने किया। जैसे ही कांग्रेस का ट्वीट सामने आया और कश्मीरी पंडितों के साथ मुस्लिमों की हत्या का आंकड़ा सामने रखा गया तो हंगामा शुरू हो गया। बीजेपी ने कांग्रेस की नीयत और नीति पर सवाल खड़ा करते हुए उसे निशाने पर ले लिया। बीजेपी-कांग्रेस के बीच एक-दूसरे पर आरोप मढे जाने लगे। फिल्म और पॉलिटिक्स के बीच आखिर वो कहां खड़े हैं जिन्होंने इस दर्द को झेला है। जिनकी कहानी को फिल्म में दर्शाया गया है। इस फिल्म से आखिर उन्हें क्या हासिल हुआ है। कश्मीरी पंडितों के दर्द पर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं। आतंकवाद और विस्थापन पर कई फिल्में बन चुकी हैं लेकिन इससे मिला क्या?
32 साल पहले कश्मीरी पंडितों के साथ जो कुछ हुआ, क्या उन्हें इंसाफ मिल सका। जवाब है नहीं, तो फिर एक फिल्म पर इतना हंगामा-हायतौबा क्यों? हकीकत ये है कि सियासी मसले सिनेमा से हल हो नहीं सकते। सिनेमा एक सच दिखाता है और कई सवाल छोड़ जाता है। लेकिन उन सवालों का जवाब या समाधान नहीं देता।
क्या विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर राजनीति हो रही है?
हां-59%
नहीं-07%
फिल्ममेकर को फायदा-06%
पंडितों को इंसाफ मिले-28%
क्या कश्मीरी पंडितों को बीते 30 सालों में इंसाफ मिल पाया?
हां, कुछ हद तक 17%
बिलकुल नहीं 64%
राजनीति का शिकार हुए 19%
तो क्या इस फिल्म के आने के बाद कश्मीरी पंडितों की हालत में कोई सुधार आने वाला है। क्या कश्मीरी पंडितों की घर वापसी को लेकर कोई क्रांति होने वाली है। एक फिल्म के जरिए भले ही कश्मीरी पंडितों के दर्द को दिखाने की कोशिश की गई हो लेकिन विस्थापन का असली दर्द वही जानता है जिसे इसने खुद झेला है।
तो सवाल यही है क्या कश्मीरी पंडितों को वापस अपने घर कश्मीर जाने का मौका मिलेगा। फिल्म द कश्मीर फाइल्स की रिलीज के बाद एक बार फिर ये सवाल सामने खड़ा है। क्योंकि पिछले 32 साल में सरकारी फाइलों में कश्मीरी पंडितों के लिए चाहे जो हुआ हो लेकिन सच्चाई यही है कि 32 साल पहले कश्मीरी पंडित जहां थे। 32 साल बाद भी वहीं खड़े हैं। 1990 में कश्मीर से जो विस्थापन हुआ। उसका दर्द वही जान सकता है जिसने किसी अपने को खोया है, जिसने अपनी आंखों से अपने आशियाने को आतंक की आग में जलते देखा है।
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