Farmers Protest: ई-नाम मंडियों पर MSP दूर की कौड़ी, 20 फीसदी तक कम मिल रहे हैं दाम

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Nov 23, 2021 | 13:03 IST

Farmer Protest News: तीन कृषि कानूनों के ऐलान के बाद किसान संगठन MSP गारंटी कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं। ऐसे में सरकार एमएसपी को लेकर के लिए क्या कदम उठा सकती है, उसके लिए वह जल्द ही एक कमेटी बनाने की तैयारी में हैं।

MSP Guarantee
एमएसपी गारंटी किसानों की प्रमुख मांग  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • ई-नाम पोर्टल पर MSP से मिल रहा कम दाम, पोर्टल से 1.71 करोड़ से ज्यादा किसान हैं जुड़े।
  • ई-नाम पोर्टल से देश की 1000 मंडिया जुड़ी हुई हैं। सरकार का दावा है कि बिचौलिये खत्म होने से किसानों को फसल का उचित दाम मिलेगा।
  • राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात में सबसे ज्यादा मंडियां ई-नाम पोर्टल से जुड़ी हुई हैं।

नई दिल्ली: कृषि कानूनों के वापसी के ऐलान के बाद, किसान संगठनों ने एमएसपी पर गारंटी देने की मांग तेज कर दी है। उनका कहना है कि एमएसपी गारंटी मिलने और दूसरी मांगे पूरा होने के बाद ही वह आंदोलन वापस लेंगे। साफ है कि अब लड़ाई एमएसपी पर आकर टिक गई है। एमएसपी की गारंटी ऐसा मुद्दा है, जिस पर सरकार शुरू से अलग रवैया अपनाती रही है। उसका कहना है कि एमएसपी कभी भी गारंटी नहीं रही है। लेकिन सरकार लगातार एमएसपी की खरीद बढ़ा रही है। और पिछले 7 साल में रिकॉर्ड खरीद हुई है। ऐसे में एमएसपी को लेकर कोई खतरा नहीं है। हालांकि अगर आंकड़ों को देखा जाय तो देश के 90 फीसदी से ज्यादा किसान एमएसपी का लाभ नहीं ले पा रहे हैं। और उन्हें इस बात का डर है कि गारंटी नहीं मिलने पर, उन्हें आने वाले समय में भी कम कीमत पर ही फसलों को बेचना पड़ेगा। 

MSP गारंटी देने पर 10 लाख करोड़ रुपये की होगी खरीद

अगर सरकार केवल 23 फसलों पर एमएसपी की गारंटी देती है, तो 2016-17 से 2020-21 के दौरान उत्पादन के आधार पर कैलकुलेट किया जाय तो करीब 10.59 लाख करोड़ रुपये की खरीद हर साल होगी।  यह बात भी समझनी होगी कि किसान अपनी उपज का सारा हिस्सा नहीं बेचता है। जिसे देखते हुए इस राशि में 10-20 फीसदी तक कमी भी आ सकती है। अब समस्या यह है कि देश में 80 फीसदी खरीद केवल चावल और गेहूं की होती है। इसकी एक बड़ी वजह सरकार द्वारा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और मिड-डे-मील जैसी योजनाओं  के लिए खरीद करना है। ऐसे में दूसरी फसलों का लाभ किसानों को बहुत कम मिलता है। इसका ताजा उदाहरण ई-नाम मंडियों पर मिलने वाला रेट है।

9 में से 8 फसलें एमएसपी से कम रेट पर बिक रही हैं

एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 19 नवंबर तक ई-नाम पर 9 में से 8 फसलें एमएसपी से कम रेट पर बिक रही हैं। केवल सोयाबीन पर एमएसपी की तुलना में ज्यादा रेट मिल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार ज्वार की एमएसपी 2738 रुपये है लेकिन वह 1664 रुपये में बिक रहा है। इसी तरह बाजारा 2250 की जगह 2046 रुपये में , मक्का 1870 की जगह 1525 रुपये, रागी 3377 रुपये की जगह 2192 रुपये, अरहर 6300 रुपये की जगह 5918 रुपये, मूंग 7275 की जगह 5780 रुपये, उड़द 6300 की जगह 5138 रुपये, सोयाबीन 3950 की जगह 6291 रुपये, धान (सामान्य) 1940 की जगह 1526 रुपये में बिक रहा था। साफ है कि किसानों को ई-नैम पोर्टल पर एमएसपी से काफी कम कीमत पर अपनी फसलें बेचनी पड़ रही है।

23 फसलों का तय होता है एमएसपी

इस समय धान,गेहूं, मक्का, बाजरा,ज्वार, रागी, जौ, चना, अरहम, मूंग, उड़द, मसूर, मूंगफली तेल, सोयाबीन, सरसों, तिल, सूर्यमूखी,नाइजर सीड, कुसुम तेल , गन्ना, कपास, कच्चा जूट, नारियल पर एसएसपी तय होती है। जबकि फल, सब्जियां और पशुओं से होने वाले उत्पादन एमएसपी के दायरे से बाहर हैं। जिनकी कुल कृषि उत्पदान में करीब 45 फीसदी हिस्सेदारी है।

क्या है ई-नाम

राष्ट्रीय कृषि मार्केट(नेशनल ऐग्रीकल्चर मार्केट) ई-नाम एक एक ऑनलाइन ट्रेडिंग बाजार है, जहां पर देश के किसान अपनी उपज को बिना किसी बिचौलिए की मदद से बेच सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2016 में ई-नाम का उद्घाटन किया था। इस पोर्टल का उद्देश्य देशभर के किसानों के लिए देशव्यापी स्तर पर एक बाजार का निर्माण करना है, जिससे किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिल सके। ई-नाम पोर्टल के अनुसार इस समय 21 राज्यों के 1.74  करोड़ से ज्यादा किसान और व्यापारी इस प्लेटफॉर्म पर रजिस्टर्ड हो चुके हैं। और 175 फसलों की ट्रेडिंग हो रही है।

1000 मंडिया जुड़ी, राजस्थान, यूपी सबसे आगे

ई-नाम पोर्टल पर अब तक APMC की 1000 मंडियां जुड़ चुकी हैं। इसके तहत सबसे ज्यादा राजस्थान की 144, उत्तर प्रदेश की 125, गुजरात की 122, महाराष्ट्र की 118, हरियाणा की 81 और मध्य प्रदेश की 80 मंडिया जुड़ चुकी हैं।


 

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