साल 2020 का नवंबर महीना था दिल्ली के तीनों बॉर्डर सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर सरगर्मी बढ़ चुकी थी। देश के अलग अलग हिस्सों खासतौर से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने मोर्चा संभाल लिया था। विरोध की वजह तीन कृषि कानून थे। किसानों को डर था कि इन तीन कानूनों के जरिए उनकी खेती छिन जाएगी। सरकारी तंत्र कहता रहा कि जो अन्नदाता विरोध कर रहे हैं उनकी शंका बेबुनियाद है। लेकिन जो धरना पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में जन्मा और पनपा वो जवान होकर सरकार को चुनौती देने लगा था। दबाव के बीच सरकार की तरफ से 11 दौर की बातचीत हुई। लेकिन नतीजा सिफर रहा। इस बीच समय निकलता रहा।
26 जनवरी को लोकतंत्र हुआ शर्मसार
किसानों ने भी आरपार की लड़ाई लड़ने की ठानी और दिल्ली में दाखिल होने का ऐलान किया। सरकार ने भी कमर कसी। लेकिन 26 जनवरी को दिल्ली में जिस तरह से हिंसा हुई वो हर किसी को शर्मसार करने वाला था। हालात ये बने की दोनों तरफ बातचीत का सिलसिला हमेशा के लिए टूट गया। इन सबके बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने देश के नाम संदेश देकर बताने की कोशिश कृषि बिल किसानों के विरोध में नहीं है और एमएसपी कभी भी खत्म नहीं होगी। सरकार ने कहा कि वो किसानों से एक कॉल दूर है लेकिन वो कॉल इंतजार भर बन कर रह गई।
राकेश टिकैत के आंसूओं ने पलटा खेल
इस बीच आंदोलन ने कई रंग देखे। एक पल ऐसा लगा कि अब आंदोलन बिखर जाएगा। लेकिन गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैट के आंसुओं ने किसान आंदोलन में जान फूंक दी। समय के साथ किसान नेता सरकार के खिलाफ कभी नरम तो कभी गरम सुर अख्तियार करते रहे। इस बीच 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हिंसा हुई जिसमें गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे का नाम सामने आया और किसान आंदोलन ने फिर रंग पकड़ लिया।
उसके बाद विधानसभा उपचुनाव के नतीजे जिस तरह से आए उसके बाद केंद्र सरकार भी बैकफुट पर आ गई। लेकिन हर कोई हैरत तब हुआ जब पीएम मोदी सुबह सुबह राष्ट्र के नाम संदेश में बोले कि कृषि बिल को सरकार ने वापस ले लिया है और आंदोलन के खत्म होने की पटकथा लिख दी गई थी जिसका औपचारिक ऐलान किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने की और किसान आंदोलन को 11 दिसंबर को औपचारिक तौर पर खत्म कर दिया गया।
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