नई दिल्ली। नए कृषि कानूनों और एमएसपी के मुद्दे पर किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 9वें दौर की बातचीत पहले की तरह बेनतीजा रही। किसान संगठन पहले की ही तरह अपनी मांग पर अड़े रहे कि वो कृषि कानूनों को खारिज करने से कम पर सहमत नहीं हैं और इस तरह से बातचीत के लिए एक और तारीख मुकर्रर कर दी गई है। किसान अपनी मांग पर जस के तस अड़े हुए हैं। बातचीत से पहले सरकार ने किसानों को प्रस्ताव दिया था कि वो कानूनों की वापसी को बाकी प्रस्तावों पर विचार के लिए तैयार है। अब अगले दौर की बातचीत 15 जनवरी को होगी।
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने क्या कहा
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार की तरफ से स्पष्ट किया कि कानूनों की वापसी के अतिरिक्त अगर यूनियन कुछ और प्रस्ताव दे तो अच्छा होगा। इस तरह की जिक्र के बाद किसानों की तरफ से किसी तरह का जवाब नहीं आया और दोनों पक्षों ने 15 जनवरी की तारीख मुकर्रर की है। किसान यूनियन की तरफ से प्रस्ताव आना चाहिए। बाबा लक्खा सिंह से संपर्क के बारे में उन्होंने कहा कि हमने किसी से संपर्क नहीं किया। जहां तक कृषि कानून की बात है तो बहुत से ऐसे पक्ष हैं जो समर्थन में भी हैं। लिहाजा सरकार को दोनों पक्षों को सुनना होगा।
बातचीत में किसान संगठन, सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार
किसान संगठनों ने कहा कि सरकार की तरफ यह कहा गया कि अच्छा होगा इस मामले में अब सुप्रीम कोर्ट फैसला करे। लेकिन सरकार की तरफ से बयान आया है कि हमारी तरफ से इस तरह की बात नहीं कही गई है। हम सब इस लोकतांत्रिक देश के नागरिक हैं, यदि कोई कानून लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित किया जाता है तो देश के हर एक नागरिक को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को मानना होगा।
बाबा लक्खा सिंह से मध्यस्थता के लिए नहीं कहा गया
बाबा लक्खा सिंह से मध्यस्थता के लिए सरकार ने कुछ नहीं कहा। चुंकि वो सिख समाज से जुड़े बड़े धार्मिक चेहरें हैं, उन्होंने किसानों की दिक्कतों के संबंध में अपनी पीड़ा व्यक्त की और मिलने की बात कही। सरकार ने सम्मान के साथ उन्हें बुलाया और बातचीत की। उनसे अच्छी चर्चा हुई। हमारे मन में किसानों के प्रति सम्मान है और हम चाहते हैं कि बातचीत का सार्थक नतीजा निकलना चाहिए।
किसानों का क्या है कहना
केंद्र सरकार से बातचीत बेनतीजा रहने पर किसान संगठनों का कहना है कि उनका विरोध जारी रहेगा। किसान नेता हनान मुल्ला ने कहा कि अब 1 जनवरी को किसान संगठनों की एक बार और बातचीत होगी। इसके साथ ही किसानों ने कहा कि मौजूदा कृषि कानून पूरी तरह से किसान विरोध हैं। इस बीच एक किसान नेता ने कहा कि इस लड़ाई में या तो हम जीतेंगे या मरेंगे। बताया जा रहा है कि सरकार की तरफ से बातचीत के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया गया है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकार बताते हैं कि जिस तरह से किसान नेताओं ने सात जनवरी का ट्रैक्टर रैली के बाद कहा कि कृषि कानूनों से वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं और उसके बाद सरकार की तरफ से यह कहना कि कानूनों की वापसी को छोड़ वो सभी प्रस्तावों पर बातचीत के लिए तैयार हैं तो नतीजा स्पष्ट था कि आगे क्या होने वाला है।
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