7 दिसंबर के बाद दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन के वापसी के कयास तेज है। उससे पहले संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से एमएसपी को लेकर बनाये गयी कमिटी केंद्र सरकार से बात करेगी। अगर इस कमिटी को मोदी सरकार की तरफ से ठोस आश्वासन मिलता है तो आंदोलन खत्म करने की घोषणा हो सकती है लेकिन आपको बताते हैं कि ये इस कमिटी में शामिल ये 5 किसान नेता कौन हैं।
अशोक धवले
पेशे से डॉक्टर रहे अशोक धवले देश के सबसे बड़े किसान संगठन 'ऑल इंडिया किसान सभा' के अध्यक्ष हैं. तीन कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा के अहम हिस्सा हैं. करीब 3 दशक से किसान हितों के लिए संघर्ष कर रहे अशोक धावले ने 2018 के नासिक से मुम्बई के ऐतिहासिक किसान मार्च का प्रतिनिधित्व किया था. इस मार्च में 50000 किसानों ने 7 दिन लगातार पैदल मार्च किया और महाराष्ट्र सरकार से एमएस स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करने की मांग की थी. महाराष्ट्र में जन्मे धवले ने करीब 8 साल मेडिकल प्रैक्टिस की. 1983 में वो सीपीआई(एम) से जुड़ गए. महाराष्ट्र के किसानों के लिए उन्होंने 4 मुद्दों पर काम किया- जमीन अधिकार, ऋणमाफी, न्यूनतम मजदूरी और पेंशन वृद्धि. संयुक्त किसान मोर्चे की तरफ से बनाई गई 5 सदस्यीय कमिटी में अशोक धवले की एमएसपी पर दी जाने वाली राय काफी अहम होगी.
युद्धवीर सिंह
दिल्ली के महिपालपुर के रहने वाले युद्धवीर सिंह मूल रूप से किसान हैं. जाट नेता युद्धवीर सिंह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से लेकर बाबा टिकैत के साथी रहे हैं. मौजूदा समय में वो राकेश टिकैत के साथ मिलकर किसान आंदोलन चला रहे हैं. इससे पहले वो न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनायी गयी 'रमेश चंद्रा कमिटी' के सदस्य रहे हैं. युद्धवीर सिंह सहरावत ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया और वो राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव भी रह चुके हैं. उन्होंने किसानों की सबसे पहली लड़ाई दिल्ली के कंझावला इलाके से शुरू की थी. उसके बाद संसद के पास बने बोट क्लब पर किसानों के ऐतिहासिक ट्रैक्टर मार्च कराने में अहम भूमिका निभायी थी. 1988 में बाबा महेंद्र टिकैत की अगुवाई में 14 राज्यों के 5 लाख किसान बोट क्लब पर जमा हो गए थे. उसके बाद उन्होंने भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था.
शिवकुमार शर्मा(कक्का)
69 साल के शिवकुमार कक्का मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में किसान परिवार से आते हैं. जबलपुर विश्वविद्यालय से लॉ ग्रेजुएट कक्का छात्र राजनीति में शरद यादव के साथ जुड़ गए थे. एक वक्त एमपी के वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के शुभचिंतक रहे कक्का बाद में किसानों के मुद्दे को लेकर सरकार के खिलाफ खड़े रहे. जेपी आंदोलन से लेकर आपातकाल में कई बार जेल जा चुके शिवकुमार कक्का ने 2010 के भोपाल किसान आंदोलन से लेकर मंदसौर के किसान विद्रोह के अगुवा रहे. 1981 में वो एमपी सरकार में विधिक सलाहकार रहे. बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय किसान संघ से जुड़े रहे हैं. कृषि कानूनों को रद्द करवाने को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर जो आंदोलन चल रहा उसमें लगातार मीडिया से मुखातिब होते रहे हैं.
बलबीर सिंह राजेवाल
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल पंजाब के जाना माना नाम हैं. 90 के दशक में भारतीय किसान यूनियन छोड़कर अपना गुट बनाया और किसानों की लड़ाई जारी रखी. भारतीय किसान यूनियन के संविधान का प्रारूप लिखने का क्रेडिट इन्हें ही जाता है. खेती किसानी से जुड़ी मामलों पर गहरी पकड़ की वजह से उन्हें मौजूदा किसान आंदोलन का 'थिंक टैंक' तक माना जाता है. 77 साल के राजेवाल की वरिष्ठता उन्हें आन्दोलन का सबसे बड़ा नेता बनाती है. जानकार बताते हैं कि केंद्र सरकार और किसानों के बीच विज्ञान भवन में हुई 11 दौर की बातचीत में केंद्रीय मंत्रियों के सामने वो किसानों के मुद्दे सबसे बेबाकी से रखते आये हैं. एक वक्त में अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह के काफी करीब रहे राजेवाल ने सरकार को पंजाब में खेती के हालात बेहतर करने के लिए मदद भी की थी.
गुरुनाम सिंह चढूनी
साल 2020 की जुलाई में जब केंद्र सरकार विवादित 3 कृषि कानून लेकर आ रही थी तो उसके विरोध में हरियाणा में किसानों ने 10 हज़ार ट्रैक्टर लेकर मार्च निकाला. इस ट्रैक्टर मार्च का आव्हान भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के नेता गुरुनाम सिंह चढूनी ने किया था. ये वो वक़्त था जब चढूनी पूरे देश की नज़र में आए. लेकिन तब ये नहीं पता था कि ये ट्रैक्टर मार्च एक साल से भी ज्यादा चलने वाले किसान आंदोलन का रूप लेगा. ट्रैक्टर मार्च के बाद चढूनी ने किसान कानूनों के खिलाफ एक रैली बुलाई थी लेकिन इस रैली पर हरियाणा पुलिस में लाठीचार्ज किया.कई किसान घायल हुए और फिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र के आसपास सिमटा ये किसान विद्रोह राष्ट्रीय स्तर का हो गया. पिछले साल चढूनी ने ही किसानों के दिल्ली तक जाने की बात कही थी. उसके बाद किसान आंदोलन क्व दौरान इसी साल करनाल में किसानों पर लाठीचार्ज का विवादित आदेश देने वाले एसडीएम आयुष सिन्हा का ट्रांसफर चढूनी के आंदोलन के बाद ही हुआ था.
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