आलोक रंजन
मोदी थैरेपी का दूसरा दौर देशी खेती में विदेशी निवेश के साथ शुरु हो रहा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए केद्रीय कृषि मंत्रालय एक ऐसा एग्रीमेंट का मसौदा बनाने जा रहा है जो किसानों के लिए कानूनी कवच का काम करेगा । केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती आएगी और इसके साथ किसान को रक्षा कवच मिलेगा। किसान पारंपरिक फसलों के अलावा अपने मन की फसल उपजा सकेगा ।
खेती में विदेशी निवेश कितना कारगर
दरअसल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कई फायदे और एकाध नुकसान भी हैं । सबसे पहला ये कि कोई कंपनी अगर गांव तक पहुंचेगी तो खाद्य प्रसंस्करण के लिए उद्योग लगाएगी। स्थानीय ग्रामीणों को वहां रोज़गार उपलब्ध होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कैश फ्लो बढ़ेगा। दूसरा ये कि रिस्क फैक्टर कम होगा। कंपनी सौ- दो सौ किसानों से एग्रीमेंट करेगी और उसमें न्यूनतम भाव लिखा होगा,हालांकि किसान को उस वक्त का बाज़ार भाव मिलेगा जब वो कंपनी को फसल सौपेंगा। लेकिन हर हाल में किसान न्यूनतम भाव का हकदार होगा।
किसान को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी
तीसरी बड़ी बात ये हैं कि किसान को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी । ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मोहित सिंगला का मानना हैं कि वन इंडिया, वन एग्री मार्केट को भी इस पहल का फायदा मिलेगा। बागवानी विशेषज्ञ सुब्रत सरकार कहते है कि किसान, प्रसंस्करण कर्ता , वेयर हाउस और निर्यातकों के बीच इस कदम से तालमेल बेहतर होने की उम्मीद हैं ।
गांव के निकट खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगने से फायदा होगा
दूसरी ओर कृषि जगत पर पैनी नज़र ऱखने वाले जानकार निर्मल तिवारी कहते हैं कि लधु और सीमांत किसानों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से ज्यादा लाभ मिलने की संभावना कम हैं । विदेशी कंपनी एफपीओ या बड़े काश्तकार की ओर पहले रुख करेगी । उन्हे थोक भाव में उपज चाहिए होगा लेकिन कृषि बाज़ार में भाव के स्तर पर स्थिति बेहतर होगी । साथ ही उपभोक्ताओं को भी फायदा मिलेगा।बिहार के गोपालगंज जिले के एक बड़े किसान अभिषेक काफी पढ़े-लिखे हैं और कृषि जगत की बारीकियों को समझते हैं। उनका मानना है कि मंडियों तक जल्द उपज पहुंचाना कठिन होता हैं, अगर ये हल हो जाएं तो बड़े और छोटे किसानों दोनों को फायदा होगा। गांव के निकट खाद्य प्रसंस्करण यूनिट लगने से फायदा अवश्य होगा ।
संजीवनी के साथ कवच
वहीं विदेशी निवेश लेकर आने वाली कंपनियों के चलते कृषि तकनीक भी बेहतर होने की संभावना हैं। विदेशों से खेती की तकनीक पर सीधा संवाद भी कारगर साबित होगा । पहले भी मनमोहन सिंह के प्रथम कार्यकाल में ऐसी कोशिश हुई थी। कुल मिलाकर ये कहा जा सकता हैं कि मोदी सरकार ने खेती में विदेशी निवेश की पहल कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने की कोशिश की हैं। हर काम में लाभ-हानि दोनों होते हैं। इसमें फायदे के साथ छोटे किसानों के लिए बड़ा लाभ नहीं है। इस मामले में मोदी थैरेपी कितनी कारगर होती है ये आने वाले समय में देखना महत्वपूर्ण होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और खेती किसानी पर जागरूकता मुहिम चला रहे हैं। दूरदर्शन किसान से भी जुड़े रहे हैं।)
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