Atal Bihari Vajpayee: पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि, देश कर रहा है नमन

देश
ललित राय
Updated Aug 16, 2020 | 06:15 IST

Atal Bihar Vajpaee death anniversary: पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की आज दूसरी पुण्यतिथि है। 16 अगस्त 2018 को उन्होंने एम्स में अंतिम सांस ली थी।

Atal Bihari Vajpayee's second death anniversary: पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि
16 अगस्त 2018 को एम्स में अटल बिहारी वाजपेयी का हुआ था निधन 
मुख्य बातें
  • 16 अगस्त 2018 को अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली के एम्स में हुआ था निधन
  • वाजपेयी के निधन से भारतीय राजनीति में रिक्तता आई
  • सभी दलों में स्वीकार्य थे अटल बिहारी वाजपेयी

नई दिल्ली। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि आज है। 2018 को वो साल था और 16 अगस्त का दिन था जब देश के सबसे प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्थान एम्स से खबर आई कि अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। उनके निधन राजनीति में एक युग का अंत हो गया। वाजपेयी की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वो सभी राजनीतिक दलों में स्वीकार्य थे। ऐसा नहीं था कि उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता नहीं थी। लेकिन उन्होंने विचार आधारित राजनीति पर बल दिया और उसका असर दिखाई भी देता था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आईसीसीआर के आजाद भवन में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की पोर्ट्रेट का वर्चुअली अनावरण करेंगे।

राजनीति में मर्यादा और एक दूसरे का सम्मान जरूरी
अटल बिहारी वाजपेयी जब मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री थे तो एक वाक्या का जिक्र करते हैं जिसमें उन्होंने बताया था कि किस तरह से साउथ ब्लॉक के गलियारे से जब वो गुजर रहे थे तो पंडित जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर गायब थी। उन्होंने अधिकारी से सिर्फ सवाल किया और दूसरे दिन वो तस्वीर दीवाल पर टंगी नजर आई। राजनीति के जानकार कहते हैं कि उनकी यही खासियत विरोधी दलों में उन्हें स्वीकार्य बनाती थी। वो  कहा करते थे कि जनमुद्दों पर विरोध का मतलब यह नहीं है कि राजनीतिक विचार चेतना को तिलांजलि दे दी जाए। राजनीतिक दलों को विरोध के बीच एक ऐसी संस्कृति का विकास करना चाहिए जो आने वाली पीढ़ी के लिए आदर्श बन सके। 

अटल जी तो 'सदैव अटल'
अटल बिहारी वाजपेयी की 2019 में पहली पुण्यतिथि पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वो तो सदैव अटल हैं। नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा था कि अटल जी एक संस्था थे। विचारों में विरोध के बाद भी वो राजनीतिक मर्यादा को बनाए और बचाए रखने के हिमायती थे। वो अक्सर एक बात कहा करते थे कि व्यक्ति दल से बड़ा देश है और देश लोगों से मिलकर बना है, लिहाजा किसी भी पार्टी की राजनीति के केंद्रबिंदु में सदैव आम व्यक्ति ही होना चाहिए। 

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