नई दिल्ली: आजाद भारत के सबसे बड़े राजनीतिक मुद्दे का शनिवार 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेच के फैसले के साथ ही अंत हो गया। 70 साल से चल रहे अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए रामजन्म भूमि न्यास के पक्ष में फैसला दिया। इसके साथ ही मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया। कोर्ट ने सरकार का तीन महीने के अंदर ट्रस्ट का गठन करके विवादित जमीन उसे सौंपने को आदेश दिया है। इसके अलावा मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है।
9 नवंबर का दिन एक बार फिर रामजन्म भूमि मामले में यादगार बन गया। आज से तीस साल पहले इसी तारीख को राममंदिर निर्माण का शिलान्यास अयोध्या में हुआ था। बिहार के सहरसा के रहने वाले कामेश्वर चौपाल ने मंदिर निर्माण के लिए पहला पत्थर रखा था। दलित परिवार से ताल्लुक रखने वाले कामेश्वर चौपाल विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता थे और वीएचपी नेतृ्त्व ने उनसे पहली ईंट रखवाई।
प्रधानमंत्री में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित स्थल का ताला खुलवाया था। माना जाता है कि इसके बाद उन्होंने मंदिर निर्माण के शिलान्यास में भी अहम भूमिका अदा की। राजीव गांधी ने ऐसा रुख अपनाया था जिससे राममंदिर के निर्माण में कोई विवाद न हो और विवादित ढांचा भी बचा रहे। लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचे को कारसेवकों ने ढहा दिया। इसके बाद तीन दशक तक यह मामला देश की विभिन्न अदालतों में चलता रहा।
9 नवंबर 1989 को मूहूर्त देखकर पूरे विधि-विधान के साथ मंदिर निर्माण का शिलान्यास किया गया। भूमि पूजन स्वामी वामदेव ने किया, वास्तुपूजा पंडित महादेव भट्ट और पंडित अयोध्या प्रसाद ने करवाई। खुदाई का शुरुआत गोरक्षनाथ मठ के प्रमुख महंत अवैद्यनाथ ने फावड़ा चलाकर की थी। इसके बाद 35 वर्षीय कामेश्वर चौपाल ने पहली ईंट रखी। एक दलित युवक से मंदिर का शिलान्यास कराने को सामाजिक समरसता के रूप में देखा गया था। कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल सहित राममंदिर आंदोलन से जुड़े तमाम नेता मौजूद थे।
इस घटना के बाद राजीव गांधी ने अपने चुनाव अभियान की शुरुआत फैजाबाद से की थी और रामराज्य की स्थापना का नारा दिया था। नागपुर में एक चुनावी सभा के दौरान उन्होंने मंदिर के शिलान्यास का श्रेय कांग्रेस पार्टी और अपनी सरकार को दिया था।
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