नई दिल्ली। नए वर्ष के पहले दिन कोरोना वैक्सीन के संबंध में अच्छी खबर तब आई जब सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की वैक्सीन कोविशील्ड को सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ने मंजूरी दे दी। कोविशील्ड को अब डीसीजीआई ने इमरजेंसी इस्तेमाल पर मुहर लगा दी है। जब हम बात सीरम इंस्टीट्यूट की कोरोना वैक्सीन की बात करते हैं तो टेटनस के खिलाफ बनाई गई वैक्सीन की याद आ जाती है। सीरम इंस्टीट्यूट ने सबसे पहले टेटनस वैक्सीन पर काम करना शुरू किया था।
1967 में भारत में टिटनस की वैक्सीन
वैक्सीन किंग के नाम से मशहूर सायरस पूनावाला ने 1967 में टिटनस के टीके बनाकर कंपनी की शुरुआत की थी। सायरस पूनावाला ने टिटनस का टीका बनाने के बाद सांप के काटने के एंटीडोट्स बनाए। फिर टीबी, हेपिटाइटिस, पोलियो और फ्लू के शॉट्स बनाए।एसआईआई अब पोलियो वैक्सीन के साथ-साथ डिप्थीरिया, टिटनस, पर्ट्युसिस, एचआईबी, बीसीजी, आर-हेपेटाइटिस बी, खसरा, मम्प्स और रूबेला के टीके बनाती है। आम लोगों को कम कीमत पर टीका मिल सके इसके लिए सीरम इंस्टीट्यूट की तरफ से पहल की गई। 2004 में दुनिया का इकलौता तरल एचडीसी रैबीज टीका भी तैयार किया था। उसके छह साल बाद कंपनी ने एच1एन1 इन्फ्लूएंजा (स्वाइन फ्लू) का टीका भी पेश किया था। भारत में पोलियो के उन्मूलन के लिए जारी प्रयासों के बीच 2014 में पिलाने वाले पोलियो टीके को भी उतारा था।
अब तक करीब1.5 अरब डोज का हो चुका है सौदा
सीरम इंस्टीट्यूट अब तक करीब डेढ़ अरब करीब डोज बेच चुकी है। यह भी अपने आप में रिकॉर्ड है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के अलग अलग मुल्कों में करीब 60 फीसद बच्चों को सीरम की कोई न कोई वैक्सीन लगी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का से इस संस्थान को मान्यता मिली हुई है और इसकी वैक्सीन की सप्लाई दुनिया के 170 देशों होती हैं। पुणे में मौजूद घोड़ों के फार्म से बड़ा वैक्सीन प्लांट तैयार किया। भारत के सस्ते लेबर और एडवांस टेक्नोलॉजी को मिलाकर सीरम इंस्टीट्यूट ने गरीब देशों के लिए सस्ती वैक्सीन सप्लाई करके यूनिसेफ, पैन अमेरिकन हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का ठेका हासिल किया।
1975 में राष्ट्रीय टीकाकरण में आगे बढ़ा भारत
राष्ट्रीय टीकाकरण नीति को वर्ष 1975 में अपनाया गया था, जिसे Expanded Program of Immunization के जरिए शुरू किया गया।1985 में बदलकर Universal Immunization Program का नाम देकर पूरे देश में लागू किया गया। भारत का टीकाकरण कार्यक्रम गुणवत्तापूर्ण वैक्सीन का उपयोग करने, लाभार्थियों की संख्या, टीकाकरण सत्रों के आयोजन और भौगोलिक क्षेत्रों की विविधता को कवर करने के संदर्भ में विष्व का सबसे बडा कार्यक्रम है।
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