महाराष्ट्र (Maharashtra) का सियासी तापमान बढ़ गया है, भाजपा 'वेट एंड वॉच' की स्थिति में है लेकिन उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सरकार संकट में पड़ती दिख रही है। देशभर में महाराष्ट्र को सियासी हलचल है। बता दें कि शिवसेना के 22 बागी विधायकों की लिस्ट भी सोशल मीडिया पर तैरने लगी।
महाराष्ट्र संकट लगातार गहराता जा रहा है। उद्धव सरकार का क्या होगा, वो रहेगी या जाएगी, पहले महाराष्ट्र संकट को दस बड़ी ब्रेकिंग से समझिए-
बालासाहेब के हाथों राजनीति का राजतिलक...बालासाहेब की छत्रछाया में सियासी सफर की शुरुआत... बालासाहेब की ब्रिगेड का सच्चा सिपाही....शिवसेना के हिंदुत्व की पहचान के ध्वजवाहक...उद्धव के बाद शिवसेना में दूसरे सबसे ताकतवर शिवसैनिक...स्वभाव से मृदुभाषी लेकिन राजनीतिक अंदाज आक्रामक...सियासी जोड़तोड़ के माहिर खिलाड़ी...एकनाथ शिंदे
....कभी बालासाहेब के सिद्धांतों से सरोकार रखते हुए शिवसेना का झंडा थामने वाले एकनाथ शिंदे ने आज शिवसेना की पहचान से पीछा छुड़ा लिया है...उन्होंने ट्विटर पर अपने बायो से शिवसेना हटा दिया। एक वक्त था जब एकनाथ शिंदे बालासाहेब ठाकरे के प्रभाव से अछूते नहीं थे...हालांकि वो 70-80 के दशक में ठाणे में वर्चस्व रखने वाले शिवसेना नेता आनंद दिघे के संपर्क में आए और बालासाहेब से जुड़ने का मौका मिला...
1980 के दशक में उन्होंने बालासाहेब को सरकार मानते हुए 18 साल की उम्र में ही शिवसेना का दामन थाम लिया...एकनाथ शिंदे को किसान नगर का शाखा प्रमुख नियुक्त किया गया...साल 1997 में एकनाथ शिंदे को शिवसेना ने ठाणे नगर निगम चुनाव में पार्षद का टिकट दिया और उन्होंने भारी बहुमत से जीत हासिल की।
इसके बाद साल 2004 में वो पहली बार ठाणे सीट से विधानसभा पहुंचे...साल 2014 के चुनावों के बाद एकनाथ शिंदे को शिवसेना के विधायक दल के नेता और बाद में महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर चुना गया...अचानक एकनाथ शिंदे, शिवसेना से दूर क्यों होने लगे...क्यों उनके और मातोश्री के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और नौबत यहां तक आ गई कि महाराष्ट्र की सियासत में उनके एक दांव ने भूचाल ला दिया और उद्धव के सिंहासन को हिला दिया...
इसके अलावा शिंदे वो नेता हैं जिनका बीजेपी की तरफ झुकाव रहा है...देवेंद्र फडणवीस से उनकी करीबी जगजाहिर है...यही नहीं वो हिंदुत्व पर शिवसेना के समझौते से भी सहमत नहीं थे...वक्त गुजरते-गुजरते शिंदे की नाराजगी अपने नेताओं से इतना बढ़ गई कि उन्होंने महाविकास अघाड़ी गठबंधन के सामने सबसे बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया...शिवसेना को बीच मंझदार में डूबने के लिए अकेला छोड़ दिया।
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