नई दिल्ली : समाज में बहुतेरे लोग हैं, जो बेटियों को बेपनाह मोहब्बत देते हैं, लेकिन कई जगह लैंगिक भेदभाव आज भी एक सच्चाई है। फिर आज से तकरीबन 6 दशक पहले की ऐसी स्थितियों और सामाजिक सोच का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। किसी नवजात को सिर्फ इसलिए मार दिया जाए, क्योंकि वह लड़की है, ये मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला है, लेकिन इस उपेक्षा, तिरस्कार के बाद भी कोई अपने जीवट से कुछ ऐसा कर गुजरे कि वह मिसाल बन जाए तो हर तरफ उसकी चर्चा लाजिमी है।
गुलाबो सपेरा ऐसी ही महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिन्हें समाज ने सिर्फ इसलिए मरने को छोड़ दिया, क्योंकि वह लड़की थी। राजस्थान में जिस सपेरे समाज से वह ताल्लुक रखती हैं, वह बेटियों को कभी अभिशाप के तौर पर देखता था। लेकिन आज वही गुलाबो अपने समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं। साल 1960 में राजस्थान के अजमेर जिले के कोटड़ा गांव में जब उनका जन्म हुआ था, तब अभिशाप समझकर समाज के लोगों ने उन्हें जिंदा ही जमीन में दफन कर दिया था।
अपनी कहानी बयां करते हुए गुलाबो ने कई मौकों पर बताया है कि किस तरह उनकी मौसी और मां रात के करीब 12 बजे उन्हें वापस जमीन खोदकर घर लाई थीं। गुलाबो को नई जिंदगी मिली थी, जिन्होंने आगे चलकर न सिर्फ कला के क्षेत्र में अपने नृत्य कौशल से बड़ी प्रसिद्धि पाई, बल्कि अपने समाज की लड़कियों की जिंदगी बचाने में भी अहम भूमिका निभाई।
उन्होंने नृत्य की एक नई विधा को दुनियाभर में प्रसिद्धि दिलाई, जिसे कालबेलिया के तौर पर जाना जाता है। उनकी प्रसिद्धि और लोकप्रियता ही थी कि वही समाज, जो कभी उन्हें मरने के लिए छोड़ आया था, अब उन पर गर्व करने लगा था। वह अपने समाज के उन लोगों को समझाने में सफल रहीं, जो लड़कियों के जन्म लेते ही मार देते थे और इस तरह उन्हें अभिशाप समझने की सोच भी जाती रही। बाद में साल 2016 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
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