नई दिल्ली : अपने कोरोना टीके में नवजात बछड़े का सीरम (रक्त का जलीय अंश) इस्तेमाल होने की मीडिया रिपोर्टों पर भारत बायोटेक ने सफाई दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को कहा कि अंतिम रूप से तैयार कोरोना टीके में गाय का सीरम नहीं होता है और टीका निर्माण की अंतिम प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले सामग्री में भी इसका प्रयोग नहीं होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि टीके के निर्माण में नवजात गाय के बछड़े के सीरम के इस्तेमाल पर 'तथ्यों को तोड़-मरोड़कर और गलत तरीके से पेश किया गया है।'
'वीरो सेल्स के विकास में होता है बछड़े के सीरम के इस्तेमाल'
मंत्रालय ने कहा है कि नवजात बछड़े के सीरम का इस्तेमाल केवल वीरो सेल्स के विकास एवं उसकी तैयारी में किया जाता है। वीरो सेल्स के विकास में दुनिया भर में अलग-अलग जानवरों के सीरम का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक मानक रूप है। कोशिकाओं का जीवन बढ़ाने के लिए वीरो सेल्स का इस्तेमाल किया जाता है और वैक्सीन के उत्पादन में मदद मिलती है। इस पद्धति का इस्तेमाल पोलियो, रैबिज एवं इंफ्लुएंजा के टीकों के निर्माण में होता आया है।
फाइनल वैक्सीन में नहीं होता इसका इस्तेमाल
मंत्रालय का कहना है कि वीरो सेल्स के विकास के बाद उन्हें कई बार पानी एवं रसायन से साफ किया जाता है। इस प्रक्रिया में वीरो सेल्स पर बछड़े के सीरम दूर हो जाता है। इसके बाद वायरल ग्रोथ के लिए वीरो सेल्स को कोरोना वायरस के साथ संक्रमित किया जाता है। वायरल ग्रोथ के दौरान वीरो सेल्स पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। इस प्रक्रिया से उत्पन्न वायरस नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद मरे हुए वायरस का इस्तेमाल फाइनल वैक्सीन बनाने में किया जाता है। अंतिम टीके की सामग्री में बछड़े के सीरम का इस्तेमाल नहीं होता है।
मंत्रालय ने भ्रांति दूर की
सोशल मीडिया में भी इस तरह की चर्चा देखने को मिली है जहां लोगों ने कोरोना टीकों के निर्माण में गोवंश या जानवरों के सीरम के इस्तेमाल होने की बात कही है। अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि कोरोना वैक्सीन निर्माण की अंतिम प्रक्रिया में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल नहीं होता।
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