Hijab Case: कर्नाटक में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिकाओं पर कर्नाटक हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है। आज नवें दिन इस मसले पर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति जे एम खाजी और न्यायमूर्ति कृष्णा एम दीक्षित की पूर्ण पीठ कक्षा के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
कॉलेज के वकील का पक्ष
हिजाब का विरोध करने वाले पीयू कॉलेज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस नागानन्द ने प्रस्तुतियां जारी रखीं। उन्होंने अदालत को बिना हिजाब के याचिकाकर्ता के आधार कार्ड की तस्वीर दिखाई। नागानन्द ने कहा कि एक और आरोप यह है कि हम छात्रों को डांट रहे थे। हम कई सालों से शिक्षक हैं और वे छात्रों को अपने मित्र ओर रिश्तेदार की तरह मानते हैं। मैं आरोपों से इनकार करता हूं। उनका कहना है कि शिक्षक डांट रहे थे। ये गंभीर आरोप हैं, याचिकाकर्ताओं ने इसकी पुष्टि नहीं की है। उनका कहना है कि उन्हें अनुपस्थित मार्क की धमकी दी गई थी। हां, यदि वे कक्षा में उपस्थित नहीं होते हैं तो उन्हें अनुपस्थित के रूप में चिह्नित कर दिया जाएगा। अनुच्छेद 25 के उल्लंघन पर बहस होती है। सरकार ने निर्धारित नहीं किया है, यह कहा है कि संस्था निर्णय लें। हमारे मामले में संस्था ने 2004 से (वर्दी के लिए) निर्णय लिया है। एक शिक्षण संस्थान में, जिस निकाय ने एक लोकतांत्रिक निकाय द्वारा निर्णय लिया है, सार्वजनिक व्यवस्था के लिए, अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एक समान यूनीफॉर्म पहनी जानी चाहिए। यह सार्वजनिक व्यवस्था है।
CFI ने शुरू कराया आंदोलन: नागानंद
पीयू कॉलेज के वकील नागानंद ने हाई कोर्ट को बताया कि कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) एक कट्टरपंथी संगठन है, जिसने हिजाब के लिए आंदोलन की अगुवाई की। वे किसी स्कूल या कॉलेज द्वारा मान्यता प्राप्त संघ नहीं है और वे सिर्फ हंगामा कर रहे थे। सीएफआई के प्रतिनिधि आए और कॉलेज के अधिकारियों से मिले और कहा कि छात्रों को हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके बाद ही हंगामा शुरू हो गया और छात्रों ने विरोध करना शुरू कर दिया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) की भूमिका के संबंध में महाधिवक्ता से रिपोर्ट मांगी है।
उन्होंने कहा कि जब व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास किया जाता है, तो वह सार्वजनिक व्यवस्था है। व्यवस्था रखने के लिए यूनीफॉर्म थी। स्कूल के अधिकार को कम नहीं किया जा सकता है। स्कूल को कक्षा में अनुशासन बनाए रखना होता है। यदि निर्णय वास्तविक रूप से लिया जाता है, और लगभग 18 वर्षों तक इस पर सवाल नहीं उठाया जाता है। यह समान नियम 2004 से है। बीस साल तक हमारे पास यूनीफॉर्म थी और सब कुछ शांतिपूर्ण था और अचानक सीएफआई जैसे संगठन आए और छात्रों और अभिभावकों को उकसाया और पूरी शिक्षा प्रभावित है।
नागानंद ने कहा कि यह एक साधारण सी बात है, बच्चे स्कूल आएं और धर्म के बाहरी प्रतीकों को न पहनें। अब हिंदुओं का एक दक्षिणपंथी संघ भगवा शॉल पहनना चाहता है। कल मुस्लिम लड़के टोपी पहनना चाहेंगे। यह कहां समाप्त होने जा रहा है?
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विधायक ने ये कहा
पूवैया ने कहा कि सीडीसी का गठन स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप संस्थान के कल्याण के लिए किया गया था। जरूरी नहीं कि समितियों का नेतृत्व सत्ता में पार्टी के विधायक ही करें। मैं वहां इसलिए नहीं हूं क्योंकि मैं एक विधायक हूं बल्कि स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिए हूं। धार्मिक पोशाक पहनने का अधिकार अनुच्छेद 25 के अधीन है न कि अनुच्छेद 19 के तहत। यह अनुच्छेद 19 का अधिकार नहीं है। मेरे स्कूल में 950 छात्र हैं, जिनमें से 100 मुस्लिम धर्म के हैं। उसमें से दिसंबर तक किसी भी छात्र ने हिजाब पहनने की जिद नहीं की। इन 100 में से केवल 5 बच्चे ही इस बात पर जोर देते हैं कि वे हिजाब पहनना चाहते हैं।
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