Himachal Pradesh Religious Freedom Amendment Bill 2022 : हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने मौजूदा धर्मांतरण-रोधी कानून में संशोधन वाले एक बिल को शनिवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया, जिसमें मौजूदा कानून में सजा बढ़ाने और जबरन या लालच देकर सामूहिक धर्मांतरण कराए जाने को रोकने के प्रावधान हैं। संशोधन बिल के कड़े प्रावधानों के अंतर्गत धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति को माता-पिता के धर्म या जाति से संबंधित कोई भी लाभ लेने पर रोक रहेगी। बिल में कारावास की सजा को सात साल से बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रावधान है।
हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। अगर कोई खुद से धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो उसके अलग-अलग तरीके हैं, लेकिन यह गलत है अगर यह उन्हें धोखा देकर किया जा रहा है। हमने महसूस किया कि कानून को और सख्त बनाने की जरूरत है। मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में इसके परिणाम अच्छे होंगे।
हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) बिल, 2022 शनिवार को ध्वनिमत से पारित हुआ। विधेयक में सामूहिक धर्मांतरण का उल्लेख है, जिसे एक ही समय में दो या दो से अधिक लोगों के धर्म परिवर्तन करने के रूप में वर्णित किया गया है। जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने शुक्रवार को बिल पेश किया था। संशोधन बिल में हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को और कठोर किया गया है, जो बमुश्किल 18 महीने पहले लागू हुआ था।
कुछ प्रावधानों पर आपत्ति दर्ज करते हुए कांग्रेस विधायक सुखविंदर सिंह सुक्खू और सीपीएम विधायक राकेश सिंह ने मांग की कि बिल को विचार-विमर्श के लिए स्थायी समिति के पास भेजा जाए। राज्यपाल की मंजूरी के बाद बिल कानून बन जाएगा। कांग्रेस विधायक सुक्खू ने उन प्रावधानों को लेकर आपत्ति दर्ज की, जो धर्मांतरण करने वाले को अपने मूल धर्म या जाति का कोई लाभ लेने से रोकते हैं। हालांकि, सरकार ने जोर देकर कहा कि यह संविधान के अनुरूप है। संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950, कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध से अलग धर्म को अपनाता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।
आपत्तियों का जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि आदिवासियों के अधिकार नहीं बदलेंगे। उन्होंने कहा कि बिल के तहत एक स्वघोषणा की जरूरत होगी कि धर्मांतरित व्यक्ति अपने माता-पिता के धर्म का कोई लाभ नहीं लेगा। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि कुछ धर्मों के अनुयायी अनुसूचित जातियों के धर्मांतरण के लिए पहाड़ी राज्य के आदिवासी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ठाकुर ने कहा कि उनकी पार्टी अनुसूचित जाति समुदाय के अधिकारों की रक्षा के बारे में दूसरों की तुलना में अधिक गंभीर है।
हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2019 को 21 दिसंबर 2020 को अधिसूचित किया गया था। इस संबंध में बिल 15 महीने पहले ही विधानसभा में पारित हो चुका था। साल 2019 के बिल को भी 2006 के एक कानून की जगह लाया गया था, जिसमें कम सजा का प्रावधान था। नए संशोधन बिल में बलपूर्वक धर्मांतरण के लिए कारावास की सजा को 7 साल से बढ़ाकर अधिकतम 10 साल तक करने का प्रस्ताव है।
बिल में प्रावधान प्रस्तावित है कि कानून के तहत की गई शिकायतों की जांच उप निरीक्षक से नीचे के दर्जे का कोई पुलिस अधिकारी नहीं करेगा। इस मामले में मुकदमा सत्र अदालत में चलेगा। सत्तारूढ़ बीजेपी धर्मांतरण-रोधी कानून की मुखर समर्थक रही है और पार्टी द्वारा शासित कई राज्यों ने इसी तरह के कानून पेश किए हैं। यह कदम इस साल के अंत में हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सामने आया है।
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