संजय कुमार पाण्डेय ‘सिद्धान्त’
‘‘भारतीय भाषाएँ नदियाँ हैं और हिन्दी महानदी’’ - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
‘‘हिन्दी जैसी सरल भाषा दूसरी नहीं है’’ - मौलाना हसरत मोहानी
ऐसी न जाने कितनी ही महत्त्वपूर्ण सूक्तियाँ हिन्दी के सम्मान में लिखी गईं, कहीं गईं, फिर भी हम इस बहुभाषा-भाषी शिक्षित समाज को स्वभाषा का पाठ पढ़ा नहीं सके, जो पाठ हमारी अनपढ़ जनता ने बिना किसी संवैधानिक उपबंधों के बगैर ही समझ लिया । भारत देश हमारा बहु-संस्कृतियों और भिन्न भाषा-भाषियों का एक ऐसा देश है, जहाँ सभी भाषा-भाषियों की भावनाओं का सम्मान एक समान भाव से किया जाता है और किया भी जाना चाहिए । इस भारत का हर भाषा-भाषी अपने परिवार में अपनी मातृभाषा में बातचीच करने में सहजता एवं अपनापन महसूस करता है । ऐसा होना निस्संदेह स्वाभाविक भी है । सभी कम पढ़ा लिखा और अशिक्षित समाज कभी भी किसी प्रकार के भाषा संबंधी विवाद में न पड़कर सहजता से किसी भी प्रकार की विदेशी भाषा या अन्य किसी भाषी की ओर अलग भाव से नहीं देखता, बल्कि अभिव्यक्ति को प्रधानता देते हुए स्वयं में अपनी निज भाषा के साथ आनंद का अनुभव करता है ।
इसके विपरीत यदि हम देखें तो पाएँगे कि पढ़ा लिखा और शिक्षित समाज अंग्रेजी या अन्य किसी विदेशी भाषा को इतना अधिक महत्त्व दे बैठता है कि वह घर में भी अपनी मातृभाषा में बात करने में झिझक महसूस करता है । शायद यहीं कारण है कि हमारी शिक्षा पद्धति एवं केंद्रीय सरकार की कार्यालय पद्धति में अंग्रेजी का वर्चस्व इस कदर हावी या प्रभावी हो उठा है कि हम हिन्दी या अन्य भारतीय भाषा के प्रयोग को बड़ी ही ओछी दृष्टि के साथ देखते हैं ।
हिन्दी ने अपनी ध्वन्यात्मकता के गुणों के कारण सभी के दिल में अपना स्थान बना लिया है । अधिकांश लोग शायद यह नहीं जानते हैं कि हिन्दी स्वतंत्रता आंदोलन की सशक्त संपर्क भाषा रही है । यही कारण है कि इसके प्रभाव से बड़े बड़े नेताओं ने भी हिन्दी की सरलता और लोकप्रियता लोहा माना । आजादी मिलने के उपरांत संविधान निर्माण से पूर्व संविधान सभा का गठन हुआ, जिसके अंतर्गत बहुतेरे विषयों पर साफ साफ शब्दों में आगे की कार्य पद्धति पर चर्चा और बहस हुई । इन्हीं बहुतेरे मुद्दों में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा राजभाषा का भी था, जो बाद में निर्णय के उपरांत 14 सितंबर 1949 को राजभाषा हिन्दी के रूप में संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद एवं संविधान सभा के सभी सदस्यों द्वारा इस संबंध में एक मत से सहमति प्रदान की गई ।
आज उसी 14 सितंबर 1949 के अभूतपूर्व निर्णायक दिवस को हम सभी हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं । राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, नई दिल्ली की स्थापना के साथ केंद्रीय सरकार के सभी मंत्रालयों/ विभागों/ उपक्रमों/ निगमों एवं स्वायत्त निकायों में राजभाषा कार्यान्वयन का कार्य बखूबी किया गया । संविधान में हमने अनेक उपबंध, अधिनियम, संकल्प एवं नियम बनाए, परंतु अब आवश्यकता है, एक बार पुनरावलोकन की, ताकि 70 वर्षों के पश्चात बदली हई परिस्थिति औरअत्याधुनिक परिवेश में हिन्दी एवं समस्त भारतीय भाषाओं की स्थिति को किस प्रकार प्रतिष्ठित सभी कार्यालयों में राजभाषा कार्यान्वयन के मूल्यांकन व आकलन संबंधी मानदंडों को कैसे रखें, इन्हें पुनः निर्धारित किया जाना अत्यंत आवश्यक है ।हिन्दी दिवस किसी भी रूप में राष्ट्रीय पर्व से कम नहीं, बल्कि हम सभी भारत वासियों की अमिट पहचान हिन्दी ही है ।
आज की सरकार ने हिन्दी एवं अन्य सभी भारतीय भाषाओं को बड़े ही प्रभावी रूप से कार्यान्वित किया है । आगे आनेवाले वर्षों में हम निश्चित ही हिन्दी को राष्ट्र भाषा ही नहीं, अपितु विश्व स्तरीय भाषा बनाने में भी सफल होंगे । साथ ही, हमारी भारतीय भाषाएँ भी नित नई प्रौद्योगिकियों को स्वभाषा में अभिव्यक्ति प्रदान करने में निस्संदेह सफल होंगी । हिन्दी एवं भारतीय भाषाएँ भारत की खूबसूरत संस्कृति की परिचायक है और सदैव ही रहेंगी ।
हिन्दी बढ़ेगी तभी, जब चाहेंगे सभी।
(लेखक एच ए एल , मुख्यालय, बेंगलूर में वरिष्ठ प्रबंधक ( राजभाषा ) हैं)
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